नीलिमा की शादी में पार्वती जो नीलिमा की माँ है ,उसे अपने दिन स्मरण हो आते हैं। जब वो पहली बार अपनी ससुराल आई और उसे माँ [सास ]के पास घर गृहस्थी सिखाने के लिए छोड़ दिया गया ,तभी उसे पता चलता है। उसका तो अपना कुछ है ही नहीं ,वो स्वयं भी ,एक खरीदी हुई वस्तु ही है। खरीदी हुई ,वस्तु ,जो खरीदता है ,उसकी अपनी होती है ,और वो जैसा चाहे ,उसका उपयोग कर सकता है। उसका मन ये मानने के लिए तैयार नहीं था कि वो कोई वस्तु है, किन्तु ये भी एक सच्चाई ही थी। जब उसे यहां इतनी दूर से लाया गया है तो बात में अवश्य ही कोई सच्चाई तो होगी । उसका मन तो कर रहा था -अपनी माँ और बापू से जाकर लड़े, कि उन्हें किसने हक़ दिया ?मुझे किसी जानवर की तरह बेच दिया। हाँ ,एक जानवर ,पशु ही तो हूँ ,हमारा तो काम भी यही था भेड़ -बकरियों को पालना उनसे काम लेना और बेच देना।
अब बापू ने नया कार्य आरम्भ किया होगा ,अपनी ही औलाद को पाल -पोषकर बेच देना। उस औलाद में सिर्फ़ बेटियाँ ही आती हैं। उन्हें पढ़ाया भी नहीं जाता और वे एक वस्तु की तरह ,इधर से उधर हिस्सों में बंटती रहती हैं।
उसके लिए ,इससे बड़ा और क्या जख़्म होगा ?उसके अपने ही, उसके सौदाई निकले। अब मिलना भी चाहे तो वो नहीं मिलेगी। अब उनका मुझ पर अधिकार ही कहाँ रहा ?मन तो किया ,यहाँ से कहीं दूर भाग जाऊँ ,फिर सोचा -जाउंगी भी कहाँ ?हर जगह इसी तरह के लोग मिलेंगे। जिन्होंने खरीदा है ,उसकी क़ीमत तो उन्हें वसूल करने दो ,वरना बापू झूठा माना जायेगा कि सौदा खरा नहीं निकला।सोचते और रोते पता नहीं कब नींद आई? इसीलिए उठने में भी देरी हो गयी। सुबह माँ की आवाज सुनकर ,उसकी आँखें खुली।
वो कह रही थीं -हमारे घर की बहुएं , देर से नहीं उठती। जल्दी सोया करो और जल्दी ही उठा करो।
जी...... कहकर वो नहाने चली गयी। आज भी उसे कुछ नया अध्याय सीखना था। वो जीवन का था या फिर घर गृहस्थी का ये तो समय ही बताएगा। सास के सर में तेल मालिश करते समय पार्वती ने पूछा -इन्होंने यहाँ विवाह क्यों नहीं किया ?जो इतनी दूर गए।
तब वो भावुक होकर बोलीं -इसके ऊपर बहुत ज़िम्मेदारियाँ थीं ,घर बनाया ,स्वयं पढ़ा अपने भाई को भी पढ़ाया किन्तु यहां के लोगों के हिसाब से ,इसकी विवाह की उम्र नहीं रही। लोग सूरत देखते हैं ,सीरत नहीं देखते। क्या कमी है ?मेरे बेटे में !!लम्बा -तंदुरुस्त है ,काला है तो क्या ?कृष्णा भी तो काला था कहकर उन्होंने पार्वती की तरफ देखा।
पार्वती ने नजरें नीची कर लीं।
एक सप्ताह पश्चात ,तरुण आये तो ,पार्वती की नजरें झुकी हुई थीं। उन्होंने उसके चेहरे की तरफ देखा। यहाँ रहकर तो पहले से अधिक निखार आ गया है। रंग तो उसका पहले से ही गौरा था अब उस रंग ,में चमक आ गयी। वो उसे देख मुग्ध से हो गए और बोले -तुम ठीक हो !किन्तु पार्वती मुस्कुराई नहीं ,वरन हाँ में गर्दन हिलाई और उनके लिए पानी लेने चली गयी।
तरुण ने इशारे से माँ से पूछा - कुछ हुआ है क्या ? माँ ने भी इशारे से ही समझा दिया ,सब ठीक है। रात्रि को सम्पूर्ण खाना पार्वती ने ही बनाया और आज उसने साड़ी भी पहनी थी। रात्रि को जब वो अपने कमरे में गयी तो आज साथ देने के लिए ,तरुण थे। पार्वती के चेहरे पर शून्य था ,जो उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था ,उन्होंने पूछा -कुछ हुआ है क्या ?माँ ने कुछ कहा।
नही....... आज वो पलंग पर बैठने में हिचकिचाई नहीं ,शायद वो हर परिस्थति के लिए मानसिक रूप से तैयार होकर आई थी। फिर भी उसने पूछा -आपने मुझे कितने में ख़रीदा ?
तरुण उसके प्रश्न से ,अचकचाकर लेटे हुए उठकर बैठ गए और बोले -ये सब तुमसे किसने कहा ?माँ ने बताया।
आप मेरे प्रश्न का जबाब दीजिये ,मैंने तुम्हें खरीदा नहीं ,तुम कोई सामान नहीं हो ,जीती -जगती इंसान हो जिसे मैं पसंद करके तुम्हारे परिवार की इच्छा से ,अपने संग लेकर आया हूँ। रही बात पैसों की ,जब वो लोग तुम्हारे माता -पिता हैं ,मुझसे संबंध जुड़ने के पश्चात, मेरे भी तो माता -पिता हुए। कुछ पैसे देकर ,उनकी सहायता कर दी ,तो क्या हुआ ?तुम्हारी बहनों की शादी के लिए भी तो ,पैसे चाहिए होंगे। अपने घर की कुछ आवश्यकताएँ पूर्ण कर लेंगे। तब बताओ ! मैंने क्या गलत किया ?तरुण के शब्दों ने ,पार्वती के जलते मन पर मरहम का काम किया और वो उससे लिपटकर रोने लगी। तरुण के लिए ,किसी लड़की का इतने नजदीक आने का एहसास नया था और पार्वती के लिए भी ,धीरे -धीरे उसके मन का क्रोध कम होने लगा। तरुण उसकी पीठ सहला रहा था। वो रोते -रोते धीरे -धीरे शांत होने लगी ,तब उसने अपने को तरुण से अलग करना चाहा किन्तु उसने देखा -तरुण तो आँखें मूँदे ,उसको सहला रहा था। उसके चेहरे का सुकून बतला रहा था कि वो अज़ीब अनुभूति को महसूस कर रहा था। उसका मन प्यार के गहरे सागर में गोते लगा रहा था। उसे देखकर ,पार्वती भी अपना दर्द भूलकर ,उसी के रंग में रंगने लगी और उसने भी तरुण के सीने में अपना चेहरा छुपा लिया।
दोनों ही इस नई अनुभूति को महसूस कर रहे थे ,उस प्यार के सागर में ,गोते लगाने को आतुर हो उठे। पार्वती इस रौशनी में ,अपने अस्तित्व को महसूस कर पा रही थी जो तरुण में समा जाना चाहता था ,वो झट से तरुण से अलग हुई और रौशनी का अस्तित्व समाप्त कर अँधेरे में विलीन हो गयी। किन्तु उसके मन में ,एक अलग ही रौशनी ने जन्म ले लिया ,आज वो एक लड़की से एक औरत बनने जा रही थी। ये दर्दभरा सुखद एहसास था। जो दो तन ,दो अस्तित्व एक हो रहे थे। न ही कोई गिला शिकवा ,न ही कोई दर्द ,बस सुकून और शांति थी। इस जीवन से परे एक अलग ही ,दुनिया नजर आ रही थी। उस अँधेरे में भी ,एक दूसरे को महसूस कर पा रहे थे ,एक दूसरे की गर्म स्वासों को महसूस कर रहे थे। हल्के दर्द के साथ ,दोनों एक दूजे में समाकर ,शांत हो गए। स्वांसों का तूफान जैसे थम सा गया और पूर्ण शांति थी।
सुबह बेटे का चेहरा देखकर माँ ने ठंडी और गहरी और सुकून की श्वांस ली। पार्वती की तो जैसे नजरें ही झुकी जा रही थीं ,वो तरुण से नजरें नहीं मिला पा रही थी, किन्तु चेहरे पर मुस्कुराहट थी। वो उठी और सीधे नहाने चली गयी। नजरभरकर आईने में देखा ,इससे पहले तो कभी, सोचा भी नहीं था ज़िंदगी इतनी सुंदर भी हो सकती है। आज उसे इस तन से मुहब्बत हो गयी है ,उसे सजाने -संवारने का मन कर रहा है। तभी उसकी सास उसके लिए ,गहने कपड़े लेकर आई और बोली -आज मौहल्ले की महिलाएँ तुझे देखने आएँगी। कह रही थीं - कि बेटे का विवाह हो गया और हमें बताया भी नहीं। आज पर्वती ने भी पूरे सौलह श्रृंगार किये उसे तैयार कराने के लिए ,पड़ोस की महिला को बुलवाया था। तैयार होकर अपने को ,उसने आईने में देखा तो पहचान नहीं पाई और अपनी ही नजर उतार ली। माता -पिता से दूर होने का ,सास का कठोर व्यवहार सब भूला दिया ,अब वो खुश रहना चाहती थी।
क्या पार्वती की ज़िंदगी इसी प्रकार सुकून से बीतेगी या फिर बदलते वक़्त के साथ उसके जीवन में भी बदलाव आयेगा? यदि बदलाव होता है, तो वो कैसा होगा ,पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी