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मेरा शाही पनीर

19 अगस्त 2018

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*मेरा शाही पनीर* मेरी दिनचर्या में जरूर ऊथल पुथल हो सकती है लेकिन रोजाना एक चीज जरूर सामन्य है माँ से फोन पे बात। शायद ही ऐसा कोई दिन बीता होगा जिस दिन मैने बात न की हो उनसे। जब भी कॉल आता है, माँ का। बस वही रोजाना वाले सवाल, और जिनका उत्तर हमेसा ही एक सा होता है। जैसे, खाने में क्या बना था? दाल कौन सी बनी थी, सब्ज़ी किसकी थी। वहाँ मौसम कैसा है? ज़्यादा बारिश तो नहीं हो रही? रात को नींद तो आती है ना? बहुत देर तक तो नहीं जागता? ड्यूटी ज्यादा तो नहीं करा रहे ? झगड़ा तो नहीं करता न किसी से? दुबला तो नहीं हो गया ? घर कब आएगा? रक्षाबंधन में आ रहा है न? ट्रेन का रिजरवेशन करा लिया है ना? तू ठीक है ना? शायद इन्हीं सवालों के जवाब उसकी तमाम बेचैनियों को शांत करने के लिए काफ़ी हैं। उनकी यह मेरे प्रति बेचैनी स्वाभाविक है। दुनिया की हर माँ जिसका बच्चा घर से बाहर रह रहा है सामान्यतः यही सवाल करती है। इन सवालो के उत्तर भी उन्हे पता रहते है तभी वह अपनी तसल्ली के जरूर पुछती थी। घर जब छोड़ो था तब से वह मेरे खाने को लेकर अक्सर चिंतित रहती थी क्योंकि उनको पता था एक दो चीजो को छोड़ कर मुझे कोई दाल सब्जी पसंद न थी। घर में अक्सर बनने वाली लौकी तरोई कद्दू की सब्जीयां से मैं परेशान था। माँ का जब भी फोन आता अगर मैं उन्हे बता दूं कि यही सब खाने में बना है तो वह समझ जाती थी आज फिर इसने सही से खाना नहीं खाया होगा। समय के साथ मैने इन सब्जियों का नाम बदल दिया जब भी बात होती है अगर खाने विषय में पूछती है तो बोल देता हूं "शाही पनीर" बना है। खैर सब्जिंया आज भी वही खा रहा हूँ लेकिन माँ जरूर मेरे एक झूठ से खुश रहती है।

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