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आरक्षण..धर्म और संस्कृति

13 जनवरी 2017

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आरक्षण..धर्म और संस्कृति धर्म को लेकर भारत में तरह तरह की अवधारणायें पनपती रही हैं . यद्यपि हमारा संविधान हमें धर्म निरपेक्ष घोषित करतया है किन्तु वास्तव में यह चरितार्थ नही हो रहा . देश की राजनीति में धर्म ने हमेशा से बड़ी भुमिका अदा की है . चुनावो में जाति और ढ़र्म के नाम पर वोटो का ध्रुवीकरण कोई नई बात नहीं है .आरक्षण भी इसी से जन्म लिया हुआ नासूर है । आजादी के बाद अब जाकर चुनाव आयोग ने धर्म के नाम पर वोट मांगने पर हस्तक्षेप किया है . तुष्टीकरण की राजनीति हमेशा से देश में हावी रही है . दुखद है कि देश में धर्म व्यक्तिगत आस्था और विश्वास तथा मुक्ति की अवधारणा से हटकर सार्वजनिक शक्ति प्रदर्शन तथा दिखावे का विषय बना हुआ है . ऐसे समय में श्री रंगाहरि की किताब धर्म और संस्कृति एक विवेचना पढ़ने को मिली . लेखक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुयायी व प्रवर्तक हैं . राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को हिन्दूवादी संगठन माना जाता है . स्वाभाविक रूप से उस विचारधारा का असर किताब में होने की संभावना थी , पर मुझे पढ़कर अच्छा लगा कि ऐसा नही है , बल्कि यह हिन्दू धर्म की उदारवादी नीति ही है जिसके चलते पुस्तक यह स्पष्ट करती है कि हिन्दूत्व , धर्म से ऊपर संस्कृति है . मुस्लिम धर्म की गलत विवेचना के चलते सारी दुनियां में वह किताबी और कट्टरता का संवाहक बन गया है , ईसाई धर्म भारत व अन्य राष्ट्रो में कनवर्शन को लेकर विवादस्पद बनता रहा है . सच तो यह है कि सदा से धर्म और राजनीति परस्पर पूरक रहे हैं . पुराने समय में राजा धर्म गुरू से सलाह लेकर राजकाज किया करते थे . एक राज्य के निवासी प्रायः समान धर्म के धर्मावलंबी होते थे . आज भी देश के जिन क्षेत्रो में जब तब विखण्डन के स्वर उठते दिखते हैं , उनके मूल में कही न कही धर्म विशेष की भूमिका परिलक्षित होती है . अतः स्वस्थ मजबूत लोकतंत्र के लिये जरूरी है कि हम अपने देश में धर्म और संस्कृति की सही विवेचना करें व हमारे नागरिक देश के राष्ट्र धर्म को पहचाने . प्रस्तुत पुस्तक सही मायनो में छोटे छोटे सारगर्भित चैप्टर्स के माध्यम से इस दिशा में धर्म और संस्कृति की व्यापक विवेचना करने में समर्थ हुई है . जरूरत है कि आरक्षण , धर्म निरपेक्षता संस्कृति पर खुली बहस हो , क्योकि बिना जनमत के कोई भी सरकार अपने बूते पर् न् तो आरक्षण बन्द करेगी न् ही संवेधानिक दृष्टिकोण से धर्म निरपेक्षता को अपनाएगी विवेक रंजन श्रीवास्तव

विवेक रंजन श्रीवास्तव की अन्य किताबें

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जनता को संविधान से परिचित करवाने के लिये अभियान चलाया जाये

3 जुलाई 2016
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देश की अखण्डता के लिये देश के हर हिस्से में सभी धर्मो के लोगो का बिखराव जरूरी है विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र अधीक्षण अभियंता सिविल, म प्र पू क्षे विद्युत वितरण कम्पनीओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ४८२००८ फोन ०७६१२६६२०५२         प्रश्न है देशों का निर्माण  कैसे हुआ  ?  भौगोलिक स्थिति

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आरक्षण..धर्म और संस्कृति

13 जनवरी 2017
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आरक्षण..धर्म और संस्कृति धर्म को लेकर भारत में तरह तरह की अवधारणायें पनपती रही हैं . यद्यपि हमारा संविधान हमें धर्म निरपेक्ष घोषित करतया है किन्तु वास्तव में यह चरितार्थ नही हो रहा . देश की राजनीति में धर्म ने हमेशा से बड़ी भुमिका अदा की है . चुनावो में जाति और ढ़र्म के नाम पर वोटो का ध्रुवीकरण कोई नई

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गुमशुदा पाठक की तलाश

16 जनवरी 2017
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किताबें और मेले बनाम गुमशुदा पाठक की तलाशविवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ९४२५८०६२५२ हमने वह जमाना भी जिया है जब रचना करते थे , सुंदर हस्त लेख में लिखते थे , एक पता लिखा टिकिट लगा लिफाफा साथ रखते थे , कि यदि संपादक जी को रचना पसंद न आई तो " संपादक के अभिवादन व

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मिले दल मेरा तुम्हारा

29 जनवरी 2017
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मिले दल मेरा तुम्हारा विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ९४२५८०६२५२मुझे कोई यह बताये कि जब हमारे नेता "घोड़े" नहीं हैं, तो फिर उनकी हार्स ट्रेडिंग कैसे होती है ? जनता तो चुनावो में नेताओ को गधा मानकर "कोई नृप होय हमें का हानि चेरी छोड़ न हुई हैं रानी" वाले मनोभाव के

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धन्नो , बसंती और बसंत

6 फरवरी 2017
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बसंत बहुत फेमस है पुराने समय से , बसंती भी धन्नो सहित शोले के जमाने से फेमस हो गई है . बसंत हर साल आता है , जस्ट आफ्टर विंटर. उधर कामदेव पुष्पो के बाण चलाते हैं और यहाँ मौसम सुहाना हो जाता है .बगीचो में फूल खिल जाते हैं . हवा में मदमस्त गंध घुल जाती है . भौंरे गुनगुनाने लगते हैं .रंगबिरंगी तितलि

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दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर लिया

8 फरवरी 2017
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व्यंग दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर लिया विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ९४२५८०६२५२ मोबाइल पर एक से बात करते हुये झल्लाहट की सारी हदें पार करने के बाद भी , सारी मृदुता के साथ त्वरित ही पुनः अगली काल पर हममें से किसने बातें नही की हैं ? डाक्टरो के लिये य

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वैमनस्य भूल कर नई शुरुवात करने का पर्व होली

1 मार्च 2017
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परस्पर वैमनस्य भूल कर नई शुरुवात करने का पर्व होली विवेक रंजन श्रीवास्तवए १ , शिलकुन्ज , विद्युत मण्डल कालोनी नयागांव , जबलपुरvivek1959@yahoo.co.in9425806252, 70003757987 हमारे मनीषियो द्वारा समय समय पर पर्व और त्यौहार मनाने का प्रचलन ॠतुओ के अनुरूप मानव मन को बहुत समझ बूझ कर निर्धारि

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http://shop.storymirror.com/_/index.php?route=product/product&product_id=182

29 मार्च 2017
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सबकी सेल्फी हिट हो

10 अप्रैल 2017
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"स्वाबलंब की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष " राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त की ये पंक्तियां सेल्फी फोटो कला के लिये प्रेरणा हैं . ये और बात है कि कुछ दिल जले कहते हैं कि सेल्फी आत्म मुग्धता को प्रतिबिंबित करती हैं . ऐसे लोग यह भी कहते हैं कि सेल्फी मनुष्य के वर्तमान व्यस्त एकाकीपन को दर्शाती है . जि

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बुझ गई लाल बत्ती

25 अप्रैल 2017
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आम से खास बनने की पहचान थी लाल बत्तीविवेक रंजन श्रीवास्तव ए १ , विद्युत मण्डल कालोनी , शिला कुन्जजबलपुर मो ९४२५८०६२५२ , vivek1959@yahoo.co.in बाअदब बा मुलाहिजा होशियार , बादशाह सलामत पधार रहे हैं ... कुछ ऐसा ही उद्घोष करती थीं मंत्रियो , अफसरो की गाड़ियों की लाल बत्तियां . दूर से लाल बत्तियों के

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खीरा सर से काटिये, मलिये नमक लगाए, देख कबीरा यह कहे, कड़वन यही सुहाए

6 मई 2017
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व्यंग्य खीरा सर से काटिये, मलिये नमक लगाए, देख कबीरा यह कहे, कड़वन यही सुहाएविवेक रंजन श्रीवास्तव vivek1959@yahoo.co.in हम सब बहुत नादान हैं . इधर पाकिस्तान ने दो चार फटाके फोड़े नहीं कि हमारा मीडीया हो हल्ला मचाने लगता है . जनता नेताओ को याद दिलाने लगती है कि तुमको चुना ही इसलिये था कि तुम पाकिस्

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सिफारिशी घंटी का सवाल है बाबा

16 मई 2017
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व्यंग एक सिफारिशी घंटी का सवाल है बाबा विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्रvivekranjan.vinamra@gmail.com अब तो मोबाईल का जमाना आ गया है , वरना टेलीफोन के जमाने में हमारे जैसो को भी लोगो को नौकरी पर रखने के अधिकार थे . और उन दिनो नौकरी के इंटरव्यू से पहले अकसर सिफारिशी टेलीफोन आना बड़ी कामन बात थी . से

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तर्जनी बनाम अनामिका

22 मई 2017
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व्यंगअनामिका विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्रvivekranjan.vinamra@gmail.com, ७०००३७५७९८मेरी एक अकविता याद आ रही है ,जिसका शीर्षक ही है "शीर्षक".कविता छोटी सी है , कुछ यूंएक कविताएक नज्म एक गजल हो तुम तरन्नुम में और मैं महज कुछ शब्द बेतरतीब से जिन्हें नियति ने बना दिया है तुम्हारा शीर्षक और यूंमिल गया है

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आधी रात को कोर्ट में

18 मई 2018
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गर्मी

27 मई 2018
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अपनी अपनी सुरंगों में कैद

19 अगस्त 2018
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व्यंग्य अपनी अपनी सुरंगों में कैद विवेक रंजन श्रीवास्तव थाईलैंड में थाम लुआंग गुफा की सुरंगों में फंसे बच्चे और उनका कोच सकुशल निकाल लिये गये. सारी दुनिया ने राहत की सांस ली .हम एक बार फिर अपनी विरासत पर गर्व कर सकते हैं क्योकि थाइलैंड ने विपदा की इस घड़ी में न केवल भ

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