भय का सर्वथा आभाव, अंत:करण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्व ज्ञान के लिए निरंतर ध्यान और सात्त्विक दान, इन्द्रयों का दमन, गुरुजनो की पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मो का आचरण एवं वेद -शास्त्रों का पठन -पाठन तथा भगवान के नाम और गुणों का कीर्तन, स्वधर्म पालन के लिए कष्ट सहन और शरीर तथा इंद्रयोके सहित अंत:करण की सरलता (16-1)