निषिद्ध और स्वार्थपूर्ण कर्मो का त्याग करना तो उचित है, परन्तु नियत कर्म का त्याग उचित नहीं है . इसलिए मोह के कारण उनका त्याग का देना तामस त्याग कहा गया है . जो कुछ कर्म है , वह सब दुःख रूप ही है -- ऐसा समझ कर कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य-कर्मो का त्याग कर दे , तो वह ऐसा राजस त्याग करके त्याग के फल को किसी प्रकार भी नहीं पाता (18-7, 8)
Renunciation of prescribed action is inappropriate; relinquished in delusion, it becomes a way of dark inertia. When one passionately relinquishes difficult action from fear of bodily harm, he can not winthe fruit of relinquishment.