जो सुख विषय और इन्द्रियों के संयोग से होता है , वह भोग काल में अमृत के तुल्य प्रतीत होने पर भी परिणाम में विष के तुल्य है ; इसलिए राजस कहा गया है .(8-38)
The joy that is passionate at first seems like ambrosia, when senses encounter sense objects, but in the end it is like poison.