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शायद ये पागलपन है

14 सितम्बर 2017

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चमचमाती बडी सड़कें... सिक्सलेन आठ लेन वाली सड़क... हाइवे.. फ्लाई ओवर... इन सब को देख कर सभी खुश होते हैं स्पीड से दौड़ती गाड़ियां नये भारत की नई तस्वीर हैं, पर इस सारे तामझाम में मुझे हमेशा कुछ पीछे छूटा सा कुछ टूटा सा लगता है. मेरी आँखों में वही पुरानी सड़क तैरने लगती है जिसके दोनों तरफ घने पेड़ थे, जिनकी छाया में गाड़ी रोक कर हम आलू पूरी खा लेते थे .बरसों पुराने उन पेड़ों को काट कर रास्ते के बना लिये पर नये पेड़ लगाना भूल गए.... अब तरसते हैं छाया के एक टुकड़े के लिए बारिश की एक बौछार के लिए ...क्या हम उन सभी पेड़ों को बचाते हुए कोई रास्ता नहीं बना सकते थे.... फर्राटे से दौड़ती गाड़ियों के बीच ऐसा सोचना भी शायद पागलपन लगता है .

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