नीलिमा सक्सैना ''जिसने अभी बाहरवीं क्लास ही पास की है ,उसके पिता ,एक अभियंता ''धीरेन्द्र सक्सैना ''से उसका विवाह निश्चित कर देते हैं। न ही ,धीरेन्द्र ने नीलिमा को देखा है ,न ही नीलिमा ने धीरेन्द्र को। दोनों ने ही एक -दूसरे की, एक -एक तस्वीर देखी है। दोनों ही ,फ़ोन पर एक -दूसरे से बातचीत करते हैं। धीरेन्द्र व्यवहारिक और ख़ुश मिज़ाज लड़का है। वह बातों का भी बड़ा धनी है ,अपनी बातों से ही उसने नीलिमा का मन मोह लिया। नीलिमा भी अभी बच्ची है ,दुनियादारी नहीं जानती तभी उसने पापा की पसंद को ही सहर्ष स्वीकार किया।नीलिमा उसकी बातों के आधार पर ही, उसे पसंद करने लगी किन्तु एक दिन धीरेन्द्र अपनी साली डिम्पी से भी इसी लहज़े में बातें करता है। तब नीलिमा को लगता है ,कि धीरेन्द्र के प्रति मेरा मोह व्यर्थ है। ये मेरे लिए ही नहीं वरन जो भी इसे मिलता है उससे ही इस तरह से बातें करता है।
उसका तो जैसे भृम टूट सा गया ,उसका मन दुःखी होता है ,अपनी व्यथा किसी को बताना चाहकर भी ,नहीं बता पाती है। उन्ही दिनों उसकी दीदी उससे मिलने आती है ,और न चाहते हुए भी ,वो अपनी मन की बात घुमा -फिराकर उनसे कह ही देती है।
नीलिमा की बात सुनकर वो मुस्कुराती है और कहती है - माना कि ,ये उसका स्वभाव हो सकता है किन्तु उसके मन में जो भावनाएँ तुम्हारे लिए हो सकती हैं ,वो किसी और के लिए तो नहीं होंगी। वो कोई चीज नहीं ,जीता -जागता इंसान है। तुमसे जुड़ने के पश्चात उसकी ज़िंदगी समाप्त नहीं हो जाती। उस पर कोई बंधन नहीं है ,कि तुमसे मिलने के पश्चात वो किसी से बात नहीं कर सकता। तेरे जीजाजी ,क्या तुम लोगों से बात नहीं करते ?
आप समझ नहीं रहीं है ,वो जिस तरह से आपसे बातें करते हैं ,उस तरह से हमसे नहीं करते किन्तु वो तो डिम्पी से भी उसी तरह बातें करने लगा।
अभी तुझे मैंने समझाया न...... ये आदमी का अपना स्वभाव होता है। विवाह ऐसा रिश्ता है ,जिसे जबरदस्ती अपनी मुठ्ठी में बंद करना चाहो तो ,उतने ही फिसलने का ड़र बना रहता है। ये रिश्ता ,प्यार और विश्वास से जुड़ा होता है। छोटी -मोटी बातों पर कोई ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए, हल्का -फुल्का चल जाता है। ज्यादा छूट भी नहीं देनी चाहिए वरना पति के हाथ से फिसलने का भी ड़र रहता है , कहकर वो हंसने लगीं।नीलिमा मन ही मन सोच रही थीं- कि इन्होने मेरी बातों को समझा ही नहीं। तभी वो बोलीं -तुम तो अभी से ''ठेठ गृहणी ''की तरह व्यवहार कर रही हो।अभी विवाह तो हो जाने दो ! उसके बाद दोनों एक -दूसरे को समझना। साथ रहकर, एक -दूसरे को समझने में अंतर् है। अभी ये सभी बातें छोड़कर ,अपने विवाह पर ध्यान दे। अभी मैं जाती हूँ ,बच्चे भी घर में अकेले हैं फिर आऊँगी। अब विवाह में दिन ही कितने रह गए हैं ?दो -चार दिन बाद ही आ जाऊँगी।
बड़ी बहन समझाकर तो चली गयी किन्तु नीलिमा के मन में जो बात खटक रही थी ,वो शायद समझ नहीं पाई।शायद दीदी ही मुझे न समझ पाई या फिर मैं ही दीदी के विचारों की तह तक नहीं पहुंच पाई। अपने मन को बहुत समझाया ,शायद वो ठीक ही कह रही होंगी । धीरेन्द्र का फिर से फोन आया किन्तु नीलिमा अब उससे बातें तो करती किन्तु अब उन बातों में ,उसे वो अपनापन नहीं लगता ,जैसे पहले लगता था। उसके ये शब्द ,उसकी भावनायें मेरे ही लिए हैं ,अब तो लगता ,जब भी वो मीठी बातें करता तब लगता ,सभी से इसी तरह की बातें करता होगा। इसमें क्या विशेष है ?
दीदी भी आ गयी ,कुछ भी खरीददारी से पापा ने ,पहले ही मना किया था। धीरेन्द्र से दीदी की भी एक -दो बार बातें हुईं ,कुछ रस्मों और खरीददारी के सिलसिले में ,तब उन्हें लगा -अब हमें विवाह से दो दिन पहले तो पहुंचना ही होगा। लहंगा लेना है ,ब्लाउज का नाप और चूड़ियां ,गहने इत्यादि सभी चीजें पसंद करके पहले ही लिए जाने चाहिए थे। दीदी ने ,पापा से कहा भी ,अभी तक तो हमें चले भी जाना चाहिए था। दो दिन पहले ही ,क्या तैयारी हो पायेगी ?पापा को उनकी बात सही लगी ,सभी लोग गाड़ी करके ,हरिद्वार के रास्ते पर चल दिए। धीरेन्द्र से पहले ही कह दिया गया था। उसके दोस्त के होटल में ही ,सम्पूर्ण तैयारी थी। वहाँ की तैयारी और आलीशान होटल देखकर ,सभी हतप्रभ रह गए। हर चीज समय पर हाज़िर हो जाती। इतना भव्य आयोजन तो वो स्वयं भी नहीं कर पाते।
उस स्थान पर ठहरकर ,उनमें स्वयं में ,बड़े लोगों जैसी ,नहीं...... राजा -महाराजाओं जैसा महसूस कर रहे थे। एक अजीब सी अकड़ सी आ गयी थी ,उस समय तो वो भूल चुके थे कि उन्हें वापस अपने उसी घर में भी जाना है। किसी ने एहसास कराया भी तो..... कहते सुने जाते ,जब तक मजे लेने हैं ,लेने दीजिये क्यों आसमान से उतारकर ,जमीन पर लाना चाहते हैं। उसकी सगी बहन यानि उसकी दीदी तक में ,उसके प्रति ईर्ष्या का भाव आ गया था। सभी उसकी किस्मत की सराहना कर रहे थे।नीलिमा को तो जैसे साँस लेने के लिए भी समय नहीं था। कभी लहंगे का नाप लेने के लिए आ रहे थे ,कभी साज -शृंगार के लिए ,उसके चेहरे की मालिश वाली ,हाथ -पैरों की सफाई के लिए अलग ,मेहँदी वाली अलग। जिसने भी उसके विवाह के लिए कपड़े पहले ही खरीद लिए ,वो अब उसे अच्छे नहीं लग रहे थे। अपने को कोई भी ,किसी से भी कम नहीं देखना चाहता था।
आख़िर वो दिन आ ही गया ,जिस दिन धीरेन्द्र की बारात ,उस स्थान पर आने वाली थी। सभी प्रतीक्षा में थे ,सभी के दिलों की धड़कने बढ़ने लगी थीं ,सभी की नजरें दूल्हे को खोज रही थीं। दुल्हन अभी अंदर तैयार हो रही थी। उस पर किसी का भी ध्यान नहीं था क्योंकि वो तो अपनी है ,उसे कई बार देखा है। सभी को दूल्हा ही देखना था। वेटर ,जूस ,ठंडे पेय पदार्थ ,पनीर ,आलू ,गोभी इत्यादि की पकोड़ी और भी कई नई चीज़ें लिए घूम रहे थे। बच्चे भी नई -नई चीजों का आनंद ले रहे थे और साथ ही साथ बड़े से झूले पर खेल भी रहे थे। सभी अपनी ही तैयारी कर रहे थे। लड़कियों में तो..... कुछ न कुछ कमी रह जाती वो फिर से तैयार होने लगतीं नीलिमा एक कमरे में बंद थी ,वहीं तैयार हो रही थी। बाराती नाश्ता कर रहे थे ,कुछ लड़कियाँ दौड़कर जीजाजी को देखने ,उनके कमरे में ही जा पहुँची किन्तु उसके इतने सारे दोस्त देखकर वापस लौट आयीं। हर व्यक्ति अपने में व्यस्त था। नाश्ते के पश्चात ,चढ़त होनी आरम्भ हो गयी। कुछ लोग तो बैंड -बाजे के साथ ही चले गए , घोड़ी के सामने जो नाचना था। खूब शानदार चढ़त हो रही थी ,उसके सभी दोस्त नाचते -गाते झूमते आ रहे थे।