"सोनू!खिड़की दरवाजे बंद कर दो जो बालकनी की तरफ खुलते है।बहुत धुआं आ रहा है।देखो दादी की खांसी बढ़ाने लगी है।और तुम्हे भी कल से जुकाम हो रहा है ।"पीयूष ने सोनू को लगभग डांटते हुए बोला।"प्लीज पापा थोडी देर और देखों ना बच्चे दीपावली के चार दिन पहले ही पटाखे फोडने लगे है।आप मुझे कब पटाखे दिलाओ गे।"
दिल्ली के एक घर की सुबह मे बाप बेटे के बीच ये संवाद चल रहा था।पीयूष एक कम्पनी में कार्यरत था।बेटा सोनू चार साल का पटाखो की जिद कर रहा था।चार दिन बाद दीपावली थी।बच्चो का स्वभाव ही होता है जब तक उन्हे अपनी मन की चीज ना मिले मचलते रहते है।वो ही बात सोनू के साथ थी।सुबह से शोर मचा रखा था ।कभी मम्मी के पास जाता ,कभी दादी के पास जाता ।सभी से यही गुहार लगा रहा था कि पापा को बोलो मुझे पटाखे दिलाये।सोनू की दादी को अस्थमा था।जब से ये पराली जलाने लगे थे किसान तब से दिल्ली एनसीआर मे बिना ठंड के भी धुंध छायी रहती थी।आम लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो रहा था आँखे ऐसे जलती थी जैसे किसी ने मिर्च डाल दी हो आखों मे।फिर बच्चे और बुढ़े ख़ासकर बीमार लोगों का तो घर मे ही रहना मुश्किल था जब तक खिड़की दरवाजे ठीक से ना बन्द हो।फिर भी कमरों मे एयर पयूरिफायर लगाना पडता था।अस्थमा के मरीजों का बुरा हाल था।सोनू की दादी की तबीयत बिगड़ती जा रही थी ।कल ही पीयूष अस्पताल से छुट्टी करा कर लाया था।जब ही पीयूष सोनू को बार-बार खिड़की दरवाजे बन्द करने के लिए बोल रहा था। पर सोनू का बाल मन कहा जानता था प्रदूषण को।बस उसे तो दीपावली पर चकरी बम अनार फोडने थे।सोनू ने जब दादी को बोला तो वह पीयूष से बोली,"लला दिला ला इसे पटाखे ।नही तो ये रो रो कर घर भर देगा।"पीयूष झल्ला उठा।,"माँ तुम देख रही हो ना पराली(खेतों मे फसल काटने के बाद जो शेष रह जाता है) को जलाने से कितना धुआं धुआं हो रहा है।उपर से पटाखो से और प्रदूषण होगा।रहना ही मुश्किल हो जायेगा ।"माँ बोली,"अरे लला एक बच्चे के पटाखे ना जलाने से कौन सा प्रदूषण कम हो जायेगा ।"पीयूष बोला,"माँ अगर सारे लोग यही सोचते रहे तो ये प्रदूषण कभी कम नही होगा अगर हम शुरूआत करेगे तो और लोग भी आगे आयेगे।बस मैने बोल दिया तो बोल दिया।अब की बार पटाखे नही आयेंगे घर मे।"पीयूष पैर पटकता हुआ आफिस चला गया।सोनू सुबकते हुआ अपनी मम्मी की गोद मे जा छिपा।सारा दिन सोनू अनमना सा रहा।दीपावली का मतलब ही बच्चो के लिए अच्छी अच्छी मिठाइयां खाना और पटाखे बजाना होता है।सोनू की माँ ने सास की बीमारी के चलते मीठा कुछ नही बनाया था।अब सोनू किस तरह दीपावली मनाता।बेचारा बड़े दुखी मन से बाल्कनी में खड़ा हो कर दूसरे बच्चो को पटाखे जलाता देख रहा था।ज्यादा देर बाहर बाल्कनी मे खडे रहने से रात को ही सोनू की छाती रुक गयी।उसे सांस ही नही आ रहा था।रात को ही पीयूष सोनू को लेकर डाक्टर के भागा। नेबूलाईजर से भांप दे कर किसी तरह सोनू को सांस लेने लायक किया डाक्टर ने ।पर सख्त हिदायत दी कि मास्क पहनकर ही सोनू घर से बाहर निकलेगा।रात को सोनू अस्पताल से घर आ गया।सुबह जब उसकी ममी ने उसे स्कूल के लिए तैयार किया तो मास्क लगा दिया सोनू के मुँह पर।सोनू स्कूल जाता जाता सोचे जा रहा था ।"मेरा क्या कसूर "जो मै खुली हवा मे सांस नही ले सकता ,दीपावली पर पटाखे नही जला सकता।अगर वो अंकल (किसान)ये पराली क्या बला है वो ना जलाते तो बच्चे बुढ़े खुल कर सांस लेते और पटाखे फोडते हुए दीपावली मनाते।सोनू के पास उसका कोई उत्तर नही था।थी तो बसआँखे नम थी।.................