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जिन्दगी तमाम होती रही

12 अक्टूबर 2017

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✍🏻जिन्दगी तमाम होती है ✍🏻 कहते हैं कि अनमोल होती है जिन्दगी, इसका मोल नहीं होता, करीब के रिश्तों में जिन्दगी तौल नहीं होता। कैसे संभालें तुम्हें ,ऐ जिन्दगी! तुम्हें संभाले या तेरे उसूलों को क्योंकि, अपनों के साथ अपना भी फ़र्ज होता है खुशीयों की हर चाहत भी क़र्ज होता है। अपनों और खुशीयों के दरमियाँ अक्सर किसी शाम कुछ नौंक झौंक हो जाती है,और शाम की बात अगले रोज़ कलह की वज़ह हो जाती है, मन उद्गिन,उदास,बोझिल सांसें तनावों से भरा दिन आँखों में जागती रात होती है, समझौतों से भरी है जिन्दगी तन्हाईयों के आलम में ना सुप्रभात होता है,और ना ही शुभ रात्री का कोई काम होता है नित नये सवालों से सुबह अनुत्तरित प्रश्नों से रात होती है। व्यथाओं के पलों से जिन्दगी तमाम होती है, खुशियों की तलाश में हर रोज गमों से मुलाकात होती है, थके-थके कदमों पर चलती जिन्दा लाश होती है। कुछ गलतफहमियों,बहानों से जिन्दगी बसर हो तो ठीक वरना, संजीदा जिन्दगी तो आखिर बेअसर बेकार होती है , यहाँ जिन्दगी का गुल्लक भी अजीब होता है अन्दर कुछ चिल्लर कुछ नोटों से भरा होता है अहमियत सबकी होती है इसमें नोट अपनी जगह है काम के हिसाब पाई-पाई का भी होता है।। गोविन्द सिंह चौहान 12-10-17 /1.45 pm

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