✍🏻 राजनीति ✍🏻
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लोकतंत्र इतिहास में संबंधों की रेल।
ऊँट-बैल का गठबंधन रिश्ते बड़े बेमेल।।
वोटर गिना करते सभी,कर करके अपमान।
गरीब की जोरू बना, मतदाता और मतदान।।
हर दुःशासन के हाथ में लोकतंत्र का चीर।
किससे रहे महफ़ूज,अन्धभक्तों की तकदीर।।
राजनीति के मंच पर ख़ूनी,डाकू,गुण्डे संत दरवेश।
जनता बड़ी तकलीफ़ में,कैसा हो गया अपना देश।।
चुनावों के पर्व में सही होता रहे यह मतदान।
दारू,दमड़ी,धाक से बिकता वोटर बना इंसान।।
लोकतंत्र की नाव पर असंयमित वामाचार।
हथियारों का आसरा,अमर्यादित उम्मीदवार।।
राजनीति तुम नंगी हो,घृणित-गंदी- लज्जाहीन।
आदर्शों के झीने आवरण,अन्तःकरण विहीन।।
शासन,कानून,न्याय तेरे हो गये अन्तःवस्त्र।
आदर्श,मोहक नारों में,है तेरा सौन्दर्य रहित तंत्र।।
सजा संवरा रूप बना लुभाती रही सरकार।
पंचवर्षीय पगली जनता,देखती सपने निराधार।।
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गोविन्द सिंह चौहान
06-09-17