बेटे के होने की ख़ुशी में ,ढ़ोल बजा और घर के बाहर थाली भी पीटी गयी। बेटा ,बिल्कुल अपने बाप पर ही गया था । दोनों बेटियों के बिल्कुल विपरीत ,किन्तु सभी की आँखों का तारा मयंक देखने में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था किन्तु वो एक लड़का था। इसी के बल पर तो इस घर की रौनक है ,काला है तो क्या हुआ ?अपने ख़ानदान का नाम तो ये ही रौशन करने वाला है। बहु तो अपने बाप की तरह ही ,सुंदर ले आएगा। लड़के की सुंदरता नहीं ,उसका पैसा देखा जाता है ,ऐसा उसकी सास का कहना था। जो भी रहा हो ! कुछ दिन तो सुकून से निकल ही जायेंगे। तभी बाजे की आवाज ने उन्हें ,वर्तमान में ला दिया ,सभी कहने लगे -चलो बाराती आ गए ,दूल्हे का आरता कौन करेगा ?भाभी करती है ,किन्तु भाभी तो अभी है नहीं ,बड़ी बहन कर सकती है।
चंद्रिका दूल्हे का आरता ,करने के लिए सबसे आगे गयी किन्तु अन्य चचेरी बहनें भी जीजाजी को देखने पहुँच गयीं। वो पहले भी एक -दो बार धीरेन्द्र से बातें कर चुकी थी। जब चंद्रिका ने अपना परिचय दिया ,तब वो तुरंत ही पहचान गया। चंद्रिका ने उसका आरता किया। सभी दूल्हे के साथ ही अंदर आ गए ,साथ में उसके दोस्त भी !
शादी की धूमधाम थी ,फ़िल्मी गाने बज रहे थे ,दूल्हा मंच पर बैठा था ,दुल्हन के आने की प्रतीक्षा थी ताकि जयमाला हो सके। धीरेन्द्र के दोस्त ,पूरी मस्ती में थे ,कोई उसके करीब वाली कुर्सी पर ही बैठ गया ,कोई उसकी कुर्सी के हत्थे पर बैठा नजर आ रहा था।दुल्हन की तरफ से जो लड़कियां थीं ,वो जीजाजी को देखकर प्रसन्न हो रहीं थीं। लड़केवालों की तरफ से ,धीरेन्द्र के माता -पिता और उसका भाई थे। इतने धूम -धड़ाके में भी उनके चेहरे पर वो ख़ुशी के भाव नहीं थे। डिम्पी और उसकी मम्मी नीलिमा को लेकर आ रहीं थीं। उनका उद्देश्य ,लड़की के संग ही रहेंगे तब हमारी सबसे ज्यादा फोटो भी खिचेंगी और सबकी नजर में रहेगा कि इन्होंने ही शादी में सबसे आगे बढ़ -चढ़कर हिस्सा लिया। कमरे से तो उसे ऐसे ही उठा लाई ,किन्तु बाहर आते ही ,उसका पल्लू ठीक किया और उसके हाथों में जयमाला भी थमा दी। लड़की को आते देख ,एकदम से गाना बदल गया -''बहारों फूल बरसाओं ,मेरा महबूब आया है। ''सभी लड़कियों ने अपने हाथों में फूल ले लिए ,किसी -किसी ने तो उनकी पंखुड़ी ही निकाल ली ताकि ज्यादा फूल दिखें और सभी ने योजना बनाई जैसे नीलिमा मंच के नजदीक आएगी ,एक साथ फूल हवा में बिखरायेंगे। दीप्ती और उसकी मम्मी पकड़कर ला रही थीं। इस समय उसकी बड़ी बहन चंद्रिका पीछे थी जबकि नीलिमा अपनी बहन का साथ चाह रही थी किन्तु दोनों माँ -बेटियों ने उसे आगे आने का मौका ही नहीं दिया।
एक नजर नीलिमा ने ,धीरेन्द्र को देखा ,जो नीले सूट में बैठा था ,उसका गोरा चिट्टा रंग कुछ गुलाबीपन लिए था। उसकी उस छवि को देखकर ही नीलिमा उस पर लट्टू हो गयी।वो भी वहीँ से बैठा ,नीलिमा को देख रहा था किन्तु उसके चेहरे से अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था कि नीलिमा उसे भी पसंद है या नहीं। तभी डिम्पी बोली -देखो दीदी !जीजाजी आपको किस तरह देख रहे हैं ?देखें भी क्यों न ?हमारी दीदी है ही इतनी सुंदर और आज तो ग़जब ढा रही हैं। अपनी प्रशंसा सुनकर ,नीलिमा भी मुस्कुरा दी। आज तो उसकी सहेली भी उसे देखकर ताज्जुब कर रही थी ,अचानक इसे इतना रूप कैसे आ गया ?तभी कैमरे वाले ने इशारा किया कि धीरेन्द्र ,नीलिमा को हाथ पकड़कर मंच पर लाये। धीरेन्द्र ने अपना हाथ आगे बढ़ाया ,नीलिमा ने भी अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया। ऐसे भावुक क्षणों में ,उसके हाथ काँपने लगे ,उसकी आँखें भी अज़ीब तरह से नशीली सी हो गयीं। अब तक मंच से उसके सभी दोस्त उतर चुके थे। अब तो उनकी जगह, उसकी सालियों ने ले ली थी।
सभी धीरे -धीरे मंच पर चढ़ गयीं ,उसकी चाची तो उसे मंच तक छोड़कर ही वापस आ गयी किन्तु चुप भी हो गयी। किसी को इतना समय ही कहाँ था ? कि उसके मन या चेहरे के भाव पढ़ सके।जयमाला के समय लड़के के दोस्त भी साथ में ही आ गए और लड़कियों की तरफ से भी ,वाक्य बाण चले तो लड़के भी कहाँ पीछे रहने वाले थे ,वो भी "हाज़िर जबाब " चुप कहाँ रहने वाले थे ? पलटकर जबाब दे रहे थे। कुछ समय की इसी तरह की चुहलबाज़ी के बीच नीलिमा के पापा उस ओर ही आते नजर आये और सभी लड़कियों की सिट्टी -पिट्टी ग़ुम हो गयी और सभी एकदम शांत हो गयीं किन्तु लड़कों ने समझा -''शायद ये लोग हमसे हार मानकर चुप हो गयीं हैं। ''तब तक तरुण भी मंच तक आ चुके थे और बोले -देरी किस बात की है ?फेरों का समय निकल जायेगा ,शीघ्र ही ये रस्म पूर्ण करो। पहले नीलिमा ने जयमाला धीरेन्द्र की तरफ की तभी धीरेन्द्र ने अपना सर ऊँचा कर लिया ,नीलिमा थोड़ी उचकी और उछलकर जयमाला डालने का प्रयास किया तभी वो जयमाला उसके सेहरे पर जा अटकी ,यह देखकर सभी हंसने लगे। नीलिमा के पापा भी मुस्कुराकर चले गए। तब धीरेन्द्र ने भी जयमाला डाली सभी लोग ताली बजाने लगे। दोनों के कुछ देर तक ,तरह -तरह से फोटो खींचे गए और फिर वहीं कुर्सियों पर बैठ गए। अब दोनों बच्चों को आशीर्वाद देने का कार्यक्रम चला।
पहले सभी लड़कियों ने फोटो खिंचवाए उसके पश्चात धीरेन्द्र के दोस्तों ने फोटो खिंचवाए ,सभी नीलिमा को भाभी करके सम्बोधित कर रहे थे और अत्यंत सम्मानपूर्वक बातें कर रहे थे। नीलिमा को ये सब बहुत अच्छा लगा ,क्योकि पापा के डर के सिवा ,उसने इससे ज्यादा कुछ महसूस नहीं किया था। ये ज़िंदगी उसे भा रही थी ,माता -पिता के आशीर्वाद के पश्चात ,जब चाचा ,चाची के पास फोटो खिंचवाने के लिए कहने आये। तब अपनी पत्नी का चेहरा देखकर बोले -क्या कुछ हुआ है ?
चाची ने उसी तरह गंभीरता से पूछा -आपने लड़का नही देखा !
देखा है ,अच्छा जंच रहा है ,क्यों क्या हुआ ?
आपने इसकी उम्र नहीं देखी ,हमारी लड़की से तो ,ये उम्र में काफी बड़ा लग रहा है ,इसके सामने तो ये बच्ची ही है।
बड़ा तो हो सकता है ,उन्होंने गहरी स्वांस छोड़ते हुए कहा ,हमारी लड़की ने बाहरवीं की है और ये इंजीनियर ,कई साल से कमा भी रहा है। हो सकता है ,सात या आठ बरस बड़ा हो उन्होंने अपना अनुमान लगाया और बोले -भइया ने जो भी किया है ,अच्छा ही सोचा होगा ,अब उनसे मैं कुछ कह भी तो नहीं सकता ,न ही ,उन्होंने मुझे कुछ बताया। बस इतना कहा -नीलिमा का रिश्ता तय हो गया।
उनकी बेटियां हैं ,अब इसमें हम क्या कर सकते हैं ?किन्तु भाईसाहब ने न ही बताया न ही लड़का दिखाया सब अपने आप ही सब तय कर लिया।
अब तुम क्यों खून जला रही हो ?ये तो देखो न ,नीलिमा तो खुश हैं न और क्या चाहिए ?उसे तो पसंद आ ही गया।
अभी इसकी उम्र ही कितनी है ? जो इसे सही गलत का पता होगा। उसे तो सब कुछ अभी तो नया और अच्छा ही लगेगा किन्तु समय के साथ जब समझदारी आएगी ,तब क्या होगा ?उसके भविष्य का सोचकर वो परेशान हो उठीं।
क्या निलिमा की चाची का अंदाजा सही था, भविष्य किसने देखा है ? किंतु अनुभवी नजरें कुछ चीजें पहले ही भाँप लेती हैं, उसके लिए उन्हें भविष्य में झांकने की आवश्यकता नहीं , आखिर धीरेंद्र के माता- पिता इस विवाह से क्यों प्रसंन् नहीं हैं, जानने के लिए पढ़ते रहिये - ऐसी भी ज़िंदगी