जो मनुष्य शास्त्रविधि से रहित केवल मनकल्पित घोर तप को तपते है तथा दम्भ और अहंकार से युक्त एवमकामना , आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त है . जो अपने शरीर और अंत:करण में स्थित मुझ परमात्मा को भी कृश करने वाले हैं , उन आ ज्ञान ियों को तू असुरस्वभाववाले जान . (17-5,6)