ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों , तथा शूद्रों के कर्म उनके स्वाभाविक गुणों द्वारा विभक्त किये गए है. अंत:करण का निग्रह और इन्द्रियों का दमन करना , धर्मपालन के लिए कष्ट सहना , बाहर-भीतर से पवित्र रहना, दूसरो के अपराधों को क्षमा करना; मन , इन्द्रिय और शरीर की सरलता; वेद , शास्त्र, और ईश्वर् और परलोक आदि में श्रद्धा रखना; वेद-शास्त्रो का अध्यन-अध्यापन और परमात्मा के तत्त्व का चिंतन ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म है . (18-41, 42)
The action of priests, warriors,commoners, and servents are apportioned by qualities born of their intrinsic being. Tranquility, control, penance, purity, patience and honesty, knowledge, judgment, and piety are intrinsic to the action of a priest.