पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओ में स्थित ताऊ-चाचों, दादाओं-परदादों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और सुहर्दों को भी देखा. उन उपस्थित बंधुओ को देखकर अर्जुन अत्यंत करुणा से युक्त होकर शोकमयी वाणी में बोले .(1-26, 27, 28)
Arjun saw them standing there : fathers, grandfathers,,teachers, uncles, brothers,sons, grandsons, and friends. He serveyed his elders and companions in both armies, all his kinsmen assembled together. Dejected, filled with strange pity he said.