धार्मिक होने का मतलब आस्तिक होना नहीं, नास्तिक होने का मतलब धार्मिक होना नहीं. एक नास्तिक धार्मिक हो सकता है और एक आस्तिक ज़रूरी नहीं की धार्मिक ही हो. धर्म और आस्था दो अलग विषय है. आस्था ईश्वर में होती है , धार्मिक गुरुओं में नहीं. धर्म धार्मिक गुरुओं का व्यापार है और ईश्वर तो सर्वव्यापी है, उसे ना तो मंदिर की ज़रूरत है ना ही मस्जिद की, ये सब तो धर्म के व्यापारियों की ज़रूरत है. इंसान को तो ज़रूरत है प्यार की जो धार्मिक गुरुओं के पास नहीं है, उनके पास है नफ़रत, हिंसा, जिससे उनका व्यापार चलता है. मंदिर में प्रसाद और चढ़ावा ईश्वर को नहीं पुजारी को चाहिए. पंडित की आरती ईश्वर सुनता है क्या तुम्हारी गाई आरती ईश्वर को सुनाई नहीं देती? मंदिर में गाई आरती ही ईश्वर को सुनाई देगी? घर बैठ कर गाई आरती ईश्वर को सुनाई नहीं देगी? कब तक इन व्यापारियों के हाथ अपना धर्म बेचोगे? कभी तो सत्य का साथ दो, कभी तो छोड़ दो इन पांखण्डियों को. (आलिम)