नीलिमा और नीलिमा का परिवार ,हरिद्वार के एक होटल में जाता है ,वहीँ नीलिमा का विवाह होना तय हुआ था। उन सभी की ,हर सुविधा का ख़्याल रखा गया था। सभी लोग इतनी पैसे की चकाचौंध देखकर ,आश्चर्य चकित हैं , उन्हें तो इस बात का भी आश्चर्य है ,कि नीलिमा के पापा को इतना अच्छा रिश्ता कैसे हाथ लगा ? लड़केवालों का रहन -सहन देखकर ,वो लोग अपने को बौना महसूस कर रहे थे।
धीरेन्द्र के घर में कोई चहल -पहल नहीं ,औपचारिकतावश कुछ रस्में निभाई जा रही थीं। वहां का वातावरण देखकर ,लग नहीं रहा था- कि ये शादीवाला घर है। बहन तो कोई थी नहीं ,मम्मी -पापा और एक बड़ा भाई !वो भी तलाकशुदा ! समझ नहीं आ रहा था। इतनी बड़ी कोठी में ,ये कैसी मनहूसियत छाई है ?कोई भी प्रसन्न नहीं। दुल्हे का परिवार क्यों परेशान है ?धीरेन्द्र अपने मम्मी -पापा को समझाता है और कहता है -समय पर आ जाना। धीरेन्द्र अपने दोस्तों संग तैयार होता है और होटल में पहुंच जाता है।
उधर नीलिमा अपने कमरे में बंद तैयार हो रही थी किन्तु ,लड़कीवालों के लिए तो ,लड़का ही ,इस विवाह का केंद्र बिंदु बना हुआ था। सभी के दिल में एक ही इच्छा थी ,पता नहीं ,लड़का कैसा होगा ?जब सभी ने नाश्ता कर लिया और बारात भी ,चढ़त के लिए चली गयी ,तब सभी को लड़की को देखने का होश आया। देखें तो सही , निलिमा कैसे तैयार होकर रही है ?जब नीलिमा के कमरे का दरवाजा खोला गया ,तब आश्चर्य से सभी के मुँह खुले रह गए। नीलिमा दुल्हन के वेश में, किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी। किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसका रूप इस तरह खिलकर आएगा। उस पर विवाह का क्या रंग चढ़ा था ? जिसने भी देखा -एक बारगी तो पहचान ही नहीं पाया। अब तो उन्हें भी लगा ,हमारी बेटी भी किसी से कम नहीं ,वो जो इतना पैसा दिखला रहा है तो हमारी बेटी भी इसी पैसे के लायक ही है। नीलिमा को एक कुर्सी पर बिठला दिया गया ,माँ ने तो उसकी नजर उतारी और उसे देखकर ,भावुक हो गयीं।
छीलर के पानी के लिए ,मामा की ढुंढेर मची किन्तु मामा को किसी ने बुलाया हो या मामा आया हो तो ,वो नजर भी आये। इस समय ,पार्वती को भी ,अपने परिवार की याद सता रही है। क्या करे ?जब से विवाह करके ,अपनी ससुराल में आई ,तब से आज तक ,उसके परिवार से उसका कोई संबंध ही नहीं रहा। न ही उसे , अब मालूम है ,उसका परिवार अब कहाँ और कैसा है ?उसने भी कभी जानने का प्रयत्न नहीं किया ,जब उसके अपने माता -पिता ने ही ,उसे ऐसे ही किसी अनजान के हाथों सौंप दिया। माँ ने तो चलते समय कहा भी था -किन्तु वो ही उसके शब्दों का भाव समझ नहीं सकी। बारात के आने के इंतजार में ,इतने शोर -शराबे में भी वो कई बरस पीछे पहुंच गयी। दिल्ली के होटल में रात्रि बिताकर ,वो लोग प्रातः काल ही घर के लिए निकल पड़े। वो अँधेरे में ही ,घर पहुंच जाना चाहते थे ताकि मेरे आने की सूचना मौहल्ले में न फैले। उस समय तो मैं समझ नहीं पाई किन्तु आज सब समझ आता है। ये तो [तरुण ] मुझे लेकर घर पहुंचे। माँ [मेरी सास ]ने अपने परिवार के शुभ के लिए ,मेरी नजर उतारी और दरवाज़े पर आरती भी की।
मुझे देखकर ,पहले ऊपर से नीचे तक ,घूरते हुए ,मेरा निरीक्षण किया। जैसे मैं इंसान नहीं वरन कोई वस्तु हूँ। जिसको देखा -परखा जा रहा था। मेरा पति और उसका भाई मुझे अपनी माँ के पास छोड़कर चले गए।
क्या नाम है ?तेरा !!
जी पार्वती !
कितने बरस की है ?
सोलह !
कुछ पढ़ी -लिखी है !
जी नहीं ,बापू ने भेजा ही नहीं !किन्तु थोड़ी गुजराती पढ़ लेती हूँ।
खाना -वाना बनाना आता है।
हाँ !कुछ पल इसी तरह देखती रहीं ,फिर बोलीं -क्या तुझे मेरा बेटा पसंद है ?
नहीं !!!
क्यों ?फिर उससे विवाह क्यों किया ?
वो बहुत लम्बा है ,मैं छोटी हूँ और वो काला भी है। ब्याह तो ,मेरे बापू ने करवाया। माँ कह रही थी -एक ज़िम्मेदारी तो पूरी होगी ,जब मेरा ब्याह होगा तभी तो दूसरी बहनों का होगा।
तू पति को कैसे बोल रही है ? क्या तेरी माँ ने यही सिखाया। अब तू छोटी है ,इसमें मेरे बेटे का क्या दोष ?तू भी खूब खायेगी -पीयेगी उसी की तरह लम्बी हो जाएगी किन्तु आज के बाद ,मेरे बेटे को इस तरह से ऐसे कभी मत बोलना। समझी!!!!! उन्होंने डांटते हुए कहा।अब जा !अपना ये थैला रख दे ,यहाँ इस तरह के कपड़े कोई नहीं पहनता। जैसे कपड़े हम लायेंगे ,वैसे ही पहनने होंगे।
पार्वती ने गर्दन हिलाई और अंदर कमरे में चली गयी। तरुण अपनी माँ से कह रहा था -अभी इसे बहुत कुछ सीखाना होगा ,अभी कुछ भीनहीं जानती। आप किसलिए हैं ?आप इसे सब सीखा दीजियेगा।
रात्रि में ,मुझे अपने पति के कमरे में ही सोना पड़ा किन्तु ये मेरे लिए अच्छा था या बुरा नहीं जानती ,वो सात दिनों के लिए बाहर गया था। अगले दिन प्रातःकाल ही ,माँ ने मुझे उठाया नहाने के लिए कहा और नए कपड़े भी दिए ,नए कपड़े पहनकर मुझे अच्छा लग रहा था। पूजा करना सिखाया ,और रसोईघर में ले गयीं। वहाँ रसोई हमारे घर जैसी नहीं थी ,सभी चीजें करीने से सजी रखी थीं। वो मुझे सिखा रहीं थीं और गलती पर डांट भी देतीं। काम हो जाने के बाद ,मुझसे पूछा -क्या तरुण तुझसे बोला था ?
हाँ , पूछ रहे थे ,तुम कितना पढ़ी हो ?
उन्होंने माथा पीट लिया और बोलीं -ये नहीं पूछ रही ,क्या तूने कभी सिनेमा नहीं देखा।
नहीं !!!
तब उन्होंने सीधे -सीधे पूछा -क्या वो तेरे संग सोया था ?
हम दोनों तो एक ही पलंग पर सोये थे ,अब मुझे कुछ समझ आने लगा ,वो क्या पूछना चाह रही हैं ?
झल्लाकर बोलीं -अरी मूढ़ !क्या उसने तुझे छुआ था ?
नहीं ,में गर्दन ही हिला पाई।
तू जानती है ,कितना बड़ा आदमी है ?तेरे जैसी दस को खरीद सकता है और तेरे बापू को भी, उसने तेरी अच्छी कीमत दी है और तूने उसे अपने नजदीक आने नहीं दिया।
नहीं ,हमारा ब्याह हुआ है ,मेरे बापू ने कोई पैसा नहीं लिया।
उसने तुझे बेचा है ,और मेरे बेटे ने उसकी अच्छी क़ीमत चुकाई है। जैसा तेरा ब्याह हुआ ,ऐसे कोई विवाह होते हैं ,वो तो तेरे बाप ने तेरी माँ को बहलाने के लिए, विवाह का नाटक करा दिया और ख़बरदार ! जब भी मेरा बेटा आये और तुझसे कुछ कहे ,तो मना मत करना ,मना करने की तेरी औकात नहीं।पता नहीं , कहाँ सड़कों पर धक्के खा रही होती ,यहां तुझे अच्छी ज़िंदगी जीने को मिलेगी ,पत्नी का दर्ज़ा भी मिलेगा , समझी !!! जितना जल्दी इन बातों को समझेगी ,उतना ही बेहतर है।
पार्वती उदास चेहरा लिए ,अपने कमरे में चली गयी ,उसके चेहरे पर जो दर्प था, वो टूट चुका था।उसका अपना क्या रहा ?वो तो एक बिकी हुई वस्तु है ,जिस पर अब उसका अपना कोई अधिकार नहीं। बापू ने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया ,क्या माँ भी जानती होगी ?तभी तो कह रही थी ,शायद हम फिर न मिलें किन्तु तुम एक अच्छी ज़िंदगी जीना। बिक़े हुए इंसान की भी अपनी कोई ज़िंदगी होती है ,उसका तो अपने आप पर ही अधिकार नहीं रहता। वो देर रात तक रोती रही।
हकीकत पता चलने पर पार्वती बहुत क्षुब्ध हो जाती है, आज वो अपने को एक बिकी हुई वस्तु से ज्यादा कुछ नही समझ रही थी, जिसकी अपनी कोई पहचान नहीं होती वो तो विक्रेता पर निर्भर करता है , अपनी उस वस्तु का किस तरह उपयोग करता है? अब निलिमा के विवाह में मामा का कर्तव्य कौन पूर्ण करेगा ? जानने के लिए पढ़िये -ऐसी भी ज़िंदगी