श्रेष्ठता के अभिमान और दम्भ का आभाव , किसी भी प्राणी को न सताना क्षमा भाव , मन -वाणी आदि की सरलता , श्रद्धा-भक्ति सहित गुरु सेवा , बाहर-भीतर की शुद्धि, मन की स्थिरता और मन-इन्द्रियों सहित शरीर का निग्रह. भोगो में आसक्ति और अहंकार का भी आभाव ,जन्म, मृत्यु, जरा, रोग, दुःख आदि दोषो का विचार करना .पुत्र, स्त्री, घर, और धन आदि में आसक्तिके अभाव, ममता का न होना तथा प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना .मुझ परमेश्वर में अनन्य योग के द्वारा अटल भक्ति तथा एकांत और शुद्ध स्थान में रहने का स्वभाव और विषयी मनुष्यों से प्रेम का न होना .अधयात्म ज्ञान में नित्य स्थिति और तत्वज्ञान से परमात्मा को ही देखना यह सब ज्ञान है और जो इसके विपरीत है वह अज्ञान. (13-7, 8, 9, 10, 11)