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3. ग़ज़ल

4 जनवरी 2023

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चाय भी कि अब जैसे शराब हो गयी है

ऐ इश्क़ मेरी ज़िंदगी ख़राब हो गयी है


पहले तो हँसता था मैं सितारों के साथ

अब हँसी भी मेरी तार-तार हो गयी हैं


तेरी मुहब्बत में अब जागते न सोते हैं 

रोते हैं यूँ कि सेहत बेकार हो गयी है


मेरी दिल्लगी का आलम कि क्या कहें

ज़िंदगी मेरी मुझसे नाराज हो गयी है


कुछ ही तो दिन हुए या सदियाँ गुजर गईं

यूँ मिली मुझसे जैसे बेज़ार हो गयी है


दिल को बना रखा है कोठी तवाइफ की

आशिक़ी ना हुई कारोबार हो गयी है


गलतियाँ नहीं करता कि ये दर्द है उनको

जुबानें उनकी अब बेरोजगार हो गयी हैं


जबसे दिया है दिल बेदिल ही फिरता हूँ

नींद भी कि अब जैसे हराम हो गयी है


मार तो दी है कि मेरे आशिक़ों ने जो

रूह अब "कुमार" की मज़ार हो गयी है




नकुल कुमार की अन्य किताबें

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रचनाएँ
सवा हाथ ज़िंदगी
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प्रस्तुत पुस्तक एक ग़ज़ल संग्रह है जिसमें स्वरचित ग़ज़लें संग्रहित हैं। ग़ज़ल ऐसी विधा है जो वर्तमान में अधिक पसंद की जा रही है जिसके माध्यम से कठिन बातों को भी आसानी से कहा जा सकता है
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1. ग़ज़ल

4 जनवरी 2023
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मैं  भी  कर  सकता  हूँ  पूरी  बारिशों की कमी छोड़ कर  तेरे  होठों  पे अपने  होठों  की  नमी कोई  चखे  या  ना  चखे, मुझे  तो   चखने  दे लगती   है  तू  पानी  की  कोई   बूँद  शबनमी तेरे   बदन  के

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2. ग़ज़ल

4 जनवरी 2023
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उलझे हुए हिसाब  की  किताब बन जाऊँगा बे-पैरहन तेरे जिस्म का लिबास बन जाऊँगा रूह बन  उतर  जाऊँगा  तेरे  जिस्म के अंदर तुझे  चाँद  कहुँगा और तेरा दाग बन जाऊँगा तू  बरसती  रहेगी  यूँ  ही  उम्र  भर  मु

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3. ग़ज़ल

4 जनवरी 2023
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चाय भी कि अब जैसे शराब हो गयी है ऐ इश्क़ मेरी ज़िंदगी ख़राब हो गयी है पहले तो हँसता था मैं सितारों के साथ अब हँसी भी मेरी तार-तार हो गयी हैं तेरी मुहब्बत में अब जागते न सोते हैं  रोते हैं यूँ कि

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