नीलिमा अपने माता -पिता को छोड़ ,अपने परिवार के लोगो को छोड़कर ,अपनी ससुराल आने के लिए गाड़ी में ,बैठती है ,उधर नीलिमा के माता- पिता और परिवारजन ,होटलवालों के व्यवहार से क्षुब्ध होकर घर वापस लौट जाते हैं। धीरेन्द्र गाड़ी में बैठा तो अपने घर जाने के लिए था किन्तु उसने अपनी गाड़ी का रुख दूसरी तरफ मोड़ दिया। नीलिमा तो कभी उस राह गयी ही नहीं ,उसे क्या मालूम वो किधर जा रही है ?वो तो गाड़ी में बैठी ,अपने स्वागत के सपने देख रही थी ,उसे इतना तो पता था -कि उसके एक जेठ हैं ,तो जेठानी भी होगी ,हालाँकि वो उससे मिली नहीं ,न ही देखा फिर भी उसने अपने सपने में अपनी सास और जेठानी को स्वागत करते देखा। मन ही मन बहुत ही खुश हो रही थी। कुछ अन्य रस्में भी होनी थी। तभी गाड़ी एक बड़ी सी इमारत के सामने आकर रुकी।
नीलिमा ने सोचा -शायद , घर आ गया। वो गाड़ी से उतरी ,उसने देखा ,यहाँ तो कुछ भी घर जैसा नहीं लग रहा किन्तु चुप रही ,जब तक किसी विषय की जानकारी न हो ,तब वह कैसे किसी भी कार्य में ,हस्तक्षेप कर सकती है ? उसने धीरेन्द्र की तरफ मुस्कुराते हुए प्रश्नात्मक नजरों से देखा ,धीरेन्द्र बोला -बस मेरे संग चलती रहो। घूम -फिरकर वो लोग उसी होटल के पीछे के रास्ते से अंदर जाते हैं और एक कमरे में , पहुंच जाते हैं। नीलिमा बोली -लड़की विदा होकर अपनी ससुराल आती है और ये तुम मुझे किस जगह ले आये ?
माई डियर ! हम लोग रातभर के थके हैं ,घर भी पहुंच गए ,तब वहां भी वो ही, रस्में निभानी होंगी ,आओ ! थोड़ी देर आराम करते हैं ,तब सम्पूर्ण उत्साह के साथ ,घर जायेंगे।
किसी अनजान जगह पर इस तरह अकेले कमरे में ,सोचकर ही नीलिमा का दिल धड़कने लगा। बोली -इस तरह ,अच्छा नहीं लगता ,हमारे बड़ों ने कुछ रस्में ,रीति -रिवाज़, कुछ सोचकर ही बनाये होंगे। घर पर भी तो वो लोग हमारी प्रतीक्षा कर रहे होंगे।
नहीं करेंगे ,क्योंकि मैंने अपने घर में पहले ही संदेश भिजवा दिया है कि थोड़ा आराम करके आयेंगे। नीलिमा नहाने गयी और सम्पूर्ण ताजगी के साथ बाहर आई ,उसके गोरे तन पर लाल गाउन बहुत ही फ़ब रहा था। उसे देखकर ,धीरेन्द्र बोला -''मार ही डालोगी' कहकर ,उसने नीलिमा को अपनी तरफ खींचा। नीलिमा ने उसका हाथ झटका और बोली -ज़्यादा रोमांस सूझ रहा है ,जाओ !जाकर नहा लो !
धीरेन्द्र भी अब नहाने के लिए स्नानागार में घुस गया ,तब तक दोपहर के खाने का समय हो चुका था ,तभी धीरेन्द्र ने खाना भी कमरे में ही मंगवा लिया। जो वेटर खाना लेकर आया ,उसे देखकर नीलिमा पहचान गयी और बोली -तुम तो उसी होटल में ही थे न... जिसमें अभी हम लोग ,कुछ दिन पहले ठहरे थे।
जी..... ये होटल भी वही है।
क्या..... ?हम उसी होटल में हैं ,और मुझे पता भी नहीं चल पाया।
तब तो ,मेरे घरवाले भी यहाँ होंगे ,नीलिमा ने उत्सुकता से पूछा।
जी.... नहीं वो लोग जा चुके हैं। इससे पहले कि वो उससे और कुछ बात बताता या नीलिमा उससे कुछ पूछती ,उससे पहले ही धीरेन्द्र ने वेटर को डपटते हुए कहा। अब यहाँ खड़े होकर बातें ही करते रहोगे या अपना काम भी करोगे।
नीलिमा के मन में अपने परिवार से पुनः मिलने का जो उत्साह था ,वो समाप्त हो गया। धीरेन्द्र से बोली -मेरे घरवाले भी न.... उन्होंने घर जाने में कुछ ज्यादा जल्दी नहीं की ,मुझे भेजते ही वापिस हो लिए ,कहकर उसकी आँखें नम हो गयीं।
धीरेन्द्र उसे बात -बात में छूने का प्रयत्न कर रहा था। उसकी आँखें नम देखकर बोला -हम तुम्हें इतना प्यार करेंगे ,उनकी याद भी नहीं आएगी ,कहकर उसने नीलिमा को अपने सीने से चिपटा लिया। नीलिमा उसके स्पर्श से झेंप गयी और उससे अलग हो गयी। धीरेन्द्र से अब रुका नहीं गया और बोला -तुम तो ऐसे बच रही हो ,जैसे हम कोई अजनबी हैं ,क्या तुम भूल गयीं ? हमारा रात ही विवाह हुआ है और अब हम पति -पत्नी हैं।
नीलिमा झेंपते हुए बोली -मुझे स्मरण है ,किन्तु अभी हमारी कुछ रस्में होनी भी बाक़ी हैं और अभी दिन है ,खाना खाकर ,आराम करके घर के लिए निकलते हैं।
यार..... तुम कैसी लड़की हो ?
लड़के -लड़की तो एकांत ढूंढते हैं और तुम घर जाने की जल्दी में हो ,बोरिंग.... कहकर उसने नीलिमा को फिर से पलंग पर खींच लिया।नीलिमा का चेहरा शर्म के कारण लाल हो गया और बोली -हमारी रस्में.....
इससे पहले की वो ,और कुछ कहती धीरेन्द्र ने उसके होठों पर अपनी अंगुली रखी और बोला -डियर !रस्में भी पूरी हो जाएंगी ,ये तो बनती ही इसीलिए हैं ,ताकि इन्हें तोडा जा सके किन्तु नीलिमा पर अपना अच्छा प्रभाव भी छोड़ना चाहता था ,तब बोला -जैसी तुम्हारी इच्छा..... कहकर सीधा लेट गया और आँखें बंद कर लीं। नीलिमा कुछ देर तक उसे इसी तरह देखती रही ,वो जानना चाहती थी -कहीं वो ,नाराज तो नहीं हो गया। कुछ ही समय में ,धीरेन्द्र गहरी नींद में सो गया ,नीलिमा भी वहीं लेट गयी।
जब नीलिमा की आँख खुली ,तब तक चार बज चुके थे ,वो उठी और तैयार होने लगी ,अपनी ससुराल में उसी दुल्हन के वेश में प्रवेश करना चाहती थी। कुछ समय पश्चात ही ,धीरेन्द्र की आंख भी खुल गयी और बोला -तुमने मुझे उठाया नहीं।
नीलिमा मुस्कुराकर बोली -तुम सोते हुए अच्छे लग रहे थे ,और मुझे तो तैयार होने में समय लगता ,तुम्हारा तैयार होना भी क्या है ?पेंट -शर्ट पहनोगे और हो गए तैयार...... मुझे तो ये सब संभालना होगा।
क्यों संभालना होगा ,क्यों ये सब पहना ?हल्की साड़ी पहन लेतीं ,या फिर कोई सूट !
क्या..... मैं उस घर की नई -नवेली बहु हूँ ,जो पहली बार उस घर में प्रवेश करेगी। इठलाकर नीलिमा बोली। उसने भी तो ,न जाने कितने सपने सजाये हैं। टेलीविजन पर ,धारावाहिकों में ,किस तरह बहु का गृह प्रवेश होता है ?सब देखा हुआ है ,इसी तरह उसने भी कुछ कल्पनायें कर ली थीं।
धीरेन्द्र और नीलिमा गाड़ी में बैठकर ,अपने गंतव्य की ओर बढ़ चले ,गाड़ी कुछ मोड़ ,कुछ उतार -चढ़ाव के पश्चात ,एक स्थान पर आकर रुक गयी। लो ,घर आ गया ,कहकर धीरेन्द्र गाड़ी से उतरा। उसकी बात सुनते ही नीलिमा का दिल जोरों से धड़कने लगा। और वो गाड़ी में ही बैठकर किसी के आने की प्रतीक्षा करने लगी।
क्या नीलिमा का स्वागत हुआ या नहीं ?जानने के लिए पढ़ते रहिये -''ऐसी भी ज़िंदगी ''अपना प्रोत्साहन देते रहिये ,धन्यवाद।