प्रिय सखी।
कैसी हो ।हम अच्छे है तबीयत मे थोड़ा सुधार हो रहा है । दीपावली के दिन भी नजदीक है ।घर की साफ सफाई कर रहे है ।धीरे धीरे ही हो पाती है ।और दिनों तो बेशक नौकरानी से करवा लूं पर दीवाली की साफ सफाई मे तो स्वयं लगना पड़ता है ।इस लिए आज घर पर ही हूं आज का जो विषय मिला है वो मेरी समझ मे नही आ रहा । यहां विरासत का मतलब जमीन जायदाद से है या गुणों से ।एक तो पारिवारिक विरासत मे जमीन जायदाद मिलती है और एक पारिवारिक विरासत में गुण मिलते है हमे अपने परिवार से।खैर मै दोनों के विषय मे ही लिख रही हूं।
बात करते है आज का विषय:- पारिवारिक विरासत
अब पारिवारिक विरासत दो तरीके की होती है एक तो गुणों के द्वारा हमारे पूर्वजों से हम मे आती है ।और एक हमारे पूर्वजों ने जो कमाया या जमीन जायदाद बनाई वो हमे मिलती है ।सबसे पहले मै गुणों की बात करती हूं ।
मै लड़कियों मे अपने घर मे सबसे छोटी हूं ।हम चार बहनें है ।
हमारी पांच बुआ है ।मुझे याद है हमारी बुआ जी ज्यादा पढी लिखी नही थी । लेकिन वो अच्छों अच्छों को दिलेरी मे और बहादुरी मे मात देती थी ।मेरी सबसे छोटी बुआ जी। मात्र पांच पढ़ी थी ।वो लखनऊ बियाही गयी थी । मुझे याद है एक बार मै बहुत छोटी सी थी मेरी बुआ तीनों बच्चों को लेकर और लगेज मे दस बारह अटेची ,बैग लेकर अकेले ही रात के समय लखनऊ से हमारे घर पहुंच गयी थी मेरे दादाजी ने पूछा ,"जमाई कहां है ?,अकेले आई है ।"
तब मेरी बुआ जी ने रौब से कहा था ,"और नही तो क्या अकेले आई हूं । आप मुझे लड़कों से कम समझते है क्या?"
मतलब दिलेरी कूट कूट कर भरी हुई थी मेरी बुआ जी लोगों मे।
मेरी एक बुआ ने अपना किस्सा बताया कि तेरे फूफाजी को किसी से पैसे लेने थे वो दे नहीं रहा था उल्टा फूफाजी को मारने की धमकी दे रहा था कुछ गुंडा टाइप था ।मेरी बुआ जी को एक दिन ना जाने क्या सूझा । उन्होंने साड़ी पहनी और चल दी उससे पैसे लेने उन्हें पता था उसके पास पेसे तो है पर देने की नीयत नही है सोई जैसे ही उनके घर पहुंची मेरी बुआ ।वो बोला,"आप की हिम्मत कैसे हुई यहां आने की।"उसकी बीवी भी साथ मे थी तो मेरी बुआ जी ने उसकी बीवी को समझाया कि तुम्हारे पति को कहो पैसे दे दे वरना हम हरियाणा वाले है पैसे तो हम टेढ़ी अंगुली करके हलक से निकाल ही लेगे ।और अगर दस पंद्रह मिनट मे मै घर ना पहुंची तो पुलिस यहां पहुंच जाएगी । क्योंकि मै पुलिस को फोन करके आ रही हूं कि मेराकोई किडनैप कर रहा है।
सच मानों सखी उस बन्दे ने एक मिनट में दो लाख रुपए निकाल कर मेरी बुआ की हथेली पर रख दिए।
बस ऐसी ही दिलेरी और बहादुरी हम बहनों मे भी है मुझ मे कुछ ज्यादा ही है ।यही पारिवारिक विरासत हमे मिली है।
जिसे हमारी ससुराल मे नाम मिला बतकुटी का ।मै अब भी अपने पतिदेव से ज्यादा एक्टिव हूं। ज़मीन जायदाद तो भाई के नाम ही रही सारी। हां ससुराल में करोड़ों की जमीन हुआ करती थी कभी लेकिन आपसी फूट ने सारी मिट्टी मे मिला दी ।वरना वो पारिवारिक विरासत होती तो मेरे बच्चों के कुछ और ही ठाठ होते ।
अब चलती हूं सखी ,तुमसे बातें करने लगती हूं तो समय का पता ही नही चलता।अब अलविदा।