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गद्दार कहानी

21 मार्च 2022

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( गद्दार ) कहानी पहली किश्त *

स्टैडियम का हर हिस्सा खचाख़च भरा था । चारों तरफ़ स्कूली बच्चे जोश से भरे चिल्ला रहे थे । अंतर-संभागीय  हाकी टूर्नामेन्ट का फ़ायनल मैच थोड़ी देर में ही प्रारंभ होने वाला था । फ़ायनल मैच खेलने वाली दोनों टीमों के खिलाड़ी गण  मैदान के बाहर तैयार खड़े थे । यह मैच दुर्ग गवर्नमेंट हाई स्कूल और गवर्नमेंट हाई स्कूल रायपुर के बीच होने वाला था ।  रेफ़्री ने जैसे ही सीटी बजाई दोनों तरफ़ के खिलाड़ी दौड़कर मैदान के अंदर आ गये और अपनी अपनी तरफ़ अपनी अपनी जगह खड़े हो गये । देखने से रायपुर के खिलाड़ी ज्यादा लंबे चौड़े और शक्तिशाली नज़र आ रहे थे । वहीं दुर्ग के खिलाड़ी साधारण कद काठी के एक सामान्य स्कूली बच्चे से नज़र आ रहे थे । विसिल बजते ही गेम प्रारंभ हुआ, खेल के स्टार्ट होते ही रायपुर की टीम दुर्ग की टीम पर हावी होने लगी । 11 वें मिनट में ही रायपुर की टीम दुर्ग पर एक गोल कर आगे हो गई । चूंकि यह मैच दुर्ग में हो रहा था अत: अधिकान्श दर्शक दुर्ग शहर के ही थे । और वे सब  दुर्ग के एक गोल से पिछड़ने के कारण टेन्शन में आ गये । अगले 10 मिन्टों में दुर्ग टीम 2 गोल और खा गई । इसके बाद तो दर्शकों को मानो सांप सूंघ गया । लोगों को मैच एक तरफ़ा लगने लगा । कुछ दर्श्क तो स्टेडियम से बाहर जाने लगे कि अब इस मैच में कोई मज़ा नहीं आने वाला । इस बीच हाफ़ टाइम हो गया । 
दोनों टीमें ग्राऊंड से बाहर आ गईं । उनके कोच अपने अपने खिलाड़ियों को अगले हाफ़ की रणनीति समझाने लगे । सेकन्ड हाफ़ का मैच आरंभ हुआ तो दुर्ग की टीम के सेन्टर फ़ारवर्ड को बदल दिया गया । अब उस पोजिशन पर दुर्ग टीम ने अपने नये खिलाड़ी मुकुंद पाटकर को उतारा था । मुकुंद एक सामान्य कद काठी का नया खिलाड़ी था । जिसकी उम्र 16 साल ही थी । 
रायपुर के फ़ारवर्ड के खिलाड़ी गण एक बार फिर दुर्ग के गोल पोस्ट तक आकर लौट गये । दुर्ग के सेन्टर हाफ़ के खिलाड़ी ने बाल को अपने सेन्टर फ़ार्वर्ड मुकंद को पास किया । मुकुंद तेज़ी से बाल लेकर लेफ़्ट साइड से रायपुर की गोल पोस्ट की ओर आगे बढने लगा । उसकी तेज़ी देखने लायक थी । उसने दो खिलाड़ियों को छकाकर रायपुर के गोल्पोस्ट के पास पहुंच गया । फिर उसने देखा कि आसपास कोई  साथी खिलाड़ी है कि नहीं । जब उसे कोई अपना साथी नज़र नहीं आया तो अकेले ही आगे बढ गया और लेफ़्ट कार्नर पहुंच कर बाल को रिवर्स फ़्लिक करके सीधे गोल पोस्ट में डाल दिया । इसके साथ ही स्कोर 3/1 हो गया । स्टेडियम के अधिकान्श लोग उत्साह से नाचने लगे और बच्चे मुकुंद मुकुंद चिल्ला कर उस नये खिलाड़ी का उत्साह वर्धन करने लगे । इसके बाद अगले दस मिन्टों तक बाल इधर से उधर आते जाते रहा । 11 वें मिनट में बाल फिर पाटकर के पास आया । इस बार उसके ठीक पीछे सेन्टर हाफ़ रघुबीर पटेल भी था । दोनों एक दूजे के पास देते हुए रायपुर के गोलपोस्ट के अंदर घुस गये । तब उन्हें रोकने गोली आगे आने लगा पर पा्टकर ने गोली को चकमा देते हुए दूसरा गोल भी दाग दिया। इस गोल के बाद तो रायपुर के सारे खिलाड़ी  सन्न रह गये । तभी उनके कोच ने टाइम आउट लिया और अपने खिलाड़ियों को टिप दिया कि उनके सेन्टर हाफ़ को तीन खिलाड़ी एक साथ मार्क करो। लेकिन दूसरे गोल के करने के बाद मुकुंद पाटकर पूरी तरह से अपने लय में आ चुका था । उसकी तेज़ी और देखने लायक हो गई थी । उसको तीन तीन खिलाड़ी भी रोक नहीं पा रहे थे । उसकी गति ऐसी थी मानों कोई वीर रस का कोई कवि अपार वेग से कविता सुना रहा हो । उसकी ड्रिबलिंग के आगे रायपुर का कोई भी खिलाड़ी टिक नहीं पा रहा था । अगले 10 मिनटों में उसने अकेले अपने ही दम से रायपुर पर तीन गोल और ठोक दिया । इस प्रकार सबको अचंभित करते हुए दुर्ग की टीम दो गोल से विजयी हो गई । रायपुर के खिलाड़ियों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक अकेले खिलाड़ी के कला कौशल के कारण वे हार गये । 

अगले दिन सारे लोकल समाचार पत्र में मुकुंद पाटकर की ख़ूब तारीफ़ छपी और अधिकान्श रिपोर्टर्स ने लिखा था कि मुकुंद दुर्ग शहर का  एक उभरता हुआ हाकी का खिलाड़ी है । अगर उसे उचित प्रशिक्षण मिला तो वह राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बन सकता है। 
चूंकि उस समये दुर्ग शहर  में हाकी का एसोसियेशन नहीं था अत: मुकुंद को आगे बढाने वाला कोई माद्ध्यम नहीं था। लेकिन यह बात रायपुर कमीशनरी के मुख़िया सी जी जटार सर को मालूम हुई तो उन्होंने मुकुंद की प्रशिक्षण की ज़िम्मेदारी खुद ले ली। उन्होंने मुकुंद पाटकर को अपने खर्चे पर दिल्ली के प्रश्क्षण होम में भिजवा दिया । प्रशिक्षण होम में भी मुकुंद का जलवा और कौशल बरकरार रहा । उसके स्किल को देखकर अधिकान्श प्रशिक्षक खुश भी हो गये और शूरुवात में वे आवाक भी रह गये थे । इस बीच अंतरराष्ट्रीय टुर्नामेन्ट के लिए मुकुंद का चयन हो गया । वह उन मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला था । उसको जल्द ही 4 अन्तरराष्ट्रिय मैचे खेलने का मौक़ा मिला । उसने हर मैच में अपने आप को अपनी टीम के लिए सिद्ध करके दिखा दिया । अब तो भारतीय टीम में उसका सिक्का जम गया था । अब तो उसे ब्रिटिश सरकार से उसे वज़ीफ़ा भी मिलने लगा था । साथ ही उसे दिल्ली कलेक्टरेट में क्लर्क की नौकरी भी प्राप्त हो गई ।

 यह समय था भारत की गुलामी का । ब्रिटिशर्स ही उन दिनों हमारे कर्ता धर्ता थे । हालाकि आज़ादी के लिए छोटे बड़े आंदोलन देश के विभिन्न स्थानों में लगातार हो रहे थे । ऐसे आन्दोलनों को ब्रिटिश प्रशासन पूरी ताक़त से कुचलते जा रहा था । पर एक जगह आन्दोलन ठंडा पड़ता तो दूसरी जगह आन्दोलन खड़ा हो जाता था ।            
जल्द ही हाकी का अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेन्ट लंदन में सम्पन्न होने वाले था। तथा 6 महीने बाद पेरिस में ओलंपिक खेलों का आयोजन होने वाला  था । ब्रिटिश सरकार ने उन दोनों टुर्नामेन्ट में भारत की हाकी टीम को भेजने का निर्णय लिया । इस टीम के सलेक्शन में मुकुंद को भी महत्वपूर्ण भूमिका रही । उसे सरकार व राष्ट्रीय हाकी फ़ेडरेशन द्वारा टीम कैप्तन पहले ही घोषित कर चुके थे । 
इस बीच गांधी जी के आव्हान पर सारे देश में विदेशी चीज़ों का बहिस्कार किया जाने लगा । लाख़ों लोग इस असहयोग आन्दोलन के हवन में आहुति देने सामने आने लगे । देश के हर हिस्से से लोग इस आन्दोलन में जुड़ने लगे । नामी गिरामी साहित्यकार , शिक्षाविद , कलाकार और साइन्टिस्ट भी इस आन्दोलन में कूद गये । 
उधर भारतीय टीम के अधिकान्श सदस्य विदेश जाने की तैयारी में जुट गये । लेकिन मुकुंद पा्टकर पता नहीं क्यूं अपने आप को कमरे में बंद करके रख लिया । उसके मन में उथल पुथल मची थी कि अंग्रेजो द्वारा आयोजित व प्रायोजित खेल प्रतियोगिताओं में भाग लूं या अपने लोगों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर गांन्धी जी के आन्दोलन में भाग लूं । तीन दिनों के गहन विचार के बाद उसने निर्णय लिया कि भले ही मुझे आर्थिक नुकसान हो या मेरा हाकी का कैरियर गर्त में जाये तो भी कोई हर्ज़ नहीं । देश हित के सामने स्वहित का सोचना एक प्रकार से गद्दारी ही कहलायेगी । इस बात को उसने सबसे पहले अपने दोस्त रवि श्रीवास्तव को बताया तो उसने कहा तुम बहुत ग़लत निर्णय ले रहे हो। अपने कैरियर को तुम ख़ुद ही डुबोने जा रहे हो । क्या तुम आन्दोलन में भाग नहीं लोगे तो आन्दोलन फ़्लाप हो जायेगा ?  या तुम आंदोलन में भाग लोगे तो आन्दोलन सफ़ल हो जायेगा । ऐसा हर्गिज़ नहीं होगा क्यूंकि आन्दोलन को संभालने वाले देश भर में करोड़ो आदमी हैं । तुम्हें उस आन्दोलन में पूछेगा कौन ?  तुम भारतीय हाकी और भारतीय हाकी खिलाड़ियों का परचम अंतरराष्ट्रीय मंच पर फ़हराओ और विश्व का ध्यान इस तरह भारतीयों के क्रिया कलाप और उनके संघर्ष पर केन्द्रित करवाओ यही तुम्हारा अपने देश के प्रति सार्थक सहयोग होगा । राज नेताओं को अपना काम करने दो तुम अपना काम करो।  पर मुकुंद पाटकर ने निर्णय ले लिया था । अगले दिन बहुत सारे लोगों के द्वारा समझाने के बावजूद वह प्रशिक्षण शिविर छोड़कर अपने शहर दुर्ग आ गया और वहां के आन्दोलन में अगुवाई करने लगा ।
मुकुंद के दुर्ग जाने के कुछ दिनों तक अखबार में उसके कैंप छोड़ जाने के समाचार छ्पते रहे । अधिकान्श लोगों का मत था कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था । वह देश का सर्वश्रेष्ट खिलाड़ी है । उसे भारत की हाकी टीम को अंतर्राष्ट्रीय फ़लक में स्थापित करने में मुख़्य भूमिका निभानी चाहिए बनिस्बत की एक राजनैतिक आंदोलन में भाग लेकर अपना भी नुकसान करना और देश के सम्मान में भी पलीता लगाना । पर कुछ लोग मुकुंद पाटकर की तारीफ़ भी करते रहे कि उसने देश हित में बिल्कुल सही रास्ता अख्तियार किया है ।

( क्रमशः )
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गद्दात कहानी
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मुकुंद पाटकर हाकी का राष्ट्रीय स्टार का खिलाड़ी है। उसका चयन ओलम्पिक टूर्नामेंट के लिये हो जाता है। उस समय देश मे अंग्रेजो का शासन था । वहीं गान्धी जी के भारत छोड़ो आन्दोलन में अपनी भागीदारी दर्ज कराने ओलम्पिक जाए मना कर दिया और अपने कैरियर मे विराम लगा डाला। जिसके कारण कुछ लोग उसकी तारीफ करने लगे तो कुछ लोग उसे उलाहना देने लगे।
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