नीलिमा सक्सैना ''जो एक ''समाज सेविका '' है ,उसके तीन बच्चे हैं - दो बेटी एक बेटा ,जो अब बड़े हो चुके हैं ,उसकी छोटी बेटी तो अब विदेश में ,पढ़ाई करने गयी है ,दूसरी भी परा स्नातक में है ,बेटा अभी कुछ -कुछ चीजें सीख गया है। किन्तु अभी वो ज्यादा कुछ नहीं कर पाता ,किन्तु नीलिमा उसके लिए मेहनत करती है ,उसका दिमाग़ कम होने पर भी प्रयत्न करती रहती है कि उसको भी किसी न किसी तरह उसकी बहनों की तरह ही सक्षम बना दे।
प्रातः काल ही वो उठी और अपने घर के कार्यों में व्यस्त हो गयी। अभी बेटा और बेटी दोनों सो रहे हैं। तभी उसके फोन की घंटी बज उठी ,वो रसोईघर में अपने लिए चाय बना रही थी। फोन की आवाज़ सुनकर मन ही मन बुदबुदाई -आज सुबह -सुबह ही ,न जाने किसका फोन आ गया ? रसोई से बाहर निकलते हुए ,अपने -आप से ही बोली -आई ,पता नहीं, किसको मेरी याद आ गयी ?फोन में नाम देखा तो ,मन कसैला हो गया ,फिर भी फोन उठा ही लिया।
हैलो !!!उधर से उत्साहभरी आवाज़ आई।
हैलो !!नमस्ते पापा जी !
और कैसी है ?सब ठीक हैं .......
चाय का घूंट भरते हुए ,वो बोली -हां..... सब ठीक ही है।
भई !बधाई हो तुझे ,तेरी बेटी पढ़ाई करने बाहर चली गयी।
हाँ ,इसमें बधाई कैसी !उसने मेहनत की और चली गयी। अपनी मेहनत का फ़ल उसे मिला।
वैसे तो बेटा !शेरनी है तू !तूने अपने बच्चों को क़ामयाब कर लिया ,उनकी बातों से उसकी चाय का स्वाद भी बिगड़ गया। उसके मन में आया कि वो उन्हें अच्छे से कुछ सुना दे किन्तु आज अपने........ पिता के प्रति, उसके मन में कोई सम्मान नहीं ,तो अनादर भी नहीं कर सकी। बोली -पापा !मुझे भी देरी हो रही है ,अपने दफ्तर भी जाना है और अथर्व भी उठ गया , उसको भी खाना देना है ,कहकर उसने फोन काट दिया।
बड़े आये ,मुझे बधाई देने ,जब मुझे आवश्यकता थी, तब एक बार भी नहीं पूछा न ही कहा -कि मेरी..... तो छोडो ,बेटी परेशान हो रही होगी। कई बार मैंने उम्मीद से ,उनकी तरफ देखा -शायद मेरी सहायता करें ,किन्तु ऐसे हो गए जैसे मुझसे कोई मतलब ही न हो। अब क्या मैं ,तुम्हारी बधाई की भूखी हूँ ?सुबह -सुबह ,मुँह भी कसैला हो गया। चाय का स्वाद तो जैसे वो भूल ही गयी।
तभी रज्जो भी आ गयी ,-राम -राम जी कहकर उसने अपनी झाड़ू उठाई और अपने काम में लग गयी। नीलिमा भी अपने लिए दुबारा चाय बनाने रसोईघर में चली गयी। इस बार उसने बेटी के लिए भी चाय बनाई और उसके लिए चाय बनाकर ,उसी के कमरे में ले गयी। सोचा था -काफी देर हो गयी ,उसे उठा दूँ किन्तु वो तो पहले से ही उठी हुई थी ,अपनी पढ़ाई कर रही थी।
उसे देखते ही ,नीलिमा का मन प्रसन्न हो गया और बोली -मेरी बेटी उठ गयी ,उसने चाय को उसके पास पड़ी मेज पर रखा , मम्मा की प्यारी बेटी कहकर, उसकी झप्पी ली और बोली -तुम कब उठीं ?
जब आप नानू से बातें कर रही थीं , नानू !ने इतनी सुबह कैसे फोन किया ?
अरे कुछ नहीं ,तेरी बहन शिवांगी के विदेश जाने की बधाई दे रहे थे ,अच्छा !अब तुम अपना काम करो और ये चाय ठंडी होने से पहले पी लेना, कहकर वो बाहर आ गयी।
बाहर आकर सोच रही थी ,क्या सुबह -सुबह ही दिन खराब हो गया ,पता नहीं ! सारा दिन आज कैसा जायेगा ?सोचकर उसने घड़ी में समय देखा ,बेटे को उठाया। उसके दैनिक क्रिया कलाप करवाए और उसे लेकर नाश्ते की टेबल पर आ गयी। तब तक चम्पा ने भी आकर ,नाश्ता बना दिया था। अथर्व की पसंद का ओट्स और सेब की खीर ,नीलिमा ने अथर्व के गले में नैपकिन बांधा और उसे समझाते हुए बोली -मेरा अथर्व अब बड़ा हो गया है ,अब अपने हाथों से ही अपना नाश्ता करेगा। आराम -आराम से और सफाई से ,तब तक मैं भी नहाकर आती हूँ। तभी उसे ,कल्पना भी नाश्ते के लिए आती दिखी ,उससे बोली -अपने भाई का ख़्याल रखना ,मैं नहाकर आती हूँ। कल्पना ने इशारे से अपनी माँ को आश्वस्त किया और वो भी अथर्व के साथ ,बैठ कर ही नाश्ता करने लगी।
नीलिमा जब नहाकर आई ,तब उसने देखा -अथर्व नाश्ता कर चुका है ,उसने कहीं भी कोई गंदगी नहीं की। नीलिमा तो जैसे ,प्रसन्न हो गयी और बोली -वाह ,आज मेरे बेटे ने कितनी सफाई से नाश्ता किया ?कल्पना की तरफ देखकर क्रोध का अभिनय करते हुए ,बोली -तूने तो अपने भाई की कोई सहायता तो नहीं की।
नहीं ,मम्मा इसने स्वयं ही ,सब फिनिश किया।
वेरी गुड़ ,मैं न कहती थी अब तेरा भाई बड़ा हो गया है ,अपनी प्रशंसा सुनकर वो भी धीरे -धीरे मुस्कुराया। उसने अथर्व से कहा -जाओ !अब झूले पर बैठकर ,वो पुस्तक देखो ,जो मैं तुम्हारे लिए लाई हूँ।
वो तैयार होकर ,अपने दफ्तर के लिए जाती है ,कल्पना को भी सख्त हिदायतें देकर जाती है ,बाहर कहीं मत जाना ,बाहर से कोई अनजान आये या कोई रिश्तेदार भी ,किसी के लिए भी ,दरवाजा मत खोलना। अन्य कोई भी बात हो ,तो मुझे फोन कर लेना। रज्जो भी काम करके चली जाती है ,घर में कल्पना ,अथर्व और चम्पा रह जाते हैं। चम्पा तो बच्चों को दोपहर का खाना बनाकर खिलाकर वहीं अथर्व का ध्यान रखने के लिए ,रह जाती है। रात्रि के खाने के पश्चात ही ,वो अपने घर जा पाती है।चम्पा भी यूँ ही नहीं आ रही ,नीलिमा ने ही उसे ,उसके शराबी पति के चुंगल से छुड़ाकर ,उसे अपने यहाँ काम भी दिया। देखने में कितना ,अच्छा परिवार लग रहा है ,सब तरफ सुख -शांति ,हर चीज़ नियत समय पर हो जाती है। ये नीलिमा की मेहनत ही तो है।नीलिमा अपने दफ्तर पहुंचती है ,उससे मिलने वाले ,बहुत लोग पहले से ही उसकी प्रतीक्षा में थे और वो उनकी समस्यायों को सुलझाने में व्यस्त हो जाती है।
जीवन कितना सुंदर प्रतीत होता है ,किन्तु इस सुंदर और सुलझे जीवन की सच्चाई क्या है ? क्या आप जानना नहीं चाहेंगे ?नीलिमा का पति उसके बच्चों का बाप कहाँ है ? नीलिमा अपने पिता का फ़ोन देखकर क्यों परेशान हो उठी ?पता नहीं ,ये ज़िंदगी भी कितने अजब खेल खेलती है। एक खेल वो नीलिमा के साथ ही खेल गयी।