चाय भी कि अब जैसे शराब हो गयी है
ऐ इश्क़ मेरी ज़िंदगी ख़राब हो गयी है
पहले तो हँसता था मैं सितारों के साथ
अब हँसी भी मेरी तार-तार हो गयी हैं
तेरी मुहब्बत में अब जागते न सोते हैं
रोते हैं यूँ कि सेहत बेकार हो गयी है
मेरी दिल्लगी का आलम कि क्या कहें
ज़िंदगी मेरी मुझसे नाराज हो गयी है
कुछ ही तो दिन हुए या सदियाँ गुजर गईं
यूँ मिली मुझसे जैसे बेज़ार हो गयी है
दिल को बना रखा है कोठी तवाइफ की
आशिक़ी ना हुई कारोबार हो गयी है
गलतियाँ नहीं करता कि ये दर्द है उनको
जुबानें उनकी अब बेरोजगार हो गयी हैं
जबसे दिया है दिल बेदिल ही फिरता हूँ
नींद भी कि अब जैसे हराम हो गयी है
मार तो दी है कि मेरे आशिक़ों ने जो
रूह अब "कुमार" की मज़ार हो गयी है