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सिफारिशी घंटी का सवाल है बाबा

16 मई 2017

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व्यंग एक सिफारिशी घंटी का सवाल है बाबा विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र vivekranjan.vinamra@gmail.com अब तो मोबाईल का जमाना आ गया है , वरना टेलीफोन के जमाने में हमारे जैसो को भी लोगो को नौकरी पर रखने के अधिकार थे . और उन दिनो नौकरी के इंटरव्यू से पहले अकसर सिफारिशी टेलीफोन आना बड़ी कामन बात थी . सेलेक्शन का एक क्राइटेरिया यह भी रखना पड़ता था कि सिफारिश किसकी है . मंत्री जी की सिफारिश , बड़े साहब की सिफारिश और रिश्तेदारो की सिफारिश में संतुलन बनाना पड़ता था . एक सिफारिशी घंटी केंडीडेट का भाग्य बदलने की ताकत रखती थी . अक्सर नेता जी से संबंध टेलीफोन की सिफारिशी घंटी बजवाने के काम आते थे . आज भी विजिटिंग कार्ड का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है टेलीफोन नम्बर , और टेबिल का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण होता है टेलीफोन . टेलीफोन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है सिफारिश . टेलीफोन की घंटी से सामने बैठा व्यक्ति गौण हो जाता है , दूर टेलीफोन के दूसरे छोर पर बैठा व्यक्ति महत्वपूर्ण हो जाता है . जिस तरह पानी उंचाई से नीचे की ओर प्रवाहित होता है उसी तरह टेलीफोन में हुई वार्तालाप का नियम है कि इसमें हमेशा ज्यादा महत्वपूर्ण आदमी , कम महत्वपूर्ण आदमी को इंस्ट्रक्शन देता है . उदाहरण के तौर पर मेरी पत्नी मुझे घर के टेलीफोन से आफिस के टेलीफोन पर इंस्ट्रक्शन्स देती है . मंत्री जी बड़े साहब को और बड़े साहब अपने मातहतो को महत्वपूर्ण या गैर महत्वपूर्ण कार्यो हेतु भी महत्वपूर्ण तरीके से आदेशित करते हैं . टेलीफोन के संदर्भ में एक नियम और भी है , ज्यादा बड़े लोग अपना टेलीफोन स्वयं नहीं उठाते . इसके लिये उनके पास पी ए टाइप की कोई सुंदरी होती है जो बाजू के कमरे में बैठ कर उनके लिये यह महत्वपूर्ण कार्य करती है और एक्सटेंशन टेलीफोन पर महत्वपूर्ण काल ही फारवर्ड करती है . टेलीफोन एटीकेट्स के अनुसार मातहत को अफसर की बात सुनाई दे या न दे , समझ आये या न आये , किन्तु सर ! सर ! कहते हुये आदेश स्वीकार्यता का संदेश अपने बड़े साहब को देना होता है . मुझे गर्व है कि अपनी लम्बी नौकरी में मैने ऐसे लोग भी देखे हैं जो बड़े साहब का टेलीफोन आने पर अपनी सीट पर खड़े होकर बात करते हैं . ऐसे लोगो को नये इलेक्ट्रानिक टेलीफोन में कालर आई डी लग जाने से बड़ा लाभ हुआ है . आजकल बड़े साहब का मोबाईल आने पर ऐसे लोग तुरंत सीट से उठकर गतिमान हो जाते हैं . यह बाडी लेंगुएज उनकी भारी दबाव में आने वाली मानसिक स्थिति की द्योतक होती है . हमारी पीढ़ी ने चाबी भरकर चार्ज कर बात करने के हैंडिल वाले टेलीफोन के समय से आज के टच स्क्रीन मोबाईल तक का सफर तय किया है . इस बीच डायलिग करने वाले मेकेनिकल फोन आये जिनकी वही रिटी पिटी ट्रिन ट्रिन वाली घंटी होती थी जैसे आजकल आधे कटे सेव वाले मंहगे एप्पल मोबाईल की एक ही सुर की घंटी होती है . समय के साथ की पैड वाले इलेक्ट्रानिक फोन आये . और अब हर हाथ में मोबाईल का नारा सच हो रहा है , लगभग हर व्यक्ति के पास दो मोबाइल या कमोबेश दो सिम तो हैं ही . एक समय था जब टेलीफोन आपरेटर की शहर में बड़ी पहचान और इज्जत होती थी , क्योकि वह ट्रंक काल पर मिनटो में किसी से भी बात करवा सकता था . शहर के सारे सटोरिये रात ठीक आठ बजे क्लोज और ओपन के नम्बर जानने के लिये मटका किंग से हुये इशारो के लिये इन्हीं आपरेटरो पर निर्भर होते थे . आज तो पत्नी भी पसंद नही करती कि पति का काल उसके मोबाईल पर आ जाये , पर मुझे स्मरण है उन दिनो हमारे घर पर पड़ोसियो के फोन साधिकार आ जाते थे . लाइटनिंग काल के चार्ज आठ गुने लगते थे अतः लाइटनिंग काल आते ही लोग सशंकित हो जाते थे . मैं विद्युत विभाग में अधिकारी हूं , हमारे विभाग में बिजली की हाई टेंशन लाइन पर पावर लाइन कम्युनिकेशन कैरियर की अतिरिक्त सुविधा होती है , जिस पर हम हाट लाइन की तरह बातें कर सकते हैं , बातें करने की ठीक इसी तरह रेलवे की भी अपनी समानांतर व्यवस्था है . पुराने दिनो में कभी जभी अच्छे बुरे महत्वपूर्ण समाचारो के लिये हम लोग भी अनधिकृत रूप से अपनी इस समानांतर व्यवस्था का लाभ मित्र मण्डली को दे दिया करते थे . बातो के भी पैसे लगते हैं और बातो से भी पैसे बनाये जा सकते हैं यह सिखाता है टेलीफोन . यह बात मेरी पत्नी सहित महिलाओ की समझ आ जाये तो दोपहर में क्या बना है से लेकर पति और बच्चो की लम्बी लम्बी बातें करने वाली हमारे देश की महिलायें बैठे बिठाये ही अमीर हो सकती हैं . खैर महिलायें जब बातो से पेसे बनायेंगी तब की तब देखेंगे फिलहाल तो मायावती की माया टेलीफोन पर हुई उनकी बातो की रिकार्डिंग सुनाकर लुटती दिख रहि है .

विवेक रंजन श्रीवास्तव की अन्य किताबें

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

बहुत अच्छा लिखा है आपने विवेक जी. व्यंग भी और अच्छा सन्देश भी .

17 मई 2017

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जनता को संविधान से परिचित करवाने के लिये अभियान चलाया जाये

3 जुलाई 2016
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देश की अखण्डता के लिये देश के हर हिस्से में सभी धर्मो के लोगो का बिखराव जरूरी है विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र अधीक्षण अभियंता सिविल, म प्र पू क्षे विद्युत वितरण कम्पनीओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ४८२००८ फोन ०७६१२६६२०५२         प्रश्न है देशों का निर्माण  कैसे हुआ  ?  भौगोलिक स्थिति

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आरक्षण..धर्म और संस्कृति

13 जनवरी 2017
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आरक्षण..धर्म और संस्कृति धर्म को लेकर भारत में तरह तरह की अवधारणायें पनपती रही हैं . यद्यपि हमारा संविधान हमें धर्म निरपेक्ष घोषित करतया है किन्तु वास्तव में यह चरितार्थ नही हो रहा . देश की राजनीति में धर्म ने हमेशा से बड़ी भुमिका अदा की है . चुनावो में जाति और ढ़र्म के नाम पर वोटो का ध्रुवीकरण कोई नई

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गुमशुदा पाठक की तलाश

16 जनवरी 2017
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किताबें और मेले बनाम गुमशुदा पाठक की तलाशविवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ९४२५८०६२५२ हमने वह जमाना भी जिया है जब रचना करते थे , सुंदर हस्त लेख में लिखते थे , एक पता लिखा टिकिट लगा लिफाफा साथ रखते थे , कि यदि संपादक जी को रचना पसंद न आई तो " संपादक के अभिवादन व

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मिले दल मेरा तुम्हारा

29 जनवरी 2017
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मिले दल मेरा तुम्हारा विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ९४२५८०६२५२मुझे कोई यह बताये कि जब हमारे नेता "घोड़े" नहीं हैं, तो फिर उनकी हार्स ट्रेडिंग कैसे होती है ? जनता तो चुनावो में नेताओ को गधा मानकर "कोई नृप होय हमें का हानि चेरी छोड़ न हुई हैं रानी" वाले मनोभाव के

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धन्नो , बसंती और बसंत

6 फरवरी 2017
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बसंत बहुत फेमस है पुराने समय से , बसंती भी धन्नो सहित शोले के जमाने से फेमस हो गई है . बसंत हर साल आता है , जस्ट आफ्टर विंटर. उधर कामदेव पुष्पो के बाण चलाते हैं और यहाँ मौसम सुहाना हो जाता है .बगीचो में फूल खिल जाते हैं . हवा में मदमस्त गंध घुल जाती है . भौंरे गुनगुनाने लगते हैं .रंगबिरंगी तितलि

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दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर लिया

8 फरवरी 2017
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व्यंग दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर लिया विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ९४२५८०६२५२ मोबाइल पर एक से बात करते हुये झल्लाहट की सारी हदें पार करने के बाद भी , सारी मृदुता के साथ त्वरित ही पुनः अगली काल पर हममें से किसने बातें नही की हैं ? डाक्टरो के लिये य

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वैमनस्य भूल कर नई शुरुवात करने का पर्व होली

1 मार्च 2017
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परस्पर वैमनस्य भूल कर नई शुरुवात करने का पर्व होली विवेक रंजन श्रीवास्तवए १ , शिलकुन्ज , विद्युत मण्डल कालोनी नयागांव , जबलपुरvivek1959@yahoo.co.in9425806252, 70003757987 हमारे मनीषियो द्वारा समय समय पर पर्व और त्यौहार मनाने का प्रचलन ॠतुओ के अनुरूप मानव मन को बहुत समझ बूझ कर निर्धारि

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http://shop.storymirror.com/_/index.php?route=product/product&product_id=182

29 मार्च 2017
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सबकी सेल्फी हिट हो

10 अप्रैल 2017
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"स्वाबलंब की एक झलक पर न्यौछावर कुबेर का कोष " राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त की ये पंक्तियां सेल्फी फोटो कला के लिये प्रेरणा हैं . ये और बात है कि कुछ दिल जले कहते हैं कि सेल्फी आत्म मुग्धता को प्रतिबिंबित करती हैं . ऐसे लोग यह भी कहते हैं कि सेल्फी मनुष्य के वर्तमान व्यस्त एकाकीपन को दर्शाती है . जि

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बुझ गई लाल बत्ती

25 अप्रैल 2017
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आम से खास बनने की पहचान थी लाल बत्तीविवेक रंजन श्रीवास्तव ए १ , विद्युत मण्डल कालोनी , शिला कुन्जजबलपुर मो ९४२५८०६२५२ , vivek1959@yahoo.co.in बाअदब बा मुलाहिजा होशियार , बादशाह सलामत पधार रहे हैं ... कुछ ऐसा ही उद्घोष करती थीं मंत्रियो , अफसरो की गाड़ियों की लाल बत्तियां . दूर से लाल बत्तियों के

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खीरा सर से काटिये, मलिये नमक लगाए, देख कबीरा यह कहे, कड़वन यही सुहाए

6 मई 2017
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व्यंग्य खीरा सर से काटिये, मलिये नमक लगाए, देख कबीरा यह कहे, कड़वन यही सुहाएविवेक रंजन श्रीवास्तव vivek1959@yahoo.co.in हम सब बहुत नादान हैं . इधर पाकिस्तान ने दो चार फटाके फोड़े नहीं कि हमारा मीडीया हो हल्ला मचाने लगता है . जनता नेताओ को याद दिलाने लगती है कि तुमको चुना ही इसलिये था कि तुम पाकिस्

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सिफारिशी घंटी का सवाल है बाबा

16 मई 2017
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व्यंग एक सिफारिशी घंटी का सवाल है बाबा विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्रvivekranjan.vinamra@gmail.com अब तो मोबाईल का जमाना आ गया है , वरना टेलीफोन के जमाने में हमारे जैसो को भी लोगो को नौकरी पर रखने के अधिकार थे . और उन दिनो नौकरी के इंटरव्यू से पहले अकसर सिफारिशी टेलीफोन आना बड़ी कामन बात थी . से

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तर्जनी बनाम अनामिका

22 मई 2017
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व्यंगअनामिका विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्रvivekranjan.vinamra@gmail.com, ७०००३७५७९८मेरी एक अकविता याद आ रही है ,जिसका शीर्षक ही है "शीर्षक".कविता छोटी सी है , कुछ यूंएक कविताएक नज्म एक गजल हो तुम तरन्नुम में और मैं महज कुछ शब्द बेतरतीब से जिन्हें नियति ने बना दिया है तुम्हारा शीर्षक और यूंमिल गया है

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आधी रात को कोर्ट में

18 मई 2018
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गर्मी

27 मई 2018
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अपनी अपनी सुरंगों में कैद

19 अगस्त 2018
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व्यंग्य अपनी अपनी सुरंगों में कैद विवेक रंजन श्रीवास्तव थाईलैंड में थाम लुआंग गुफा की सुरंगों में फंसे बच्चे और उनका कोच सकुशल निकाल लिये गये. सारी दुनिया ने राहत की सांस ली .हम एक बार फिर अपनी विरासत पर गर्व कर सकते हैं क्योकि थाइलैंड ने विपदा की इस घड़ी में न केवल भ

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