बसंत बहुत फेमस है पुराने समय से , बसंती भी धन्नो सहित शोले के जमाने से फेमस हो गई है .
बसंत हर साल आता है , जस्ट आफ्टर विंटर. उधर कामदेव पुष्पो के बाण चलाते हैं और यहाँ मौसम सुहाना हो जाता है .बगीचो में फूल खिल जाते हैं . हवा में मदमस्त गंध घुल जाती है . भौंरे गुनगुनाने लगते हैं .रंगबिरंगी तितलियां फूलो पर मंडराने लगती है . जंगल में मंगल होने लगता है . लोग बीबी बच्चो मित्रो सहित पिकनिक मनाने निकल पड़ते हैं . बसंती के मन में उमंग जाग उठती है .
उमंग तो धन्नो के मन में भी जागती ही होगी पर वह बेचारी हिनहिनाने के सिवाय और कुछ नया कर नही पाती .
कवि और साहित्यकार होने का भ्रम पाले हुये बुद्धिजीवियो में यह उमंग कुछ ज्यादा ही हिलोरें मारती पाई जाती है . वे बसंत को लेकर बड़े सेंसेटिव होते हैं . अपने अपने गुटों में सरस्वती पूजन के बहाने कवि गोष्ठी से लेकर साहित्यिक विमर्श के छोटे बड़े आयोजन कर डालते हैं . डायरी में बंद अपनी पुरानी कविताओ को समसामयिक रूपको से सजा कर बसंत के आगमन से १५ दिनो पहले ही उसे महसूस करते हुये परिमार्जित कर डालते हैं और छपने भेज देते हैं . यदि रचना छप गई तब तो इनका बसंत सही तरीके से आ जाता है वरना संपादक पर गुटबाजी के षडयंत्र का आरोप लगाकर स्वयं ही अपनी पीठ थपथपाकर दिलासा देना मजबूरी होती है . चित्रकार बसंत पर केंद्रित चित्र प्रदर्शनी के आयोजन करते हैं .
कला और बसंत का नाता बड़ा गहरा है .
बरसात होगी तो छाता निकाला ही जायेगा , ठंड पड़ेगी तो स्वेटर पहनना ही पड़ेगा , चुनाव का मौसम आयेगा तो नेता वोट मांगने आयेंगे ही , परीक्षा का मौसम आयेगा तो बिहार में नकल करवाने के ठेके होगें ही . दरअसल मौसम का हम पर असर पड़ना स्वाभाविक ही है . सारे फिल्मी गीत गवाह हैं कि बसंत के मौसम से दिल वेलेंटाइन डे टाइप का हो ही जाता है . बजरंग दल वालो को भी हमारे युवाओ को संस्कार सिखाने के अवसर और पिंक ब्रिगेड को नारी स्वात्रंय के झंडे गाड़ने के स्टेटमेंट देने के मौके मिल जाते हैं .
बड़े बुजुर्गो को जमाने को कोसने और दक्षिणपंथी लेखको को नैतिक लेखन के विषय मिल जाते हैं .
मेरा दार्शनिक चिंतन धन्नो को प्रकृति के मूक प्राणियो का प्रतिनिधि मानता है , बसंती आज की युवा नारी को रिप्रजेंट करती है , जो सारे आवरण फाड़कर अपनी समस्त प्रतिभा के साथ दुनिया में छा जाना चाहती है . आखिर इंटरनेट पर एक क्लिक पर अनावृत होती सनी लिओने सी बसंतियां स्वेच्छा से ही तो यह सब कर रही हैं . बसंत प्रकृति पुरुष है .
वह अपने इर्द गिर्द रगीनियां सजाना चाहता है , पर प्रगति की कांक्रीट से बनी गगनचुम्बी चुनौतियां , कारखानो के हूटर और धुंआ उगलती चिमनियां बसंत के इस प्रयास को रोकना चाहती है , बसंती के नारी सुलभ परिधान , नृत्य , रोमांटिक गायन को उसकी कमजोरी माना जाता है . बसंती के कोमल हाथो में फूल नहीं कार की स्टियरिंग थमाकर , जीन्स और टाप पहनाकर उसे जो चैलेंज जमाना दे रहा है , उसके जबाब में नेचर्स एनक्लेव बिल्डिंग के आठवें माले के फ्लैट की बालकनी में लटके गमले में गेंदे के फूल के साथ सैल्फी लेती बसंती ने दे दिया है , हमारी बसंती जानती है कि उसे बसंत और धन्नो के साथ सामंजस्य बनाते हुये कैसे बजरंग दलीय मानसिकता से जीतते हुये अपना पिंक झंडा लहराना है .
vivek ranjan shrivastava
धन्नो , ्बसंती और बसंत विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ९४२५८०६२५२
विवेक रंजन श्रीवास्तव की अन्य किताबें
आदिवासी बहुल जिले मण्डला में जिला मुख्यालय की बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला में साहित्यकार व लोकप्रिय व्याख्याता श्री सी. बी.श्रीवास्तव "विदग्ध" होस्टल वार्डन थे .उनकी पत्नी श्रीमती दयावती श्रीवास्तव भी मण्डला के ही रानी रामगढ़ उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में व्याख्याता थीं . २८.०७.१९५९ को इस दम्पति के घर मंडला में विवेक रंजन श्रीवास्तव का जन्म हुआ .वे अपनी उच्चशिक्षित एक बड़ी बहन तथा दो छोटी बहनो के इकलौते भाई हैं . बचपन से ही मेधावी छात्र के रूप में उन्होने अपनी पहचान बनाई .किशोरावस्था आते आते उन पर माता पिता के साहित्यिक संस्कारो का प्रभाव स्पष्ट दिखने लगा . कक्षा चौथी में जबलपुर के विद्यानगर स्कूल में जब उन्होने महात्मा गांधी का अभिनय किया तो "मोहन" के इस रोल में वे ऐसे डूब गये कि मुख्यअतिथि ने उन्हें वहीं तुरंत ५१ रुपयो का पुरस्कार दिया .लिखने की जरूरत नही कि १९६८ में ५१ रुपये क्या महत्व रखते थे . शायद तभी विवेक रंजन में नाटककार के बीज बोये जा चुके थे . कक्षा आठवीं की बोर्ड परीक्षा में उन्हें मेरिट में स्थान मिला . हाईस्कूल की शिक्षा के लिये ग्रामीण प्रतिभावान छात्रवृत्ति मिली . उन्होने रायपुर अभियांत्रिकी महाविद्यालय से सिविल इजीनियरिंग में बी ई की परीक्षा आनर्स के साथ पास की . इसके तुरंत बाद फाउंडेशन इंजीनियरिंग में मौलाना आजाद रीजनल कालेज भोपाल से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की . अपने छात्र जीवन से ही वे कालेज की सांस्कृतिक गतिविधियो से जुड़े रहे मंच संचालन किया तथा कालेज की पत्रिकाओ "आलोक" आदि का सम्पादन भी किया . रायपुर , जबलपुर व भोपाल के आकाशवाणी केन्द्रो से उनके प्रसारण भी होते रहे . तभी से वे रेडियो रूपक भी लिख रहे हैं . वे बताते हैं कि रायपुर आकाशवाणी से १९७८ में युववाणी के उनके पहले प्रसारण के लिये उन्हें ३० रुपये का चैक प्राप्त हुआ था .अपने संस्मरण सुनाते हुये उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय सेवा योजना की महाविद्यालयीन इकाई तथा इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स की छात्र इकाई , कालेज के फोटोग्राफी क्लब के अध्यक्ष भी रहे .
१९८१ में उन्होने मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल में सहायक इंजीनियर के रूप में अपनी सेवायें प्रारंभ की थीं .सर्वे व अनुसंधान विभाग में इस युवा इंजीनियर ने अनेक लघु पन बिजली परियोजनाओ सहित १९८४ में परमाणु बिजलीघर चुटका की प्रारंभिक फिजिबिलिटी तैयार की , उल्लेखनीय है कि अब मण्डला जिले में यह महत्वपूर्ण बिजली परियोजना स्वीकृत हो चुकी है . उनके द्वारा तैयार भीमगढ़ तथा चरगांव जटलापुर लघु पन बिजली परियोजनायें अभी तक लगातार विद्युत उत्पादन कर रही हैं . उनका मानना है कि शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है , सेवारत रहते हुये उन्होने इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट मे डिप्लोमा , ब्यूरो आफ इनर्जी एफिशियेंसी से इनर्जी मैनेजर की उपाधियां अर्जित की हैं . वे २००५ से ही जब हिन्दी ब्लाग बहुत नया था , हिन्दी में नियमियित ब्लागिंग कर रहे हैं . व्यंग , कविता , व तकनीकी विषयो पर उनके व्यक्तिगत ब्लाग लोकप्रिय हैं ,वेबदुनिया जो हिन्दी का सबसे पुराना पोर्टल है उसके सहित अनेक अखबारो के सामूहिक ब्लाग्स में भी वे लिखते हैं . दुनिया की पहली ब्लागजीन ब्लागर्स पार्क जिसमें ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री में से चुनिंदा रचनायें पत्रिका के रूप में प्रकाशित की जाती है , वे इस पत्रिका के संपादक मण्डल के मानद सदस्य हैं . उन्होने हिन्दी ब्लागिंग पर कई कार्यशालायें करके अनेक युवा लेखको को ब्लाग जगत से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया है , ज्ञानवाणी से हिन्दी ब्लागिंग पर उनकी वार्ता बहुत सराही गई है .
उनका विवाह वरिष्ठ कवि स्व वासुदेव प्रसाद खरे की पुत्री स्वतंत्र लेखिका श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव से २२ जनवरी १९८७ को हुआ . उनकी जीवन संगीनी ने उनकी साहित्य यात्रा को और आगे बढ़ाया . एक पिता की भूमिका में भी वे सफल हैं , उनके बच्चे इंजीनियर अनुव्रता एक प्रतिष्ठित निजी संस्थान में एरिया मैनेजर हैं ,बेटी अनुभा ने राष्ट्रीय संस्थान से पांच वर्षीय ला की पढ़ाई की है तथा वे एक ला एशोसियेट के रूप में कार्यरत हैं , बेटा अमिताभ भारत के एक मात्र प्रतिष्ठित विज्ञान संस्थान , इण्डियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस बैंगलोर से भारत सरकार की किशोर वैज्ञानिक की स्कालरशिप लेते हुये उच्च शिक्षा पा रहे हैं .
तार सप्तक अर्ध शताब्दि समारोह में संस्कृति भवन के सभागार में उनकी नई कविताओ की पहली कृति आक्रोश का विमोचन हुआ . इस पुस्तक को दिव्य काव्य अलंकरण मिला .इसके बाद उनके व्यंग संग्रह "रामभरोसे" तथा " कौआ कान ले गया" प्रकाशित हुये . साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् भोपाल द्वारा उन्हें ३१००० रुपयो का हरिकृष्ण प्रेमी पुरस्कार उनकी नाट्य कृति 'हिंदोस्तां हमारा' के लिये घोषित किया गया है . उल्लेखनीय है कि श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव के नाटक कई स्कूलो में खेले जाते हैं . उनका म. प्र. शासन आदिवासी शिक्षा विभाग से पुरस्कृत नुक्कड़ नाटक जादू शिक्षा का जिला शिक्षा केंद्र मण्डला के कलाकारो द्वारा अनेक चौराहो पर खेला जा चुका है . श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव को हिंदोस्तां हमारा नाटक संग्रह हेतु साहित्य अकादमी के इस पुरस्कार के अतिरिक्त सामाजिक लेखन हेतु रेड एण्ड व्हाइट द्वारा १५००० रु का राष्टीय पुरुस्कार महामहिम राज्यपाल भाई महावीर के कर कमलो से मिल चुका है . उनके व्यंग संग्रह रामभरोसे को राष्टीय पुरुस्कार दिव्य अलंकरण राज्यपाल ओ पी श्रीवास्तव के कर कमलो से , कौआ कान ले गया व्यंग संग्रह को इलाहाबाद में कैलाश गौतम राष्ट्रीय सम्मान तथा जादू शिक्षा का नाटक को ५००० रु का सेठ गोविंद दास कादम्बरी राष्ट्रीय सम्मान व म. प्र. शासन का ५००० रु का प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है .विभिन्न सामूहिक संग्रहों में भी उनकी रचनायें प्रकाशित हुई हैं .
सुरभि टीवी सीरियल में मण्डला के जीवाश्मो पर उनकी फिल्म का प्रसारण हुआ , तथा हैलो बहुरंग में उनकी निर्मित लघु फिल्मो के लिये वे युवा फिल्मकार का सम्मान भी अर्जित कर चुके हैं . उनकी किताबें जल जंगल और जमीन , बिजली का बदलता परिदृश्य , कान्हा अभयारण्य परिचायिका बहुचर्चित हैं . इस इंजीनियर साहित्यकार ने जटिल वैज्ञानिक विषयो पर सहज जन भाषा हिन्दी में नियमित अपनी कलम चलाई है . "रानी दुर्गावती" व "मण्डला परिचय" पर उनके द्वारा तैयार फोल्डर लोकप्रिय रहे हैं .देश की अनेक पत्र पत्रिकाओ में प्रकाशित उनके सामाजिक विषयो के आलेखो की प्रदर्शनी की व्यापक सराहना हुई . कविता , लेख , गजल , व्यंग , नाटक संग्रह आदि की कई किताबें प्रकाशनाधीन हैं . वे साहित्य अकादमी की पाठक योजना के मण्डला में लम्बे समय तक संयोजक रहे हैं व अब जबलपुर शहर के सक्रिय संयोजक हैं . मण्डला में हिन्दी साहित्य समिति मण्डला , साहित्य विकास परिषद एवं तुलसी मानस परिषद के सचिव रहे हैं एवं जबलपुर की साहित्यिक संस्था अभियान के साथ कई राष्ट्रीय स्तर के सफल आयोजक रहे हैं . आकाशवाणी व दूरदर्शन से उनके अनेक प्रसारण होते रहे हैं . साहित्यिक संस्था वर्तिका के प्रांतीय अध्यक्ष हैं , तथा निरंतर साहित्य सेवा में लगे हुये हैं .
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