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मुश्किल है अपना मेल प्रिये

25 अगस्त 2017

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तुम तेज चमकीली मांझे सी मै सीदा सादा सद्दा प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये तुम वैलेंटाइनडे सी महकी महकी मै जून की तपती धुप प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये तुम रसभरी सी रसीली मै कड़वे करेले जैसा तुम नई नवेली मैट्रो सी मै पैसेंजर का जनरल कोच प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये तुम गुलाब सी महको घर में मै बबुल का देसी झाड़ प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम जातिगत रुझान सी मैं "आडवाणी" सा लाचार हूँ तुम "कोविंद" सी नयी नवेली मैं संविधान की हार प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये तुम आरक्षण की चमक चांदनी मैं जनरल की काली रात प्रिये तुम "40%" पर आई मुस्कान हो मैं "कट ऑफ" की मार प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये तुम "अच्छे दिन" के सपने सी मैं "कश्मीर" का हालात प्रिये तुम समानता के बजते ढोल सी मैं समानता की आस प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये..... #अल्फाज़

arvIND अल्फ़ाज़ की अन्य किताबें

S K VERMA

S K VERMA

सुनील जोगीजी की प्रसिद्ध कविता "मुश्किल है अपना मेल प्रिये'' को अच्छा आगे आयाम दिया है. मूल लेखक का संकेत/सन्दर्भ देने की सौजन्यता अपेक्षित है.

27 अगस्त 2017

नरेंद्र केशकर - Narendra Keshkar

नरेंद्र केशकर - Narendra Keshkar

अति सुन्दर कविता।

25 अगस्त 2017

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स़फ़र

23 अगस्त 2017
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उस रास्ते को कितना गुरुर हैजो उनकी गली तक जाता है.....कभी देखा है उसे गौर सेकितना मचलता है, इतराता है...उस दर की बात क्या कहूँ *अल्फ़ाज़*उसके दीद़ को ख़ुदा भी सर छुकाता है...मैं सोचता हूँ हर वर्क उसेवो जो दिल से बहकर लहू मे बस जाता है...#अल्फ़ाज़

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याद

23 अगस्त 2017
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अब तो याद भी थकी जाती है.....तू लौट के आजामेरी खाक़ भी तुझे बुलाती है....तू लौट के आजाबरसों बीत गये तेरी आहट सुने...तू लौट के आजाअब तो कब्र में भी सिहर उठता हूँ...तू लौट के आजा#अल्फ़ाज़

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यादें

23 अगस्त 2017
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क्या तुझे याद हैवो मेरा तेरी गली मे चुपचाप गुजर जाना...तुझे देखकर खिड़की परअनदेखा कर जानाऔर फिर दूर तलकउस खिड़की को तकना...क्या तुझे याद हैवो जगहजहां तू ठहरती थीकुछ पल के लियेउस जगह बेवजहतेरा इंतजार करनातेरे एक दीद की खातिरहर सुबह को शाम करना.....क्या तुझे याद है...क्या तुझे याद होगा..कोई पल वो गुजरा

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रंगरेज

24 अगस्त 2017
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रंगरेज मेरे उस रंग में रंगना,जिस रंग में रंगे हैं चांद और सूरज, रंग तू लेना मिट्टी का, कुछ पानी उसमें मिला देना,रंग लेना केसरिया थोड़ा हरा मिला देना ।। रंगरेज मेरे उस रंग में रंगना, जिसमें रंग में रंगे तुने सितारे,जिसमें सारे भाव भरे हैं अंतहीन रंग वो सारे ।। रंगरेज मेरे उस रंग में रंगना जिस रंग का

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इश्क़

24 अगस्त 2017
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इश्क में जीने का भी एक मजा है,गर तुम्हें गम उठाने का सलीका है ।#अल्फ़ाज़

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इश्क़

24 अगस्त 2017
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इश्क में जीने का भी एक मजा है,गर तुम्हें गम उठाने का सलीका है ।#अल्फ़ाज़

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निशां

24 अगस्त 2017
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तुझे याद भी नहीं होगी वो एक पुरानी तस्वीर जिसमे तूने बिंदी लगाई है....मैं हर रात उसे चाँद समझ कर देख लेता हूँ.......वो नारंगी रंग की चूडिय़ां जो पहनी थी तूने उस दिन....हर सुबह उसे मैं आफ़ताब की तरह देख लेता हूँ...वो कदमों के निशां जो बने थे गीली मिट्टी पर कभी, तुझे याद भी नहीं होगा.....मैं आज भी वहाँ

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प्रेम

24 अगस्त 2017
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वो इश्क है जो सुध बुध भुला देता है...वो जो मीरा को दीवानी कर देता है...वो जो राधा बनता है अज़ान मे...वो जो काबा को कृष्ण कर देता है....#अल्फ़ाज़

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मुश्किल है अपना मेल प्रिये

25 अगस्त 2017
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तुम तेज चमकीली मांझे सीमै सीदा सादा सद्दा प्रियेमुश्किल है अपना मेल प्रियेतुम वैलेंटाइनडे सी महकी महकीमै जून की तपती धुप प्रियेमुश्किल है अपना मेल प्रियेतुम रसभरी सी रसीलीमै कड़वे करेले जैसातुम नई नवेली मैट्रो सीमै पैसेंजर का जनरल कोच प्रियेमुश्किल है अपना मेल प्रियेतुम गुलाब सी महको घर मेंमै बबुल का

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ताउम्र

29 अगस्त 2017
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मैं उसे ढूंढ रहा थाऔर वो मुझे,दोनों एक ही छत के नीचे,एक दूसरे को ढूंढते रहेताउम्रकुछ ख्वाब थे उसके,कुछ ख्याल थे मेरे भीमिलते रहे हम यूं तो,पर मिल न सकेताउम्र#अल्फाज़

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मैं

29 अगस्त 2017
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मैं तेरी बांसुरी बनु,तेरे साथ रहूँ, तेरे होंठो तक आऊँ,मोर पंख बनु,तेरी सुंदरता और बढ़ाऊं,गर कुछ न बन सकूँ तो,धूल बनु तेरी राहों में बिखरुं,तेरे चरणों पर मिट जाऊं,#अल्फ़ाज़

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इश्क

1 सितम्बर 2017
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वो इश्क जो बंदिशों में घुट जाता है,वो जो बेखबर अल्फाजों में सिमट जाता है,वो इश्क कहां जो मिट जाता है......इश्कइश्क तो हवाओं मे बिखर जाता है,हर जर्रे मे महक जाता है,वो जो खुदा हो जाता है...#अल्फ़ाज़

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कश्मकश

2 सितम्बर 2017
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वो साथ भी है क़रीब भी है,उसको देखें कि उससे बात करें.......क्यों अल्फ़ाज़ों में बांधें इश्क़ को,क्यों हम उनको नाराज़ करें..........चलो सिमट जायें उनके पहलू में,इस आगाज़ का कुछ अंजाम करें ।#अल्फ़ाज़

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प्रद्मुम्न

11 सितम्बर 2017
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काश,प्रद्मुम्न किसी पार्टी का वोटर होतातो वो सोनिया का भाषण होतामोदी की आंखों की नमी होताकाशप्रद्मुम्न किसी पार्टी का वोटर होताकाश कि वो ओवैसी का मुसलमान होताकाश वो अमित शाह का हिन्दू होतावो JNU का वामपंथी होताकाश कि वो देश नहीं एक चित्र होताकाशप्रद्मुम्न किसी पार्टी का वोटर होता#अल्फ़ाज़

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देश

12 सितम्बर 2017
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झण्डे बदल गये हैं पर,बन्दे वही निकल रहे हैं ।हथकंडे बदल गये लेकिन,धंधे वही चल रहे हैं ।कुछ ने लूटा खामोशी से,कुछ भाषणों से निगल रहे हैं ।देश जल रहा है राजा का,और वो विदेशों में टहल रहे हैं ।#अल्फ़ाज़

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मुझे गर्व है

15 सितम्बर 2017
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मुझे गर्व हैमुझे गर्व है इस देश पर गर्व है देश की शासन परभ्रष्टाचारियों में अनुशासन परगर्व है अंधी बहरी सरकारों पर जातिगत अत्याचारों पर ।मुझे गर्व हैमुझे गर्व है इस देश परगर्व है देश के घोटाले परगर्व है आरक्षित नारों परलाशों पर होती राजनीति परगर्व नेताओं की देशभक्ति पर मुझे गर्व है मुझे गर्व है देश

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समझ लेना

16 सितम्बर 2017
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अगर मैं ख़ामोशी बोलूं, तुम मनमोहन समझ लेना....मैं अगर निंदा बोलूं, तुम राजनाथ समझ लेना ....मैं बोलूं आरक्षण तो तुम मोदी समझना,बच्चों की गलती बोलूं तो मुलायम समझ लेना....आलू की फैक्ट्री बोलूं तो राहुल,नर मादा (नर्मदा) बोलूं तो सोनिया समझ लेना...नीतीश नीतीश बोलूं तो लालू और अगर मोदी मोदी तो केजरीवाल स

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अल्फ़ाज़

18 सितम्बर 2017
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खुदा की यूं सूरत तलाश न कीजिये,जहां दिखे इश्क वहां सर झुका दीजिये.....कुछ तो वफ़ा कीजिये बन्दगी से अपनी,इश्क किया है तो उसका एहतराम कीजिये.....वो जो न मिले उस मोड़ पे तो गम नहीं मुझे,ये क्या कम है कि हर मोड़ उसके नाम कीजिये.....देखता सुनता हर शै वो सांस है मेरी,वो मैं है मेरा उसे हमनाम कीजिये......चलिय

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व्यंग्य

30 सितम्बर 2017
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सोनिया बैठी छत परवाईट मारबल बिछाय,राजीव गांधी खेती करैलाल मिर्च उगाय,लाल मिर्च उगाय बोले चमचे बलिहारी,मैं कहूँ लाला अरविन्दइनकी मति गई है मारीखेती का नया तरीकाराहुल बाबा लाय,छोड़ धरती मैय्या कोदेखो फैक्ट्री में इसने आलू लिये बनाय,आलू लिये बनायबोले चमचे बलिहारी,मैं कहूँ लाला अरविन्दइनपै आफत अबकै भारी#

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हिन्दू

13 अक्टूबर 2017
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हिन्दू पर हो रहे अत्याचार,देखकर भी हिन्दू मौन है ।हिन्दुत्व रक्षक राजा है तो,ये अत्याचार करता कौन है ।जल रहा केरल जल रहा बंगाल है,गोधरा में जो जला वो हिन्दू कौन है ।कश्मीरी पंडित खो गये,रोहिंग्या पर सत्ता मेहरबान है ।मरता है कोई गैर तो अधर्म,हिन्दू कत्ल पर धर्मनिरपेक्षता मौन है ।#अल्फ़ाज़

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शुभकामनाएं

19 अक्टूबर 2017
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जगमग जगमग दीप जले हैं,ज्योति पुंजों से महके जग है,अनंत उजियारा जीवन में,फिर क्यों अंधियारा अंर्तमन में,आओ मिलजुल दीप जलायें,भीतर का अंधियारा मिटायें ।#अल्फ़ाज़

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