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जीवन जगत तन

4 सितम्बर 2017

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✍🏻 जीवन- जगत- तन....✍🏻 """""""""""""""""""""""""""""""""""" चलो! अब तो दुनियां पर कविता कर लें डूब रही है कश्तीयां इंसानियत की आज समन्दर भी परेशान है गहराईयों को खोकर बून्दों की अतृप्त प्यास बुलबुला बनकर समा जाऐगी उसी में जिससे आई थी, जैसे रेत घड़ी में से रेत, कण-कण खिसक कर दूसरे हिस्से में समा रही है भागते-दौड़ते पलों में थमता नहीं सुनहरी रेत सा जीवन। रिश्तों की नाटक मण्डली में पात्र बदलते है,स्वांग बदल कर थोड़ी-थोड़ी देर में बिछड़ते,फिर मिल जाते हैं हँसाते,गुदगुदाते, सहलाते, कभी गहरे घाव दे जाते है कथानक का नायक नहीं है कोई जो कहानी थामे अन्त तक चले सिर्फ मरीचिका है,छलावा है अवनिका सा बदल जाता है जीवन। मूल्य विहीन लक्ष्य पथ पर स्वप्न वायु पंखों में भर कर कब तक गगन में उड़ते रहेंगे? पाबन्द है जीवन-जगत-तन जर्जर तो होंगे ही। अवसर की प्रतीक्षा में छूटता जगत,मायूसियां सजा लेता है मधुरता जीने की,सृजन की, बसंत और पतझड़ की सांसों तक सीमित है आनन्द सरिता इस संसार की दौड़ से पहले जान लेता जीवन।। ❄❄❄❄❄❄❄❄ गोविन्द सिंह चौहान 01-09-17

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विवश होती रही कविता

4 सितम्बर 2017
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✍🏻 विवश होती कविता✍🏻""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""गोविन्द सिंह"""""""""""""""कवि सम्मेलनों की रात मेंमाईकों पर चढ़ती रही कविताविविध श्रृंगारों मेंश्रृंगारित कविताचांद- सितारो से सजीगीत-गानों में रचीप्यार पर बेहयाई उस रात भी हुईशर्माती,सकुचाती रही कविताबागबां की कथा कलियों-फूलों के कूँचों

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राजनीति

6 सितम्बर 2017
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✍🏻 राजनीति ✍🏻"""""""""""""""""""""""लोकतंत्र इतिहास में संबंधों की रेल।ऊँट-बैल का गठबंधन रिश्ते बड़े बेमेल।।वोटर गिना करते सभी,कर करके अपमान।गरीब की जोरू बना, मतदाता और मतदान।।हर दुःशासन के हाथ में लोकतंत्र का चीर।किससे रहे महफ़ूज,अन्धभक्तों की तकदीर।।राजनीति के मंच पर ख़ूनी,डाकू,गुण्डे संत दरवेश।जनत

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"क्योंकि तुम युवा हो...

6 सितम्बर 2017
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✍🏻क्योंकि तुम युवा हो..✍🏻"""""""""""""""""""""""""""""""""""मन भटक रहा है तुम्हारा अभीऔर भाग रहे होसब कुछ पाने कोएक पल में आकाश छू लेने कोआतुर है मन तुम्हाराआकुल है,व्याकुल हैकुछ कर गुजरने कोअपनी फौलादी मुठ्ठी मेंमंजिल की राह भरने कोक्योंकि तुम युवा हो।जिन्दगी के लिऐ तुम्हारालोभ बन रहा है"मैं"बन र

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"आदमी"

6 सितम्बर 2017
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✍🏻 आदमी। ✍🏻""""""""""""""""""""""""""""दुनियां बियाबान है और जमीं पर नहीं आदमीदूर तक तलक ढूँढें फिर भी नजर नहीं आदमीफ़रेब नदी के किनारे,लम्बी क़तार का साया भी हैख़ामोश दरिया जरूर हैं मगर संगतर नहीं आदमीबदलते रहे जिन्दगी के अन्दाज और चेहरेउम्र भी हैरान है पर खुश भर नहीं आदमीजल-जल कर थक गये धागे

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"विवश होती रही कविता"

6 सितम्बर 2017
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✍🏻 विवश होती कविता✍🏻""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""गोविन्द सिंह"""""""""""""""कवि सम्मेलनों की रात मेंमाईकों पर चढ़ती रही कविताविविध श्रृंगारों मेंश्रृंगारित कविताचांद- सितारो से सजीगीत-गानों में रचीप्यार पर बेहयाई उस रात भी हुईशर्माती,सकुचाती रही कविताबागबां की कथा कलियों-फूलों के कूँचों

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आजादी के दिवाने

19 सितम्बर 2017
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✍🏻आजा़दी के दिवाने...✍🏻द़ाग गुलामी का धोकर वोे रंग आज़ादी का ले आऐ।मस्तक बोकर धरती में,दुशमन से शहजादी ले आऐ।।सन् सत्तावन के महासमर में मंगल पाण्डे वीर लड़ा था।काटे मस्तक दुश्मन के,गोरों का दल कमजोर पड़ा था।।लक्ष्मी थी वो दुर्गा थी मराठी स्वयं वीर अवतारी थी।देख मराठे पुलकित होते वो युद्ध सिंहनी एक न

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जिन्दगी

19 सितम्बर 2017
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✍🏻🕷🕸जिन्दगी🕸🕷✍🏻"""""""""""""""""""""""""""""""सांसों की सरगम में सिकता हुआमानव तन-मन सेसवाल सीधा ज़हन मेंतपता हुआ आता हैजिन्दगी क्या है??सच कहूँ तो.....मुझे लगता है,दुःख का पान लगातीसुख का कत्था छाँटतीखुशियों का मुँह लाल करतीलाल-गुलाल हैं जिन्दगी।सवालों-जवाबों की सरहदों मेंउलझती-सुलझती जीवन केन

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जिन्दगी तमाम होती रही

12 अक्टूबर 2017
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✍🏻जिन्दगी तमाम होती है ✍🏻कहते हैं कि अनमोल होती है जिन्दगी, इसकामोल नहीं होता,करीब के रिश्तों में जिन्दगीतौल नहीं होता।कैसे संभालें तुम्हें ,ऐ जिन्दगी!तुम्हें संभाले या तेरे उसूलों कोक्योंकि,अपनों के साथ अपना भीफ़र्ज होता हैखुशीयों की हर चाहत भीक़र्ज होता है।अपनों और खुशीयों केदरमियाँ अक्सर किसी शाम

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