विशुद्ध बुद्धि से युक्त, अल्प भोजी, विषयो का त्याग करके एकांत और शुद्ध स्थान में रहने वाला , सात्त्विक धारणशक्ति के द्वारा अन्तःकरण और इन्द्रियों का संयम करके मन, वाणी और शरीर को वश में कर लेने वाला , राग-द्वेष को सर्वथा नष्ट करके भलीभांति दृढ़ वैराग्य का आश्रय लेने वाला तथा अहंकार, बल, घमण्ड, काम, क्रोध और परिग्रह का त्याग करके निरंतर ध्यान योग के परायण रहने वाला , ममतारहित और शान्तियुक्त पुरुष सच्चिदानन्दन ब्रह्म में अभिन्न भाव से स्थित होने का पात्र होता है. (18-51, 52, 53)
Armed with his purified understanding, subduing the self with resolve, relinquishing sensuous objects, avoiding attraction and hatred; observing solitude,barely eating, restraining speech, body, and mind; practicing discipline in meditation, cultivating dispassion; freeing himself from individuality, force, pride, desire, anger, acquisitiveness; unpossessive, tranquil, he is at one with the infinite spirit.