गमख़्वार है तू, मेरे गम से नावाफिक क्यूँ है,
आशिक हूँ तिरा, इश्क से तू नावाफिक क्यूँ है.
आसां नहीं आलमे ख़ाक में यूँ करना मुहब्बत,
आलमे तसव्वुर में ही तिरे ज़ामी है ये आदम ,
जलता है ज़िगर फिर भी धुंआ नहीं उठता,
बदनामी का डर या तिरी रुसवाई का है डर. (आलिम)