उलझे हुए हिसाब की किताब बन जाऊँगा
बे-पैरहन तेरे जिस्म का लिबास बन जाऊँगा
रूह बन उतर जाऊँगा तेरे जिस्म के अंदर
तुझे चाँद कहुँगा और तेरा दाग बन जाऊँगा
तू बरसती रहेगी यूँ ही उम्र भर मुझ पर
बुझाए न बुझूँगा ऐसी आग बन जाऊँगा
ले जाऊँगा तुझे मैं उन पाक अंधेरों तक
चिराग बनूँगा, तेरे होठों पर बुझ जाऊँगा
तेरे कूल्हे का तिल हूँ, छुपायेगी कब तक
"कुमार" आएगा जब भी, मैं नजर आ जाऊँगा