जिसका मन अपने वश में है, जो इन्द्रियों को जीत चुका हैऔर विशुद्ध अन्तःकरण वाला है, ऐसा कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी कर्म में लिप्त नहीं होता. (5-7)
Armed with discipine, he purifies and subdues the self, masters his senses, unites himself with the self of all creatures;even when he acts, he is not defiled.