इन बच्चों ने तो जीना हराम कर दिया है। वे हताश छत की ओर देखने लगे , मानो कोई उनके सिर पर कूद रहा हो। उस फ्लैट सिस्टम सोसाइटी में मिस्टर एंड मिसेज राणा अपना रिटायरमेंट जीवन व्यतीत कर रहे थे । चारों ओर सकून और हरियाली थी सोसाइटी में । लेकिन , इस बार फर्स्ट फ्लोर चार लड़कों ने किराए पर ले लिया। जीना हराम हो चला था सब का। दिन भर लड़के लड़कियों का आगमन और रात को तेज ध्वनि में संगीत चलाकर देर रात तक चलने वाली पार्टी से यूं तो पूरी सोसाइटी के लोग तंग आ चुके थे लेकिन राणा दंपति जो उनके नीचे वाले फ्लैट में ही रह रहे थे, कभी-कभी गुस्से में अपने दोनों हाथों से बाल नोचकर ही रह जाते लेकिन, कर कुछ नहीं पाते और अंत में मुंह से यही निकलता, इनमें से एक ऊपर से गिर कर मर जाए तो शांति हो।
एक रात जब राणा से नहीं रहा गया तो हिम्मत करके गए थे, ऊपर सोचते हुए क्या पता अंदर कैसे गुंडे रहते हैं। पहुंचते ही अंदर खींच कर मारपीट कर कपड़े फाड़ डाले तो बुढ़ापे में सारी इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। सोचते-सोचते डोरबेल बजाई तो सारा म्यूजिक थम गया और एक लड़के ने जरा सा मुंह दरवाजे से निकालकर, सारी अंकल कहकर झट से दरवाजा मुंह पर ही खींच दिया।
नीचे आकर लगा पत्नी के सामने झेप मिटाने को, अरे भाई जैसा हम सोचते थे वैसा कुछ भी नहीं है। बेचारे जाते ही माफी मांगने लगे और संगीत बंद करके अब तक तो सो चुके होंगे लेकिन, वाक्य पूरा होने से पहले ही फिर से धप्प-धप्प एक साथ कई जोड़े जूते ताल देते थिरक पड़े।
सत्यानाश हो इनका। बेशर्म कहीं के। कैसे तो सॉरी बोल रहे थे। खैर कब तक नाचेंगे। इन्हें भी तो सुबह उठकर पढ़ने जाना है। अच्छा हो एक ऊपर से गिर कर मर जाए। और राणा दंपति दोनों कानों में रुई ठूसकर सोने की कोशिश करने लगे। बस इसी कोशिश में सुबह हो गई।
रात यदि बिना सोए बीती भी तो क्या? राणा दंपति का गुस्सा और बढ़ गया , सिर में दर्द रहने लगा और शायद बीपी भी बढ़ गया हो, लेकिन बच्चे तो बच्चे ही थे। शायद इसीलिए राणा दंपति को भी कभी-कभी उन्हें देख अपना बचपन याद आने लगता था। उस दिवाली वाले दिन भी तो बच्चों ने खूब रंग जमा दिया था। सोसाइटी के सभी बड़े बुजुर्ग अपने बीते दिनों में खोने लगे। उधर राणा दंपति भी आ बैठे आतिशबाजी का नजारा देखने। बाहर चारों ओर रोशनी और पटाखों की तेज आवाज चाहे कानों में से घुसकर सिर में ढोल नगाड़े ही बजा रही थी, पर किसकी हिम्मत थी उन चारों से कुछ बोलने की। फिर आज तो उनकी पूरी पार्टी का नजारा बाहर ही नजर आ रहा था। चारों के साथ कुछ लड़के - लड़कियों की फौज देखकर लगता था कि सीमा पर लड़ना आसान है, बजाय इनकी खोज से। तो भलाई बस इसी में थी कि इनकी खुशी में ही अपने को रंग लो, पर शायद राणा दंपति को कुंडली में तो यह चारों शनि की साढ़े साती बनकर आ बैठे।
ज्यों ही रॉकेट चलाई ना जाने कहां से घूम कर सीधी के फ्लैट में खिड़की के रास्ते चल दी और लगी धुआं उगलने। भले ही धुआं उगलते बैड के कीमती गद्दों को बुझाने में राणा की मदद बच्चा पार्टी ने ही की थी, लेकिन राणा का बीपी तो इतनी गर्मी पाकर किसी एटम बम की तरह फट पड़ा। बच्चों ने भी मामला शांत करने के लिए साॅरी शब्द का सहारा लेकर पतली गली से निकलना ही उचित समझा।
राणा दंपति के इस नुकसान और गुस्से को देखकर सोसाइटी के लोग समझने लगे शायद सफलता मिल गई है। अब सोसाइटी में शांति रहेगी। लेकिन कैसी शांति अगले दिन से ही फिर वही धमाचौकड़ी फिर से धप्प धप्प एक साथ कई जोड़े जूते ताल देते थिरक पड़े।फिर वही माहौल।
अब तो राणा दंपति हर त्यौहार से कतराने लगे। होली आई तो बच्चे हर फ्लैट की डोर बेल बजाते और गेट खुलते ही दो आशीर्वाद के लिए पैरों में झुकते और ऊपर से दो मुंह काला करके ही निकलते। अब कैसे बचा जाए इनसे। कभी क्रिकेट के मैच का शोर, तो कभी अंग्रेजी गाने की धुनों पर थिरकते पूरा साल निकल गया। अब जहां एक ओर तो सोसाइटी के लोग बीमार और बूढ़े नजर आने लगे थे। वहीं मन में शांति भी थी चलो अब परीक्षा के बाद फ्लैट खाली होगा तो सोसाइटी के प्रेसिडेंट से बात करके किसी ऐसे बवंडर को किराया पर नहीं रहने देंगे। उधर राणा दंपति भी पूरे साल किसी एक के गिरकर मरने के इंतजार में थक तो गए थे। लेकिन यह सोचकर उनकी स्फूर्ति वापस लौट आती थी, कि अब लौट जाएंगे सारे अपने-अपने घर। उधर बच्चों की परीक्षा शुरू हो गई थी। चारों और शांति रहने लगी।
उस दिन राणा थैले में जब सामान लेकर घर पहुंचा तो, थका हुआ राणा से , थैला बच्चों ने ले लिया और जो ही अंदर पहुंचे तो राणा की पत्नी जमीन पर बेसुध पड़ी थी । शायद उन्हें अटैक आया था । वो जिंदगी और मौत के बीच झूलने लगी। भारत बंद की वजह से उस दिन सब बंद था। हॉस्पिटल पहुंचना बिना टैक्सी के मुश्किल था।
राणा हिम्मत हार चुका था। वह निराश होकर निढ़ाल सा बैठ गया था। लेकिन चारों लड़कों ने आज अपना कर्तव्य निभा दिया। वह राणा की पत्नी को लेकर दौड़ पड़े हॉस्पिटल। कहीं रिक्शा, तो कहीं पैदल कहीं रेडी, तो कहीं गाड़ी। आखिर हर मुश्किल का सामना करते करते पहुंच गए हॉस्पिटल। शायद पूरे साल की परेशानी की कीमत राणा ने वसूल कर ली थी। बचा ली राणा की पत्नी की जान, चारों ने मिलकर। अपनी जान की परवाह न करते हुए चारों निकल पड़े थे। बंद में भी लोगों की लाठी, पत्थर खाते बिना किसी स्वार्थ के।
हफ्ते भर राणा की पत्नी हॉस्पिटल में रही। अब वह पूरी तरह स्वस्थ हो चुकी थी। राणा तो चारों का शुक्रगुजार था ही, राणा की पत्नी भी जल्द ही घर पहुंचकर चारों का शुक्रिया अदा करना चाहती थी।
उधर बच्चा पार्टी के पेपर भी खत्म हो चुके थे, वे भी अपने-अपने घर लौटने की तैयारी कर रहे थे। इधर राणा हॉस्पिटल से अपनी पत्नी के साथ घर लौट रहा था। रास्ते भर राणा की पत्नी बच्चा पार्टी से मिलने को व्याकुल थी।
अचानक सोसाइटी के आगे टैक्सी रुकी, तो कुछ भीड़ जमा थी। दोनों टैक्सी से उतरकर भीड़ को चीरकर आगे बढ़े तो देखकर स्तब्ध रह गए। दरअसल उन चारों में से एक टैरिस की रेलिंग टूटने की वजह से गिरकर मर गया था।
राणा दंपति के कानों में खुद की आवाज ही गूंजने लगी इनमें से एक गिरकर मर जाये तो .................। और वह लाश के पास बैठकर बिलख पड़े।