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राजनीति

6 सितम्बर 2017

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✍🏻 राजनीति ✍🏻 """"""""""""""""""""""" लोकतंत्र इतिहास में संबंधों की रेल। ऊँट-बैल का गठबंधन रिश्ते बड़े बेमेल।। वोटर गिना करते सभी,कर करके अपमान। गरीब की जोरू बना, मतदाता और मतदान।। हर दुःशासन के हाथ में लोकतंत्र का चीर। किससे रहे महफ़ूज,अन्धभक्तों की तकदीर।। राजनीति के मंच पर ख़ूनी,डाकू,गुण्डे संत दरवेश। जनता बड़ी तकलीफ़ में,कैसा हो गया अपना देश।। चुनावों के पर्व में सही होता रहे यह मतदान। दारू,दमड़ी,धाक से बिकता वोटर बना इंसान।। लोकतंत्र की नाव पर असंयमित वामाचार। हथियारों का आसरा,अमर्यादित उम्मीदवार।। राजनीति तुम नंगी हो,घृणित-गंदी- लज्जाहीन। आदर्शों के झीने आवरण,अन्तःकरण विहीन।। शासन,कानून,न्याय तेरे हो गये अन्तःवस्त्र। आदर्श,मोहक नारों में,है तेरा सौन्दर्य रहित तंत्र।। सजा संवरा रूप बना लुभाती रही सरकार। पंचवर्षीय पगली जनता,देखती सपने निराधार।। 🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵 गोविन्द सिंह चौहान 06-09-17

govind singh की अन्य किताबें

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विवश होती रही कविता

4 सितम्बर 2017
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✍🏻 विवश होती कविता✍🏻""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""गोविन्द सिंह"""""""""""""""कवि सम्मेलनों की रात मेंमाईकों पर चढ़ती रही कविताविविध श्रृंगारों मेंश्रृंगारित कविताचांद- सितारो से सजीगीत-गानों में रचीप्यार पर बेहयाई उस रात भी हुईशर्माती,सकुचाती रही कविताबागबां की कथा कलियों-फूलों के कूँचों

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जीवन जगत तन

4 सितम्बर 2017
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✍🏻 जीवन- जगत- तन....✍🏻""""""""""""""""""""""""""""""""""""चलो! अब तो दुनियां पर कविता कर लेंडूब रही है कश्तीयां इंसानियत की आजसमन्दर भी परेशान हैगहराईयों को खोकरबून्दों की अतृप्त प्यासबुलबुला बनकर समा जाऐगीउसी में जिससे आई थी,जैसे रेत घड़ी में से रेत,कण-कण खिसक करदूसरे हिस्से में समा रही हैभागते-द

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राजनीति

6 सितम्बर 2017
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"क्योंकि तुम युवा हो...

6 सितम्बर 2017
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✍🏻क्योंकि तुम युवा हो..✍🏻"""""""""""""""""""""""""""""""""""मन भटक रहा है तुम्हारा अभीऔर भाग रहे होसब कुछ पाने कोएक पल में आकाश छू लेने कोआतुर है मन तुम्हाराआकुल है,व्याकुल हैकुछ कर गुजरने कोअपनी फौलादी मुठ्ठी मेंमंजिल की राह भरने कोक्योंकि तुम युवा हो।जिन्दगी के लिऐ तुम्हारालोभ बन रहा है"मैं"बन र

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"आदमी"

6 सितम्बर 2017
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✍🏻 आदमी। ✍🏻""""""""""""""""""""""""""""दुनियां बियाबान है और जमीं पर नहीं आदमीदूर तक तलक ढूँढें फिर भी नजर नहीं आदमीफ़रेब नदी के किनारे,लम्बी क़तार का साया भी हैख़ामोश दरिया जरूर हैं मगर संगतर नहीं आदमीबदलते रहे जिन्दगी के अन्दाज और चेहरेउम्र भी हैरान है पर खुश भर नहीं आदमीजल-जल कर थक गये धागे

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"विवश होती रही कविता"

6 सितम्बर 2017
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✍🏻 विवश होती कविता✍🏻""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""गोविन्द सिंह"""""""""""""""कवि सम्मेलनों की रात मेंमाईकों पर चढ़ती रही कविताविविध श्रृंगारों मेंश्रृंगारित कविताचांद- सितारो से सजीगीत-गानों में रचीप्यार पर बेहयाई उस रात भी हुईशर्माती,सकुचाती रही कविताबागबां की कथा कलियों-फूलों के कूँचों

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आजादी के दिवाने

19 सितम्बर 2017
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✍🏻आजा़दी के दिवाने...✍🏻द़ाग गुलामी का धोकर वोे रंग आज़ादी का ले आऐ।मस्तक बोकर धरती में,दुशमन से शहजादी ले आऐ।।सन् सत्तावन के महासमर में मंगल पाण्डे वीर लड़ा था।काटे मस्तक दुश्मन के,गोरों का दल कमजोर पड़ा था।।लक्ष्मी थी वो दुर्गा थी मराठी स्वयं वीर अवतारी थी।देख मराठे पुलकित होते वो युद्ध सिंहनी एक न

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जिन्दगी

19 सितम्बर 2017
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✍🏻🕷🕸जिन्दगी🕸🕷✍🏻"""""""""""""""""""""""""""""""सांसों की सरगम में सिकता हुआमानव तन-मन सेसवाल सीधा ज़हन मेंतपता हुआ आता हैजिन्दगी क्या है??सच कहूँ तो.....मुझे लगता है,दुःख का पान लगातीसुख का कत्था छाँटतीखुशियों का मुँह लाल करतीलाल-गुलाल हैं जिन्दगी।सवालों-जवाबों की सरहदों मेंउलझती-सुलझती जीवन केन

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जिन्दगी तमाम होती रही

12 अक्टूबर 2017
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✍🏻जिन्दगी तमाम होती है ✍🏻कहते हैं कि अनमोल होती है जिन्दगी, इसकामोल नहीं होता,करीब के रिश्तों में जिन्दगीतौल नहीं होता।कैसे संभालें तुम्हें ,ऐ जिन्दगी!तुम्हें संभाले या तेरे उसूलों कोक्योंकि,अपनों के साथ अपना भीफ़र्ज होता हैखुशीयों की हर चाहत भीक़र्ज होता है।अपनों और खुशीयों केदरमियाँ अक्सर किसी शाम

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