करवटें बदलते बदलते बहुत रात हो गई पर आज नींद नहीं आ रही थी। मन में कुछ अजीब सी बेचैनी और घबराहट बार-बार किसी अनिष्ट को सोचने पर मजबूर कर रही थी, लेकिन मैं अपने दिल को मेरी पत्नी अनामिका की कहीं बात याद करके समझा रहा था, कि उम्र के इस पड़ाव में नींद कम ही आती है और ख्याल ज्यादा आते हैं। इसी बेचैनी में करवटें बदलते हुए रात के करीब 2:00 बज गए थे। अचानक बाहर कुछ शोर सुनकर मैंने चारों ओर नजरे घुमाई तो बैड के दूसरे छोर पर पत्नी अनामिका सबसे बेखबर गहरी नींद में थी। फिर उठकर थोड़ा पानी पिया और खिड़की से बाहर देखा तो ट्विंकल भाभी के घर कुछ लोग इकट्ठा थे। लोगों को इस वक्त यूँ इकट्ठा देख मन की बेचैनी और घबराहट और बढ़ गई और मैं वहीं खड़ा अतीत के पन्नों में खोकर सोचने लगा। शादी होकर आई थी तब कितनी खूबसूरत लगती थी ट्विंकल भाभी। दिन रात उनके चहकते और मुस्कुराते चेहरे ने जल्दी ही सबको अपना बना लिया। उनके मधुर स्वभाव और मीठी बोली से घर के अलावा आसपास, मोहल्ले, पड़ोस के सभी लोग भी उनको बहुत प्यार देते थे। कोई उन्हें बहन मानता तो कोई बेटी कोई बहू मानता तो कोई भाभी। बच्चों की भी चहेती ट्विंकल भाभी ने सबका ही दिल जीत लिया था। लेकिन शादी के कुछ सालों बाद ही उनका हंँसता मुस्कुराता चेहरा मुरझाने लगा। उनको औलाद की चाहत सताने लगी। शादी के तीन साल बाद तक उन्हें कोई औलाद का सुख नहीं मिला। समय पंख लगाकर उड़ने लगा। यूंँ तो किसी बात की कमी नहीं थी घर में। शेखर भैया भी पूरा प्यार देते और ध्यान रखते थे ट्विंकल भाभी का, लेकिन आस पड़ोस में होने वाली कानाफूसी और ताने अब उनके भी कानों तक पहुंचने लगे थे। चारों ओर से टूट चुकी हमेशा चहकने वाली भाभी ने औलाद के लिए नामी से नामी डॉक्टर को दिखाया। हर पत्थर को भगवान मानकर पूजा, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला इसलिए बेचारी टूट गई और घुटने लगी। शादी को पाँच साल हो गए थे पर औलाद का सुख नसीब नहीं हुआ। फिर कहते हैं ना, भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। और एक दिन कुछ हलचल सी हुई। इस हलचल में जैसे बरसों से तपती और सूखी जमीन पर जमकर बरसात हो गई हो। ऐसा ही कुछ ट्विंकल भाभी के साथ भी हुआ। किसकी दुआ ने चमत्कार दिखाया या किस डॉक्टर की दवा ने रंग जमाया यह तो भगवान ही जाने, लेकिन ट्विंकल भाभी की झोली तो खुशियों से भर गई। उनको तो जैसे संसार का सारा सुख मिल गया। मारे खुशी के वह फूली नहीं समाती थी। शेखर भैया भी दुनिया से सुने तानो को भूलकर बहुत खुश रहने लगे थे। एक बार उनके घर खुशियां फिर से दस्तक दे रही थी। आस पड़ोस के जो लोग कुछ कुछ बोलते थे। एक बार फिर भाभी के हितेषी बन गए। समय के साथ उनके एक प्यारे से नन्हे मेहमान ने कदम रखा। भाभी उसे प्यार से शन्टी बुलाती थी। वो सारा दिन अब उसमें ही डूबी रहती थी। कभी उसे नहलाना, कभी उसकी मालिश करना तो कभी उसे दूध पिलाना। भाभी का जीवन तो जैसे शन्टी का लालन-पालन बनकर रह गया था। शन्टी की परवरिश किसी राजकुमार से कम नहीं हो रही थी। उन्हें तो बस अब शन्टी के अलावा कुछ नहीं दिखता था। कभी-कभी तो वह शेखर भैया को भी इग्नोर कर देती थी। वह अक्सर कहा करती थी यह हमारे प्यार की निशानी है इसीलिए मैंने इसका नाम शेखर और ट्विंकल से शंटी रखा है। जब भी उन्हें कोई प्यार से शन्टी की मम्मी कहता तो वे खुशी से फूली नहीं समाती थी। समय बीतने लगा और भाभी के जीवन ने फिर एक नया मोड़ लिया। शेखर भैया एक दिन एक कार एक्सीडेंट में चल बसे। इस हादसे से बहुत रोई थी शन्टी की मम्मी। मुझे आज भी वो पल याद है जब शेखर भैया के चले जाने के बाद वे पहली बार हम लोगों से मिली थी, तो कैसे अनामिका के गले लगकर रोते हुए बोल रही थी, अनामिका मेरा तो अब बस एक शन्टी ही सहारा बचा है। शेखर भैया के जाने के बाद तो यूं भी उनका सारा ध्यान शन्टी में ही था। और फिर आर्थिक परेशानी भी नहीं हो इसलिए उन्होंने शन्टी के स्कूल में ही नौकरी भी कर ली थी। समय निकला शन्टी पढ़ लिख कर बड़ा हुआ, लेकिन शायद ज्यादा लाड प्यार और बिना बाप के पला बडा हुआ शन्टी का स्वभाव खराब होने लगा। वह कभी-कभी तो भाभी से भी उलझ जाता था, पर भाभी हमेशा ही हंस कर टाल देती। वह शन्टी से प्यार ही इतना करती थी। शन्टी जब बड़ा हुआ तो पढ़ लिखकर इंजीनियर बन गया। एक अच्छी कंपनी में उसे जॉब भी मिल गई। वही साथ काम करने वाली एक लड़की से उसने शादी भी कर ली। सब खुश तो थे, लेकिन शन्टी के प्रति भाभी का इतना प्यार शायद बहू को पसंद नहीं आता था। अक्सर नोकझोंक हो ही जाती थी। और फिर धीरे-धीरे शन्टी को भी अपनी मां में ही कमी नजर आने लगी और नोकझोंक झगड़े का रूप लेने लगी। शन्टी का बर्ताव उनके साथ बहुत बुरा हो गया था। बात बात पर उनसे झगड़ा होता। बहू बेटे मिलकर उनकी इस उम्र में सेवा करने की जगह उन्हें परेशानी में डाले रखते। घर का माहौल काफी खराब हो गया था। नतीजा यह हुआ कि भाभी बीमार रहने लगी। लंबे अरसे से बीमार चल रही भाभी के पास एक-दो बार मैं और अनामिका भी मिलने गए थे। भाभी बेचारी अनामिका के सीने से लगकर बहुत रोती थी। अंदर ही अंदर बहुत घुटती थी। कहती थी, क्या यह दिन देखने के लिए ही औलाद का सुख मांगा था। अब नहीं सहा जाता। अब तो मुक्ति मिल जाए और मैं अपने शेखर के पास चली जाऊं तो ही मुझे शांति मिलेगी। उनको यूंँ बेबस और तड़पता देखकर हमारी आंखों में भी आंसू तैर जाते थे। और अब कुछ दिनों पहले तो यहां तक सुना था कि घर में काफी कलह हुई है। उन्हें वृद्ध आश्रम भेज रहे थे बेटे बहू, लेकिन जब भाभी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह घर मेरे शेखर का है और मैं इसे छोड़कर नहीं जाऊंगी तो बाहर बालकनी में चारपाई लगा दी थी उनकी।
अचानक अनामिका ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। मैं रातभर खिड़की के पास ही खड़ा सोचता रहा और कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला। मैंने अनामिका की तरफ मुड़कर देखा तो उसकी आंखों में आंसू थे। क्या हुआ अनामिका, तुम रो क्यों रही हो?
वह मेरे सीने से लगकर जोर से रो पड़ी।
ट्विंकल भाभी नहीं रही। रात वे हमें छोड़कर चली गई। ठंड में बाहर सोने की वजह से उनका खून जम गया और वह हमेशा के लिए ...............।
उनका यूंँ गुजर जाना मुझे आसीन वेदना दे गया। जो शायद कभी कम न हो सके। शन्टी की मम्मी तो चली गई लेकिन हमें सोचने पर मजबूर कर गई, क्या औलाद यह दिन देखने के लिए ही मांगी जाती है? क्या बच्चों को दिया जाने वाला ज्यादा लाड-प्यार ही इंसान का दुश्मन है?