नीलिमा की शादी धीरेन्द्र से हो रही है ,उसकी चाची और उनकी बेटी डिम्पी मंच पर दुल्हन को लाती हैं। लड़के और लड़की वालों में नोक -झोंक चलती है और इसी मस्ती के बीच नीलिमा और धीरेन्द्र एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। सभी लोग प्रसन्न हैं किन्तु नीलिमा की चाची लड़के की उम्र को लेकर थोड़ा परेशान है। उनके अनुसार -लड़का उम्र में लड़की के हिसाब से , काफी बड़ा है ,जब यही बात उन्होंने ,नीलिमा के चाचा से कही तब उन्होंने भी अपनी बेबसी व्यक्त की और बोले -भइया ने न ही किसी से पूछा, न ही हमेँ बताया ,अब मैं इसमें क्या कर सकता हूँ ?जब उन्होंने लड़का ढूंढा है तो अवश्य ही बेहतर ढूंढा होगा, कहकर वो अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
नीलिमा के परिवार के सभी सदस्यों ,और रिश्तेदारों को तो ,बस लड़के की कोठी और उसका पैसा नजर आ रहा था। चंद्रिका को भी कोई फर्क नहीं पड़ा -कि बहन कहाँ और किसके साथ जा रही है ?कुछ देर तक तस्वीरें ली गयीं उसके पश्चात ,दोनों को खाना खाने के लिए एक साथ बिठाते हैं। नीलिमा के संग ही उसकी बहनें और उसके जीजाजी भी थे। सभी अपनी -अपनी पसंद की मिठाई उसे खिलाना चाह रही थीं किन्तु धीरेन्द्र भी बहुत स्याना था और बोला -अब दाना डालने से कुछ नहीं होगा ,अब तो जो ये कहेंगी ,अब तो वो ही मिठाई खाई जाएगी ,कहकर उसने नीलिमा की तरफ देखा। नीलिमा ने ,मुस्कुराते हुए ,नजरें नीची कर लीं। अब तो ये आ गयीं हैं ,हमारी ज़िंदगी में ,इनके अनुसार ही अब सब कुछ होगा। उसके वाक्य सुनकर ,कई पत्नियां तो चिढ गयीं ,और नीलिमा की क़िस्मत की सराहना करने लगीं।
चंद्रिका ने भी ,अपने पति को दिखलाया ,और कहा -देखा ,अभी तो फेरे भी नहीं हुए और ''बिन फेरे हम तेरे ''और एक ये हैं ,आज तक भी...... ऐसी रोमांटिक बातें कभी नहीं की शिकायती लहज़े में बात कही।
आज तो जीजाजी भी पूरे मूड़ में थे और बोले -ये जो दो-दो ,बच्चे साथ में लिए घूम रही हो ,ये क्या बिना रोमांस के ही हो गए ? कहकर हंसने लगे। हम रोमांस दिखाते नहीं ,करते हैं ,कहकर इस अंदाज़ से चंद्रिका को देखा वो भी शर्मा गई। खाना खाने के पश्चात ,जो लोग उसी शहर के रहने वाले थे ,वो तो चले गए। धीरे -धीरे भीड़ कम होने लगी। कुछ एक रिश्तेदार और धीरेन्द्र के दोस्त रह गए और लड़की वालों की तरफ से नीलिमा के घरवाले ही रह गए थे। गाने भी बंद हो चुके थे ,बाजेवाले और बग्गी भी जा चुकी थी। जिस स्थान पर कुछ देर पहले इतना शोर -शराबा था -कि पास खड़े व्यक्ति की आवाज़ ही सुनाई नहीं पड़ रही थी। अब वहां पूर्णतः शांति थी। हां समय -समय पर कभी -कभी किसी बड़े ड्रम या डिब्बे की सी आवाज आ जाती क्योकि हलवाई वाले अभी वहीं थे और बर्तनों की सफाई भी हो रही थी।
कुछ समय पश्चात, पंडित जी के मंत्रों के उच्चारण के स्वर गूंजने लगे ,कुछ लोग ऊंघ रहे थे। कुछ वहीं आस -पास जहाँ भी स्थान मिला ,लेट गए। कुछ मंडप के समीप आ गए। नीलिमा के मम्मी -पापा ,चाचा -चाची ,और उसकी बहन जीजा भी मंडप के समीप ही आकर बैठ गए। नीलिमा अभी थोड़ा आराम करके फेरों के समय के लिए ,लहंगा उतारकर साड़ी ,पहन रही थी। ये साड़ी और चुनरी आती तो ,मां के घर से है किन्तु मामा का तो पता ही नहीं ,न ही किसी ने उसे बुलाया। उनके घर की बेटी ,अपने घर की बहु तो बना ली किन्तु अब उस घर से ,किसी भी तरह का संबंध रखने में ,उनकी बेइज्जती हो जाती। बच्चों ने भी ,आज तक कभी मामा का घर या मामा को नहीं देखा। परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए चाची ही ,उसके लिए साड़ी और चुनरी लेकर आई जिसे पहनकर ,नीलिमा मंडप में आ बैठी।
अब तो बस पंडितजी के ही मन्त्र गूंज रहे थे। जिन लोगों की ,नीद के कारण, आँखें बोझिल हुई जा रही थीं , थोड़ी थकावट महसूस कर रहे थे ,उनके लिए चाय आ रही थी ताकि उनकी नींद खुल सके। ठीक से जगे हुए तो ,लड़का -लड़की और उनकी तस्वीरें लेने वाले थे ,जो हर दृश्य अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। सात फेरों के साथ ही ,सात वचन भी भरवाए गए और उसके पश्चात ही, नीलिमा के मम्मी -पापा ने अपनी बिटिया का कन्यादान कर दिया। कन्यादान करते समय पार्वती थोड़ा भावुक होकर रोने लगी ,तब उन्हें नीलिमा की चाची ने संभाला और बोलीं- बेटियां तो दूसरों के घर के लिए ही पाली जाती हैं ,ये तो....... ऐसी चीज़ है ,जिसे अपने पास रखा ही नहीं जा सकता। आप तो ये सोचकर प्रसन्न होइए -कि मेरी बेटी जहाँ भी जाये ख़ुश रहे ,दामाद को देखकर तो लगता है, हमारी बेटी को बहुत चाहेगा। उनकी बातें सुनकर पार्वती ,थोड़ा शांत हुई ,तब उसने अपनी बडी बेटी को खोजा। वो कहीं दिखलाई नही पड़ रही थी ,देखा तो वो होटल के ही कमरे में अपने बच्चों को सुला रही थी।
अब तक सुबह के पाँच बज चुके थे किन्तु बसोड़े की रस्म अभी बाक़ी थी। अब तक सभी जा चुके थे नीलिमा और धीरेन्द्र की आँखें भी ,नींद के कारण झपी जा रही थीं। अब तक जो लोग मज़े कर रहे थे ,अब वो ही लोग चाह रहे थे, कि शीघ्र ही सम्पूर्ण रस्में समाप्त हों और हम अपने घर चलें।
बसौड़ की रस्म के पश्चात ,लड़की को विदा किया गया। धीरेन्द्र हंसकर बोला -हमें क्या विदा करना ?हम तो यहीं रहेंगे ,अब हम आप लोगों को विदा करेंगे। समझने को तो ,उसकी बात अपनी जगह सही थी वे लोग ही तो ,उसके शहर आये हुए थे। नीलिमा के विदा होते समय उसकी मम्मी और बहन से रुका नहीं गया और बारी -बारी से सभी की आँखों में अश्रु थे। नीलिमा को भी जब अपने परिवार से बिछुड़ने का एहसास महसूस हुआ कि अब ये लोग मेरे साथ नहीं होंगे ,सोचकर ही वो जोर -ज़ोर से रोने लगी। अपना रोना भूलकर माँ और बहन उसे समझाने लगीं -अपनी ससुराल में प्यार और समझदारी से रहना। सभी का कहना मानना ,अब तो घर में ,फोन भी लग गया ,फोन भी कर सकती है ,कोई भी परेशानी हो ,फोन कर लेना , सुबकते हुए नीलिमा विदा हो गयी।
उसके जाने के पश्चात , सभी ने सोचा -आज थोड़ा यहीं आराम कर लेते हैं ,तब अपने शहर के लिए निकलेंगे। वो सभी रातभर के जगे थे और आराम करने की इच्छा से ,होटल के कमरों की तरफ जा रहे थे। तभी उन्हें सूचना मिली-' कि आप सभी को ये होटल अभी ख़ाली करना होगा। इस बात से सभी परेशान हो गए ,उन्होंने बहुत समझाया कि हम थोड़ा आराम करके यहाँ से निकल जायेंगे किन्तु उन्होंने मना कर दिया बिल्कुल किसी अजनबी की तरह व्यवहार कर रहे थे। जैसे वो लोग उन्हें जानते ही नहीं ,न ही देखा हो। चंद्रिका को बहुत क्रोध आया और बोली -अभी हम यहीं रुकेंगे ,
मैनेजर ने कहा -यदि आप लोग यहाँ रुकते हैं ,तब आपको पैसा देना होगा।
हाँ बताओ ! कितने पैसे देने हैं ?
जब होटल के मैनेजर ने उन्हें बिल बनाकर दिखाया तो सभी की सिट्टी -पिट्टी गुम हो गयी। किसी का भी बोल नहीं निकला। तब अपने दामाद का रौब दिखाया और धीरेन्द्र को फोन लगाने लगे किन्तु किसी ने भी उनका फोन नहीं उठाया। हैरान -परेशान से सभी ने गाड़ी की और घर के लिए ,निकल पड़े किन्तु होटल वालों के व्यवहार से सभी क्षुब्ध थे।
डिम्पी बोली -क्या लोग थे ? हम तीन दिन से उस होटल में रह रहे थे ,कितनी आवभगत कर रहे थे ? जैसे वो हमारे लिए पहले से ही तैयार थे और अब चलते समय ऐसे हो गए ,जैसे जानते ही नहीं। कुछ देर हम आराम कर लेते तो उनका क्या चला जाता ?
चंद्रिका बोली -धीरेन्द्र ने भी तो फोन नहीं उठाया ,विवाह से पहले जितना आदर हुआ ,विवाह के पश्चात ,उतनी ही बेइज्जती करा दी।
उसकी मम्मी बोली -क्या मालूम वे लोग भी तो रातभर के थके - हारे थे ,जाकर सो गए हों।
वे लोग अभी कैसे सो सकते हैं ?गृहप्रवेश भी होता है ,उसके पश्चात भी कुछ रस्में होती हैं।
प्रिय पाठकों !अपनी ससुराल जाकर नीलिमा का कैसे स्वागत किया गया ?उन लोगों का व्यवहार कैसा रहा ?धीरेन्द्र ने अपनी ससुरालवालों का फोन क्यों नहीं उठाया था ?जानने के लिए पढ़ते रहिये -''ऐसी भी ज़िंदगी ''अपना प्रोत्साहन और अपनी समीक्षाएं देते रहिये -धन्यवाद !