क्या तुझे याद है
वो मेरा तेरी गली मे
चुपचाप गुजर जाना...
तुझे देखकर खिड़की पर
अनदेखा कर जाना
और फिर दूर तलक
उस खिड़की को तकना...
क्या तुझे याद है
वो जगह
जहां तू ठहरती थी
कुछ पल के लिये
उस जगह बेवजह
तेरा इंतजार करना
तेरे एक दीद की खातिर
हर सुबह को शाम करना.....
क्या तुझे याद है...
क्या तुझे याद होगा..
कोई पल वो गुजरा हुआ
अक्सर तन्हाई मे सोचता हूँ मैं....
#अल्फाज़