बॉलीवुड के बारे में ख़बरों का सबसे बड़ा सोर्स – मायापुरी. लेकिन ये अब पुरानी बात है. नई बात मिलती है सोशल मीडिया पर. मैगज़ीन में छपने में देर लगती है. यहां बन्न से वायरल हो जाती है. खैर, हुआ ये कि पिछले कुछ वक़्त में सोशल मीडिया पर एक तस्वीर खूब चली. एक महिला खड़ी है. वो कपड़े उतारने या पहनने का काम कर रही है. उसके सामने 2 पुरुष खड़े हैं. आस-पास कुछ पोस्टर रखे हुए हैं. इस तस्वीर के बारे में कहा गया कि 50 के दशक में लड़कियां इसी तरह से ऑडिशन देती थीं. उन्हें डायरेक्टर-प्रोड्यूसर के सामने कपड़े उतारने पड़ते थे. ‘छोटे’ कपड़े पहनने होते थे. और न जाने क्या-क्या. होता ये है कि ऐसे मौकों पर ज़रूरत से ज़्यादा बातें कही जाने लगती हैं.
लेकिन फिर विचार ये उठा कि क्या ये जो भी कहा जा रहा है, सब सही है. जवाब मिला – ‘हां’. वो ऐसे मालूम पड़ा कि उस तस्वीर में मौजूद फ़िल्म डायरेक्टर की पहचान मालूम पड़ गई. तस्वीर में जो डायरेक्टर साहब मौजूद हैं, उनका नाम है अब्दुल राशिद कारदार. मज़े की बात ये है कि वो पाकिस्तान के पहले टेस्ट कैप्टन अब्दुल कारदार के सौतेले भाई थे.
अब्दुल राशिद कारदार ने कारदार प्रोडक्शन के नाम से एक प्रोडक्शन हाउस बनाया. उन्होंने कारदार स्टूडियो बनाया और उसे बेहतरीन साजो-सामान से लैस किया. कारदार स्टूडियो के बारे में कहा जाता है कि वो ऐसा पहला स्टूडियो था जिसमें मेकअप रूम में भी एसी लगा हुआ था.
ये वही अब्दुल राशिद कारदार हैं जिन्होंने केएल सहगल के साथ शाहजहां फ़िल्म बनाई. इस फ़िल्म के गाने कमाल के थे. मजरूह सुल्तानपुरी ने इसी फ़िल्म से गाने लिखने की शुरुआत की थी. गानों को नौशाद ने कम्पोज़ किया था. फ़िल्म तगड़ी हिट थी.
अब्दुल राशिद कारदार हिंदुस्तान के उस हिस्से में पैदा हुए जो आगे चलकर पाकिस्तान बन गया. 1920 के दशक की शुरुआत में उत्तर-पश्चिम रेलवे में काम करने वाले जीके मेहता लाहौर में एक कैमरा लेकर पहुंचे. ये कैमरा इंग्लैंड से मंगाया गया था. मेहता ने कारदार से फ़िल्म बनाते वक़्त असिस्ट करने को कहा. होते-होते कारदार असिस्टेंट डायरेक्टर से फ़िल्म में काम करने वाले ऐक्टर भी बन गए. ये उनका किसी भी फ़िल्म में पहला काम था. 1924 में लाहौर में बनी पहली साइलेंट फ़िल्म रिलीज़ हुई – Daughters of today. ये फ़िल्म पूरी तरह से लाहौर में बनी थी और इसी वजह से लाहौर हिंदुस्तान के एक फ़िल्म हब के रूप में स्थापित हो गया. इससे पहले वहां रिलीज़ होने वाली फ़िल्में या तो विदेश में बनती थीं या बम्बई/कलकत्ता में.
कारदार ने सिर्फ महिलाओं को स्टूडियो में बुलाकर कपड़े ही नहीं उतरवाए, बल्कि फ़िल्म इंडस्ट्री को एक से एक लोग दिए हैं. कारदार ने नौशाद को खूब मौके दिए. मजरूह सुल्तानपुरी ने पहली बार कारदार की ही फ़िल्म के लिए गाने लिखे. सुरैया ने भी कारदार की फ़िल्मों से शुरुआत की. इसके अलावा एक बहुत बड़ा नाम – मोहम्मद रफ़ी. रफ़ी ने अपना पहला हिट गाना ‘सुहानी रात ढल चुकी’ कारदार की ही फ़िल्म ‘दुलारी’ में गाया था. पद्मश्री से नवाज़े जाने वाले महेंद्र कपूर को कारदार ने एक टैलेंट शो में देखा था जो खुद कारदार ने ही शुरू किया था.