पार्वती ने तरुण को अपना लिया ,अब वो उसके संग रहकर अपनी सभी परेशानियों को भूल जाना चाहती है। यहां उसे नए वस्त्र ,आभूषण और रहने के लिए ,घर सभी कुछ तो मिला है। सम्मान देने वाला पति भी। आज पार्वती की मुँह दिखाई है ,आज उसे मोहल्ले की महिलाओं से ,परिचित कराया जाता है। सभी महिलाएं तरुण की बहु को देखने आती हैं। बहु तो बहुत ही खूबसूरत है। जितनी देरी से विवाह हुआ ,उतनी ही सुंदर बहु लाया है। बहु कहाँ की है ? देखने में तो बहुत ही कम उम्र की लग रही है ? कहीं खरीदकर तो नहीं ले आये ?माँ -बाप गरीब ही होंगे ,तभी इतनी कम उम्र में इसका विवाह करा दिया। बाहर से ब्याहकर लाये हैं
,कौन जाने, विवाह हुआ भी है या नहीं। कुछ भी हो, इसकी भी तो किस्मत खुल गयी। इतना पढ़ा -लिखा लड़का मिला है।राज करेगी और लड़की को चाहिए ही क्या ? पर्दे में बैठी ,पार्वती यही सब बातें सुन रही थी ,और वो समझने का प्रयास कर रही थी कि इनकी बातों से वो खुश हो या परेशान। ये बुराई कर रही हैं या प्रशंसा। उन्होंने चाय नाश्ता किया और अंत में ,बोलीं -तेरी बहु है ,तो बहुत सुंदर ,अब देखते हैं तेरे घर में निभ भी पायेगी या नहीं।
तरुण ने माँ से पूछा -आपने उसे ये सब क्यों बताया ?कि उसे खरीदकर लाये हैं ,अभी वो बच्ची है ,कुछ ग़लत कदम उठा लेती तो.....
माँ ने समझाया - मैं जानती हूँ ,कितनी चोट लगानी है ?सुनार और लुहार जानता है, किसी वस्तु को सांचे में ढालने के लिए ,कितनी चोट लगानी है ?उसका दर्प तोडना जरूरी था।
पार्वती ने मौहल्ले की महिलाओं की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। बल्कि सास बुदबुदाने लगीं -जल रही थीं ,सारी की सारी ,उन्हें तो लग रहा होगा ,मेरे बेटे का तो विवाह ही नहीं होगा। अब इतनी सुंदर बहु देखी तो'' छाती पर साँप लोटने 'लगे। हालाँकि वो इधर की भाषा कम ही समझ पा रही थी, फिर भी इतना तो समझ ही गयी कि उसकी सास ने उसकी प्रशंसा की है। वो इससे ज्यादा कुछ जानना भी नहीं चाहती ,धीरे -धीरे पार्वती अपने इस नये परिवार में रमने लगी ,वहाँ के तौर -तरीक़े और रीति -रिवाज़ सब अपनाने लगी। आज उसका मन कुछ ठीक नहीं है ,विवाह को छह माह हो गए ,आज तक तो ऐसा नहीं हुआ ,शायद उसने कुछ गलत खा लिया। अब तो उसे अपने घर की याद नहीं सताती ,न ही आज तक उन लोगों से मिली और न ही बातचीत की किन्तु आज तबियत बिगड़ जाने पर ,माँ की याद आ रही थी।
सास पार्वती के कमरे में आई ,बोली -बहु ,सब ठीक तो है !
नहीं ,कुछ अच्छा नहीं लग रहा ,पता नहीं ,क्या हुआ ?
सास मुस्कुराई और बोली -चल ! डॉक्टरनी को दिखा आते हैं।
नहीं चूरन खा लूँगी तो ,शायद ठीक हो जाउंगी।
नहीं तू अभी मेरे संग चल ,पार्वती तैयार होने लगी। तभी बाहर कोई आया ,उसकी सास उसी से बातें कर रही थी। जब पार्वती तैयार होकर बाहर आई तो ,वो महिला भी उसे देखकर मुस्कुराई और बोली -यहाँ आकर बैठ ! उस महिला ने उसका हाथ पकड़ा और नब्ज़ टटोली और बोली -मिठाई खिलाओ !बहु तो ख़ुशख़बरी सुनाने वाली है। तुम्हारे घर की वंश बेल फूटने लगी है ,अब ये घर खुशियों से भर जायेगा ,बहु ने शीघ्र ही खुशखबरी दी है।
पार्वती अपनी सास का चेहरा देखने लगी ,वो जानना चाहती थी- कि ये महिला कौन है ?उसकी सास ने उसके भावों को समझा और बोलीं -ये बहुत अच्छी दाई है ,ये तो बहुओं की चाल देखकर ही बता देती है ,बेटा होगा या बेटी। कहकर वो तो मिठाई लेने अंदर चली गयीं और पार्वती भी अंदर आ गयी।
क्या वो भी...... अब माँ ,बनेगी ,जैसे मेरी माँ और मेरी सास। नहीं ,अवश्य ही कुछ गलतफ़हमी हुई होगी ,कुछ ठीक नहीं लग रहा। डॉक्टर के पास तो जाना ही होगा वरना वो शाम को आकर कहेंगे -जब तबियत बिगड़ी हुई थी ,तब डॉक्टर के पास क्यों नहीं गयी ?पार्वती ने उस औरत का वहम समझ ,अपनी सास के पुकारने की प्रतीक्षा करने लगी।उस महिला के चले जाने पर वो बोलीं -अब तुझे बहुत ही एहतियात से रहना होगा। भारी वजन मत उठाना और.....
उनकी बातें पूर्ण होने से पहले ही ,पार्वती बोली -अभी डॉक्टरनी ने नहीं बताया।
तो क्या हुआ ? ये भी किसी डॉक्टरनी से कम नहीं ,यदि वो कह रही है तो सही ही होगा।
शाम को जब ,तरुण आते हैं तो ,माँ ने सबसे पहले ,ये सूचना अपने बेटे को ही सुनाई और उसे बाप बनने की खुशखबरी सुनाई ,पहले तो बहुत ही प्रसन्न हुए किन्तु शांत होकर अंदर लेट गए। पार्वती भी ,पीछे -पीछे ही हो ली और पूछा -क्या हुआ ?
कुछ नहीं.....
कुछ तो हुआ है ,क्या तुम्हें बाप बनने की ख़ुशी नहीं ?
धत!!!!कौन बाप बनना नहीं चाहेगा ? किन्तु कुछ जल्दी ही हो गयी ,अभी तो हमें छह माह ही हुए हैं ,कुछ और दिन साथ बिताते।
क्यों ? मैं क्या कहीं जा रही हूँ ?
तरुण ने नजरभर ,पार्वती की तरफ देखा और मुस्कुराकर बोला -कल डॉक्टर के चलेंगे। उसकी बात सही निकली। डॉक्टर ने भी यही कहा। तीन माह ,पश्चात दाई आई ,सास ने पूछा भी ,बता !पोता होगा या पोती किन्तु उसने कुछ जबाब नहीं दिया और बोली -अभी समय है ,पता नहीं चलेगा किन्तु उसके हाव -भाव से लग रहा था -'कि वो जान गयी है। कई माह तक, नहीं दिखी ,सास इसी प्रतीक्षा में थी ,कि कब वो आये ?और वो पूछें। आखिर वो दिन आ ही गया ,जब बड़ी वाली दुनिया में आ गयी।उसके आने से सभी प्रसन्न तो हुए किन्तु बाहरवालों के सामने ,वे लोग भी समझ रहीं थीं।
बेटी के पैदा होने के पश्चात् दाई भी आ गयी। सास ने उसे उलाहना देते हुए कहा- अब आई है, इतने दिनों से कहाँ थी? मैं प्रतिक्षा कर रही थी।ले मिल ले, इससे पोती हुई है ।
तब वो बोलीं -कोई बात नहीं, पहला फ़ल है ,स्वस्थ और ठीक -ठाक होना चाहिए। लक्ष्मी आई है ,अगली बार बेटा ही होगा। तरुण को बस मेरी ही चाह थी।तरुण ने न जाने कैसे -कैसे प्रतीक्षा की ?किन्तु डॉक्टर ने अभी भी कुछ दिनों की प्रतीक्षा के लिए कहा है। मैं अपनी बच्ची में व्यस्त रहती ,तब वो थोड़े चिढ जाते। उन पर ध्यान कम होने से कभी -कभी बेटी को भी झिड़क देते इसीलिए उनके आने से पहले ही ,सभी कार्य निपटाकर ,बेटी को उसकी दादी के पास छोड़ देती। समय के साथ उनका व्यवहार बदलने लगा किन्तु मैं कारण नहीं समझ पाई। कभी लगता ,ये शुरूआती प्रेम था। अब असली चेहरा नजर आ रहा था या फिर ये बेटी के आने से खुश नहीं।
अचानक तरुण का व्यवहार क्यो बदलने लगा क्या वो बाप बनना नही चाहता था? या बेटी हुई है इसलिए नाराज है, या पार्वती अब उसे समय नही दे पाती जानने के लिए पढ़िये -ऐसी भी ज़िंदगी