अहंकार इस सृष्टि की उत्त्पति का कारण है, इसलिए किसी व्यक्ति में अहंकार ना हो यह नामुमकिन है. अहंकार , गर्व और घमंड तीनो में फर्क है. गर्व अच्छे के लिए प्रयोग किया जाता है ,घमंड या दंभ बुरे के लिए लेकिन अहंकार मनुष्य की पहचान है जिसे वो चाह कर भी नहीं छोड़ सकता . अहंकार का त्याग करने वाला मुझे प्राप्त कर मुझी में समां जाता है. वो अवस्था मोक्ष कहलाती है. मोक्ष हर कोई नहीं प्राप्त कर सकता , उसके लिए अहंकार को त्यागना पड़ता है जो मनुष्य के लिए असंम्भव नहीं पर कठिन जरूर है. अहंकार की मात्रा हर मनुष्य में अलग होती है, वही मात्रा उसे धर्म और अधर्म कर्मो में लगाती है. जैसे जैसे अहंकार बढ़ता है मनुष्य अधर्म की ओर जाने लगता है. और जैसे जैसे मात्र कम होती है वो धर्म की ओर बढ़ता है और जब अहंकार शून्य हो जाता है वो मोक्ष को प्राप्त कर लेता है. मन और बुद्धि अहंकार के साथ होते जहाँ मन अहंकार को बढ़ाता है वही बुद्धि उस पर नियंत्रण करती है . जब बुद्धि अहंकार और मन पर नियंत्रण कर ले तो उस व्यक्ति को बोधिसत्त्व प्राप्त हो जाता है जो मुक्ति या मोक्ष की ओर ले जाता है. और जब मन बुद्धि और अहंकार को नियंत्रण में कर लेता है तो वह मनुष्य को विनाश की ओर ले जाता है . (कृष्ण)