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गद्दार ( कहानी अंतिम क़िश्त )

23 मार्च 2022

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(    “ गद्दार “   ) कहानी अंतिम क़िश्त 

( अब तक --, हाकी के अच्छे खिलाड़ी  अरुण पाटकर का चयन क्षेत्रीयवाद को तरजीह देने वाले चयनकर्ताओं ने नही किया और अपने अपने क्षेत्र के खिलाड़ियों का चयन कर लिया जबकि उनका हुनर अरुण पाटकर के आगे कुछ भी न था )

अरूण पाटकर अपने चयन न होने से पूरी तरह से निराशा के दरिया में डूब गया । वह अगले दिन ही बिना किसी को कुछ बताए व ज़रूरी प्रक्रियाएं किये दुर्ग लौट आया । अपनी इस गल्ती के लिए उसे बाद में जवाब भी देना पड़ा और मुआफ़ी भी मांगनी पड़ी । दुर्ग जाने के बाद उसे पुराने जानकार लोगों से पता चला कि राष्ट्रीय स्तर की टींम में चयन हेतु बेहद खेमेबाजी होती है । लेकिन अरूण ने हिम्मत नहीं हारी । और पहले से ज्यादा प्रेक्टिस करने लगा । लेकिन 2 साल गुज़र गये पर एमपी हाकी टीम के सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी अरूण पाटकर का चयन प्रान्तीय वाद के चलते राष्ट्रीय टीम में नहीं हुआ । 
जब लगातार 3 वर्षों में भी जब अरूण का चयन नहीं हुआ तो वह पूरी तरह निराश हो गया  । वह अपनी हाकी को एक किनारे रखकर अपने दादा की ज़मीन पर खेती के काम में जुट जाने की तैयारी करने लगा । हलाकि उसने अपनी हाकी को एक किनारे रख दिया था पर उसका ध्यान हमेशा अपनी हाकी की तरफ़ ही रहता था ।    कुछ दिनों  बाद उसे इंगलैन्ड से एक पत्र प्राप्त हुआ । उस पत्र में लिखा था कि “ अरूण पाटकर जी” हमारी हाकी टीमे के चयन कर्ताओं ने आपके खेल को देखा है और वे आपके खेल से बहुत ज्यादा प्रभावित भी हैं । जब हमें मालूम हुआ कि भारत की राश्ट्रीय हाकी टीम में आपका चयन नहीं हुआ तो हमें आश्चर्य् के साथ दुख भी हुआ । हम चाहते हैं कि आप इंगलैन्ड की टीम की तरफ़ से खेलें। इंगलैन्ड की तरफ़ से खेलने की एवज में आपकी फ़ीस आपको मुंहमांगी मिलेगी और 3 वर्षों तक लगातार जब आप हमारी टींम के सदस्य रहोगे तो आप इंगलैन्ड की नागरिकता प्राप्त करने के भी अधिकारी हो जायेंगे । लेकिन हम आपके जवाब का इंतज़ार 1 महीने तक ही कर पायेंगे । उसके बाद हमें अपनी टीम की  घोषणा करनी ही होगी ।
अरूण ने यह बात अपनी माता को बताया कि उसे इंगलैन्ड की हाकी टीम में शामिल करने का आफ़र मिला है। 1 महीने के अंदर मुझे वहां जाना है । मैं आपसे पूछना चाह्ता हूं कि मैं उन्हें ज्वाइन करुं या नहीं । जवाब में उसकी माताजी ने कहा जरूर ज्वाइन करो । हाकी खेलना तुम्हारा पैशन , शौक है । तुम हाकी खेलना जिस दिन बंद कर दोगे उस दिन से तुम्हारी शारिरिक और मानसिक परेशानी प्रारंभ हो जायेगी । अत: खेलने के नाम से ही तुम्हें जाना ही होगा । तुम्हें हाकी के खेल की उस क्षमता को दुनिया वालों को दिखाना है जिसे उन्होंने कभी न देखा है न ही कभी सोचा होगा । फिर तुम्हें अपने देश के ही चयन कर्ताओं ने खारिज़ कर दिया है तो अब तुम्हारे पास कोई और कोई रास्ता बचा भी नहीं है । इस स्थिति में तुम किसी अन्य देश की तरफ़ से खेलोगे तो कोई तुम्हारे व्यक्तितव पर उंगली नहीं उठा सकता है । । तुम्हें एक सुनहरा मौक़ा मिला है । इसका उपयोग करो और इंगलैन्ड की टीम की तरफ़ से ऐसा खेलो कि भारत के हाकी टीम के चयन करताओं को खुद पर शर्म आये कि हम लोगों ने अरूण का चयन क्यूं भारतीय टीम के लिए नहीं किया  ?
अगले 15 दिनों में अरूण पाटकर इंगलैन्ड चला गया और उनके राष्ट्रीय टीम में शामिल होकर टीम के अन्य सदस्यों के साथ प्रेक्टिस करने लगा । ब्रिटेन की इस टीम में वह अकेला भारतीय मूळ का खिलाड़ी था । बाक़ी सारे खिळाड़ी अंग्रेज ही थे । 10 दिनों की प्रेक्टिस के बाद इंगलैंड के अन्य सारे खिलाड़ी उसे अपना गुरू मानने लगे । लंदन में उसे कार और मकान के अलावा बहुत सारी सुविधाएं प्रदान की गईं थी । साथ ही 10000 रुपिए हर वर्ष देने का भी एग्रीमेन्ट कर दिया गया था । पैसा और सुविधाएं पाकर अरूण संतुष्ट था लेकिन उससे ज्यादा उसका मन महीने भर बाद होने वाली ओलंपिक टुर्नामेंट पर लगा था । वह चाहता था कि इस बार के ओलंपिक में इंगलैन्ड की टीम को अगर मैं विजयी बनाने में मुख्य भूमिका निभाता हूँ तो ये मेरे लिए सबसे अहम बात होगी । साथ ही मैं अपने पिता मुकुंद को दिए वचन को भी पूरा कर पाऊंगा।
2 महीने बाद अरूण पाटकर अपनी टीम के साथ मेल्बोर्न में था । अब की ओलंपिक खेल का आयोजन आस्ट्रेलिया में हो रहा था । हाकी के सारे टुर्नामेन्ट मेल्बोर्न के 3 विभिन्न मैदानों में हो रहे थे । इंगलैन्ड की टीम अपने सारे लीग मैचों को जीतकर सेमीफ़ायनल में पहुंच गई । फ़ायनल में इंगलैन्ड के अलावा पाकिस्तान , आस्ट्रेलिया और भारत की टीमें पहुंची थीं । सेमीफ़ायनल में इंगलैन्ड की टीम पाकिस्तान को 2/0 से हराकर फ़यनल में पहुंच गई । उधर भारत की टीम आस्ट्रेलिया की टीम को 3/1 से हराकर फ़ायनल में पहुंच गई ।
अब फ़ायनल मैच इंगलैन्ड और भारत के बीच 2 दिनों बाद होना था । मैच वाले दिन अरूण पाटकर सुबह अपने कमरे में अकेले उदास बैठा कुछ सोच रहा था ।  उसे लग रहा था कि आज मुझे अपने ही देश के विरुद्ध मैच खेलना है । उसे उलझन थी कि क्या करे क्विट कर जाऊं या पूरे जोशो खरोश से खेलूं । इतने में उसके पास उनके कोच आये , जो सुबह से उसे ढूंढ रहे थे । कोच को लग रहा था कि आज के होने वाले खेल के लिए अरूण पाटकर ज़रूर ही तनाव में होगा । टीम के कोच ने अरूण के सिर पर हाथ रखकर उसे समझाने लगे कि तुम्हारी दुविधा बेवजह है । तुम्हें खेल भावना को सर्वोपरि रखते हुए अच्छा खेलना है और अपना बेस्ट देना है । तुम्हारे सामने कौन सी टीम है यह सोचना और उस सोच में उलझना बेमानी है । जिस देश ने तुम्हारी क्षमता को जानकर तुम्हें मान ,सम्मान और मौक़ा दिया है उस देश के हित में खेलना है । अपनी पूरी कोशि वश करनी है कि तुम जिस देश की तरफ़ से खेल रहे हो उसे जिताने की । तभी तो शायद यह सिद्ध हो पायेगा कि भारत के चयन कर्ताओं ने तुम्हारे साथ अन्याय किया है। तभी उन चयन कर्ताओं को जवाब देना पड़ेगा कि तुम्हारा चयन क्यूं नहीं हुआ ? और तभी शायद आने वाले वर्षों में अच्छे खिलाड़ियों को दरकिनार करने की हिम्मत कोई चयन कर्ता नहीं कर पायेगा। वरना तुम्हारे देश में अच्छे खिलाड़ियों का उसी तरह से शोषण होता रहेगा जैसा कि तुम्हारे साथ हुआ । फिर तुम्हारे अच्छे खेल से इंगलैन्ड की टीम जीत जायेगी तब ही तुम्हारे देश वाले तुम्हारे दर्द को समझेंगे। और तुम पर यह इल्जाम नहीं लग पायेगा कि तुमने अपने देश के विरुद्ध क्यूं खेला ? जब उन्होंने अपनी टीम के लायक तुम्हें समझा ही नहीं तो तुम पूरी तरह से आज़ाद हो अपने भविष्य को सुधारने और अपने आप को प्रुफ़ करने । इसके लिए तुम् कोई भी कदम उठाने के लिए स्वतंत्र हो । और वही तुमने किया भी है ।  इसके अलावा तुम्हारे अच्छे खेल के कारण अगर इंगलैन्ड जीत जाती है तो इंगलैन्ड के निवासी भी तुम्हारे व्यक्तित्व की सराहना करेंगे कि तुमने अपने कान्ट्रेक्ट की मूल भावना को चोट नहीं पहुंचाई । एक बात और तुम भले ही इंगलैंड की तरफ़ से खेल रहे हो और इंगलैन्ड की जीत तुम्हारे खेल के दम पर होती है तो भी लोग तो यही कहेंगे कि इंगलैन्ड ने यह मैच एक भारतीय खिलाड़ी के दम से जीती है । यानी इस जीत में भी भारत का नाम रहेगा ही ।   
कोच के अच्छी तरह से समझाने से अरूण की दुविधा समाप्त हुई । शाम वह मैदान में बहुत ही सकारात्मक भावना के साथ उतरा । 90 मिन्टों के खेल में वह पूरी तरह छाया रहा । उसकी स्पीड और ड्रिबलिंग को देखकर स्टेडियमके सारे दर्श्क हतप्रभ रह गये । भारत का डिफ़ेन्स उसे छू भी न पाया । इस तरह फ़ायनल मैच 8/2 से इंगलैन्ड की झोली में गई । ब्रिटेन की तरफ़ से किए 8 गोलों में से 6 गोल अकेले अरूण ने ही किया था । 
अगले दिन इंगलैन्ड के सारे अखबार अरूण पाटकर की तारीफ़ के पुल बांधते नज़र आये । भारत के अखबारों में भी सिर्फ़ अरूण पाटकर के खेल की चर्चा थी । एक भारतीय अखबार का हेड लाइन था “ भारत को एक भारतीय ने ही हरा दिया “। अखबारों के माद्ध्यम से कुछ लोग कहने लगे कि यह अरूण के द्वारा देश के प्रति  गद्दारी है। पर कई लोगों ने अरूण का बचाव भी किया । उनका कहना था कि आखिर 3  लगातार साल किसी अच्छे खिलाड़ी का चयन  न हो तो बेचारा क्या करेगा ? उसने जो कदम उठाया है उससे ही हमारे देश की व्यवस्था में सुधार आने की गुंजाइश है । फिर एक भारतीय के खेल का अगर विश्व भर में गुणगान हो रहा है तो वह भी एक प्रकार से भारत का ही तो गुणगान है ।
कुछ पुराने लोगों ने लेख लिखा कि अरूण के पिताजी मुकुंद पाट्कर जी ने देश्प्रेम को सबसे आगे रखते हुए उस समय की भारतीय टीम जो ब्रिटिशों के कब्ज़े में थी, से ख़ुद को अलग करके गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में अपनी भागीदारी दर्ज कराने अपने कैरियर को दांव पर लगा दिया था । और उसका बेटा अपने ही देश को हराने अंग्रेजों की तरफ़ से खेल रहा है । 
अलग अलग लोगों का अलग अलग बातें थी । कुछ अरूण के पक्ष में तो कुछ अरूण के विरोध में । दोनों ग्रुप के तर्क अपनी जगह सही लगते थे । पर आज तक यह गुत्थी सुलझ नहीं पायी कि अरूण अपनी जगह सही था या गलत्।
वहीं अरूण पाटकर इन सब बातों से इतर लंदन में बड़े ही सुकून का जीवन बिता रहा है । आज की तारिख़ में उसके पास सब कुछ है । धन-दौलत , मन-सम्मान  सब कुछ ।  उसे इंगलैन्ड की नागरिकता भी मिल चुकी है । उसे इस बात का ज़रा भी मलाल नहीं है कि भारत की कुछ लोग उसे गद्दार कह रहे हैं । अरूण ने ब्रिटेन के ही एक महिला हाकी खिलाड़ी  “फ़्रेडा” से विवाह कर लिया है। दोनों को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हो चुकी है । जिसका उन्होंने नाम रखा है । “मुकुंद अरूण फ़्रेडा” । अरूण चाह्ता है कि उसका बेटा  मुकुंद अरूण फ़्रेडा भी एक हाकी का अच्छा खिलाड़ी बन कर अपनी विरासत को ऊंचा मुकाम दे।

( समाप्त )
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मुकुंद पाटकर हाकी का राष्ट्रीय स्टार का खिलाड़ी है। उसका चयन ओलम्पिक टूर्नामेंट के लिये हो जाता है। उस समय देश मे अंग्रेजो का शासन था । वहीं गान्धी जी के भारत छोड़ो आन्दोलन में अपनी भागीदारी दर्ज कराने ओलम्पिक जाए मना कर दिया और अपने कैरियर मे विराम लगा डाला। जिसके कारण कुछ लोग उसकी तारीफ करने लगे तो कुछ लोग उसे उलाहना देने लगे।
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