shabd-logo

2. ग़ज़ल

4 जनवरी 2023

26 बार देखा गया 26

उलझे हुए हिसाब  की  किताब बन जाऊँगा

बे-पैरहन तेरे जिस्म का लिबास बन जाऊँगा

रूह बन  उतर  जाऊँगा  तेरे  जिस्म के अंदर

तुझे  चाँद  कहुँगा और तेरा दाग बन जाऊँगा

तू  बरसती  रहेगी  यूँ  ही  उम्र  भर  मुझ  पर

बुझाए  न  बुझूँगा  ऐसी  आग  बन  जाऊँगा

ले  जाऊँगा  तुझे  मैं  उन  पाक  अंधेरों  तक

चिराग  बनूँगा, तेरे  होठों  पर  बुझ  जाऊँगा

तेरे  कूल्हे  का  तिल  हूँ, छुपायेगी  कब  तक

"कुमार" आएगा जब भी, मैं नजर आ जाऊँगा

नकुल कुमार की अन्य किताबें

3
रचनाएँ
सवा हाथ ज़िंदगी
0.0
प्रस्तुत पुस्तक एक ग़ज़ल संग्रह है जिसमें स्वरचित ग़ज़लें संग्रहित हैं। ग़ज़ल ऐसी विधा है जो वर्तमान में अधिक पसंद की जा रही है जिसके माध्यम से कठिन बातों को भी आसानी से कहा जा सकता है
1

1. ग़ज़ल

4 जनवरी 2023
5
3
2

मैं  भी  कर  सकता  हूँ  पूरी  बारिशों की कमी छोड़ कर  तेरे  होठों  पे अपने  होठों  की  नमी कोई  चखे  या  ना  चखे, मुझे  तो   चखने  दे लगती   है  तू  पानी  की  कोई   बूँद  शबनमी तेरे   बदन  के

2

2. ग़ज़ल

4 जनवरी 2023
4
1
0

उलझे हुए हिसाब  की  किताब बन जाऊँगा बे-पैरहन तेरे जिस्म का लिबास बन जाऊँगा रूह बन  उतर  जाऊँगा  तेरे  जिस्म के अंदर तुझे  चाँद  कहुँगा और तेरा दाग बन जाऊँगा तू  बरसती  रहेगी  यूँ  ही  उम्र  भर  मु

3

3. ग़ज़ल

4 जनवरी 2023
2
0
0

चाय भी कि अब जैसे शराब हो गयी है ऐ इश्क़ मेरी ज़िंदगी ख़राब हो गयी है पहले तो हँसता था मैं सितारों के साथ अब हँसी भी मेरी तार-तार हो गयी हैं तेरी मुहब्बत में अब जागते न सोते हैं  रोते हैं यूँ कि

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए