५-८-१८ मित्र दिवस के अनुपम अवसर पर आप सभी मित्रों को इस मुक्तक के माध्यम से स्नेहल मिलन व दिली बधाई"मिलन मुक्तक"भोर आज की अधिक निराली ढूँढ़ मित्र को ले आई।सुबह आँख जब खुली पवाली रैन चित्र वापस पाई।देख रहे थे स्वप्न अनोखा मेरा साथी आया है-ले भागा जो अधर कव्वाली मैना कोयलिया
छन्द- वाचिक विमोहा (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी - २१२ २१२"विमोहा छंद मुक्तक"दृश्य में सार हैआप बीमार हैं पूछता कौन क्या कान बेकार है॥-१ आँख बोले नहीं मौन देखे नहीं पाँव जाए कहाँ सार सूझे नहीं॥-२ वेदना साथ है. आयना सार है। दाग दागी नहीं- देखती आँख है॥-३ देख ये बाढ़ है। चेत आष
सरसी छंद आधारित मुक्तक.......मात्रा भार- 27, 16,11 पर यति, समान्त- आज, अपदांत मुक्तक" नृपति गए छड़ साज पुराने, राजा रानी राज स्मृतियों से भरे घराने, वर्णित उनके काज दिखा रहे हैं झलक पुराने, काल किला परिवार सिखा रहें हैं ढ़ाल उठाओ, पहने मेरे ताज।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी