“गज़ल” खड़ा गुलमुहर की छाया नहीं था अभी सावन वहाँ आया नहीं था हवा पूर्बी सरसराने लगी थी मगर ऋतु बर्खा ने गाया नहीं था॥ गली में शोर था झूला पड़ा हैं किसी ने मगर झुलवाया नहीं था॥ घिरी वो बदरिया लागे सुहानी झुके थे नैन भर्भराया नहीं था॥ सखी की टोलकी बहुते सयानी नचाय