Ramdhari Singh Dinkar - Hindi poem कलम, आज उनकी जय बोल – रामधारी सिंह “दिनकर”जला अस्थियाँ बारी-बारीचिटकाई जिनमें चिंगारी,जो चढ़ गये पुण्यवेदी परलिए बिना गर्दन का मोलकलम, आज उनकी जय बोल।जो अगणित लघु दीप हमारेतूफानों में एक किनारे,जल-जलाकर बुझ गए किसी दिनमाँगा नहीं स्नेह मुँह खोलकलम, आज उनकी जय बोल।पी
Ramdhari Singh Dinkar - Hindi poem हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों – रामधारी सिंह “दिनकर”कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो।श्रवण खोलो¸रूक सुनो¸ विकल यह नादकहां से आता है।है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे?वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है?जनता की छाती भिदेंऔर तुम नींद करो¸अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा।त