पार्वती से विवाह करके ,तरुण अपने घर आता है, किन्तु राह में रूककर ,पार्वती के लिए कुछ कपड़े ,सामान वगैरह लेकर रात्रि में, दिल्ली शहर में ,रुककर रात्रि वहीं बिताना चाहते हैं। बंद कमरे में दोनों अकेले होते हैं ,तरुण की चाहत बढ़ती है और वो पार्वती के विषय में जानना चाहता है और उसके क़रीब भी आना चाहता है। पति के रूप में ,उस पर अपना अधिकार जतलाना चाहता है ,किन्तु पार्वती के मन में उसके प्रति कोई लगाव नहीं ,उसके लिए तो तरुण अनजान ही है ,जिससे अचानक ही वो, विवाह के रिश्ते में बंध गयी।तरुण की, किसी भी तरह की मंशा को जानकर ,वो उससे इंकार कर देती है। हालाँकि उसके इस इंकार में उसका बचपना ,उसका अल्हड़पन था।
तरुण एक पढ़ा -लिखा सभ्य व्यक्ति था ,पार्वती से उम्र में बड़ा और समझदार भी था ,उसने ज़िंदगी के उतार -चढ़ाव देखें हैं ,अब वो भी चाहने लगा था कि कोई उसका साथ दे ,उसके रुकते कदमों को गति दे सके। उसके निराश ,मन में उत्साह भर सके। पार्वती को वो ले तो आया किन्तु वो भी समझता था ऐसे ही किसी को कोई इतनी शीघ्रता से अपना नहीं सकता। उसने भी पार्वती से ज्यादा कुछ नहीं कहा और बोला -शीघ्र ही सो जाओ ! कल घर के लिए , ''मुँह अँधेरे 'ही निकलेंगे। वो पार्वती से पीठ करके सो गया। असल परिक्षा तो पार्वती की उसकी ससुराल में थी। क्या -क्या नहीं सहा ? उसने !सोचकर ही उसकी आँखों से आँसू बह निकले। ऐसे दिन........ भगवान किसी को न दिखाये। उसने एक गहरी श्वांस ली ,तभी नीलिमा कमरे आई और बोली -मम्मी अभी तक यहीं बैठी हो और ये आँखों में आँसू...... क्या हुआ ?
कुछ नहीं ,मैं तेरे लिए सोचकर दुखी हो रही हूँ ,कल को तू चली जाएगी ,मैं कैसे अपने को सम्भालूंगी ?
अपनी माँ की बातें सुनकर ,नीलिमा भावविभोर हो उठी और बोली -मम्मी अभी तो मैं आपके ही पास हूँ ,अभी मेरे जाने में ,समय है। मैं जाऊँगी ,तब मेरे साथ आप भी तो जाएँगी।
धत.... माँ साथ में थोड़े ही न जाती हैं।
किन्तु मेरी माँ तो मेरे संग ही जायेगी ,नीलिमा मुस्कुराते हुए बोली।
तू ये क्या बेसिर -पैर की बातें कर रही है ,पार्वती घबराते हुए बोली। उसे ड़र था, विवाह में ये कोई नई बात न उठा दे।
अपनी माँ की घबराहट देखकर नीलिमा मुस्कुराते हुए बोली -मेरी प्यारी माँ भूल गयीं आपको ही नहीं ,सभी को मेरे ही संग जाना है। मेरी ससुराल में ,सम्पूर्ण विवाह की तैयारी तो वहीँ है।
नीलिमा की बातों का आशय समझकर ,पार्वती भी मुस्कुरा दी।
आज नीलिमा को किसी का इंतजार है ,आज वो बार-बार घड़ी देख रही है किन्तु समय जैसे थम सा गया है। आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहा है ,उसे अपनी ही सोच पर अफ़सोस हो रहा है ,उसी ने तो धीरेन्द्र से ,दोपहर के खाने के बाद फोन करने के लिए कहा था। जैसे ही घड़ी ने एक बजाया ,उसके दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं। अबकी बार मैं भी उसका फोन नंबर ले लूँगी। वो क्या समझता है ?वो ही फोन कर सकता है ,मैं भी उसे फोन करके चौंका सकती हूँ। अगले ही पल, उसे अपनी सोच पर अफ़सोस हुआ ,अभी उसे ठीक से जानती भी नहीं ,न ही विवाह हुआ है और मैं चली हूँ ,उस पर अधिकार जताने..... दो बज गए ,अब तक सभी खाना खा चुके थे और आराम करने के लिए ,अपने -अपने कमरों में जाने की तैयारी कर रहे थे। पाँच मिनट ऊपर हो चुके थे किन्तु अभी तक फोन नहीं आया था नीलिमा के कान कुछ सुनने को तरस रहे थे ,किन्तु वो कुछ और नहीं फोन की घंटी की आवाज ही थी।
सवा दो बज गए ,किन्तु अभी तक फोन नहीं आया ,तब नीलिमा को लगा ,अब फोन नहीं आएगा ,उसने उसी दिन मुझे प्रभावित करना चाहा होगा। अभी उसने ये ही सोचा था तभी फोन की घंटी घनघना उठी ,वो अपने सभी विचार त्यागकर तेजी से ,उस कमरे की ओर दौड़ी। हैलो !
तुम मेरी ही प्रतीक्षा कर रही थीं न...... इससे पहले कि तुम मुझसे लड़ो, कि इतनी देरी से फोन क्यों किया ?तब मैं तुम्हें बताये देता हूँ ,मेरे ऑफिस में आज काम कुछ अधिक था सॉरी..... वैसे इंतजार में जो मजा है वो ऐसे नहीं आता ,अब तुम्हीं देख लो। तुम मेरी प्रतीक्षा में घुली जा रही थीं ,पंद्रह मिनट भी प्रतीक्षा नहीं हो पा रही थी।
नीलिमा सोच रही थी -इसे कैसे पता ? कि मैं इसके फोन की ही प्रतीक्षा कर रही थी फिर भी ,नकारते हुए बोली -नहीं मैं तो ,अपने कमरे में थी। वो तो फोन आ गया इसीलिए अन्य कोई परेशान न हो और मैंने भी तुम्हें इसी समय फोन करने के लिए कहा था। ऐसे में कोई और फोन उठाता ,ये तो सही नहीं है न !अपनी बात कहकर वो मन ही मन मुस्कुराई और सोच रही थी किस तरह मैंने इसको जबाब दिया। अपने को पता नहीं ,कहीं का ''हीरो ''मान रहा होगा।
अच्छा ! कहकर उसने ठंडी आह भरी और बोला -मैं व्यर्थ ही चिंतित हो रहा था कि कोई मेरी प्रतीक्षा में है। अपना कार्य कर सबसे पहले तुम्हें ही फोन किया ,अभी तक खाना भी नहीं खाया।
क्या ?अभी तक....... खाना भी नहीं खाया ,नीलिमा भी उसी की तरह झूठी संवेदना से बोली। नीलिमा को स्वयं ही नहीं पता चल पा रहा था कि वो भी उसी की तरह बोलने और मस्ती करने लगी। वो कब कैसे उसके रंग में रंगने लगी ?उसे पता ही नहीं चला।
अछ्हा ये बताओ !शादी की -क्या क्या तैयारियाँ चल रही हैं ?
यहाँ क्या तैयारी करनी है ,सब कुछ तो वहीं होने वाला है ,क्या भूल गए ?नीलिमा ने पूछा।
ओह !हाँ ,ये मैं कैसे भूल सकता हूँ ?हम तो मैडम की सेवा में हाजिर हैं ,आज ही अपने दोस्तों को पकड़ता हूँ ,वे कब काम आयेंगे ?तुम देखना सारा काम ,यूँ ही चुटकी में हो जायेगा।
तुम्हारे दोस्त इतने अच्छे हैं !नीलिमा ने पूछा।
अरे..... आधी रात को भी ,किसी कार्य के लिए कहूंगा ,मना नहीं करते ,तुम भी कभी किसी कार्य के लिए कहोगी ,कभी मना नहीं करेंगे ,मेरे सभी दोस्त इतने अच्छे हैं ,अपने दोस्तों का गर्व से बखान करते हुए धीरेन्द्र बोला।
अच्छा !अब भी भूख लगी है या नहीं नीलिमा कुछ चिंतित स्वर में बोली।
यार..... भूख तो बहुत जोरों की लगी है किन्तु तुमसे बात करने से ज्यादा नहीं।
मतलब !
मतलब क्या ? भई भूख तो लगी ही है, किन्तु मेरे लिए तुमसे बात करना ज्यादा जरूरी लगा।
नीलिमा मन ही मन खुश होते हुए बोली -जनाब इश्क़ फ़रमाने के लिए भी ताकत की आवश्यकता होती है ,वो कहावत सुनी है -''भूखे भजन न होय गोपाला '',अब पहले भोजन कीजिये ,बाद में सभी बातें !नीलिमा की बातें सुनकर ,धीरेन्द्र मुस्कुराया और बोला -क्या बात है ?अभी से पत्नी धर्म निभाया जा रहा है।
और नहीं तो क्या ?नीलिमा मुस्कुराते हुए बोली -कल इसी समय ,कहकर फ़ोन रख दिया। फोन रखकर थोड़ी देर तक इसी तरह मुस्कुराती रही, उसे लग रहा था, काश! इसके साथ देर तक बतलाती रहूँ। इसकी बातों में कुछ जादू तो है।
क्या धीरेंद्र निलिमा को सच में ही प्यार करने लगा ? क्या निलिमा उसकी चिकनी- चुपड़ी बातों में आ जायेगी । उनका प्रेम कहाँ तक आगे बढ़ेगा जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी