जिस समय देह, अंत:करण और इन्द्रियों में चेतनता और विवेक शक्ति उतपन्न हो, उस समय ऐसा जानना चाहिए की सत्वगुण बढ़ा है . रजोगुण के बढ़ने पर लोभ की प्रव्रत्ति, स्वार्थबुद्धि से कर्मो में सकामभाव, अशांति और विषयभोगों की लालसा उत्पन्न होते है . तमोगुण के बढ़ने पर अंत:करण और इन्द्रयों में मलीनता , कर्तव्य-कर्मो में अप्रवृत्ति, प्रमाद और निंद्रा आदि मोहिनी वृत्तियां उत्पन्न होती है .(14-11, 12, 13)