नीलिमा और धीरेन्द्र कुछ घंटे , धीरेन्द्र के दोस्त के, होटल में ही व्यतीत करते हैं और अब अपने घर के लिए निकलते हैं। धीरेन्द्र का घर आ जाने पर ,नीलिमा के मन में ख़ुशी के साथ ही उसके दिल की धड़कने भी बढ़ने लगीं। वो गाड़ी में इसी प्रतीक्षा में ,बैठी रही कि घर से बाहर निकलकर कोई उसे लिवाने के लिए आएगा। धीरेन्द्र बाहर आ चुका था और गाड़ी से सामान उतरवा रहा था। उसके पश्चात ,नीलिमा से बोला -तुम भी उतरो या फिर रात्रि गाड़ी में ही बिताने का इरादा है।
मन मसोसकर नीलिमा बाहर आई और बोली -क्या घर में कोई भी नहीं है ?
होंगी...... मम्मी ! और पापा भी !
और तुम्हारी भाभी.......
वो नहीं हैं।
क्या मतलब ? क्या तुम्हारे बड़े भाई का विवाह नहीं हुआ ?
हुआ था ,किन्तु दोनों का तलाक़ हो गया।
हैं...... तभी सोचूं ,वो विवाह में भी नहीं दिखाई दीं।
अब मेरे स्वागत के लिए कोई आएगा भी या नहीं।
दोनों मुख्य द्वार खोलकर ,अंदर आते हैं ,घर के अंदर बहुत सुंदर बगीचा था ,उसमें बहुत ही सुंदर मनमोहक फूल खिले थे। गुलाब के फूल अलग ही ,उस वातावरण को मनमोहक बना रहे थे। ,उस बगीचे में एक झूला भी था।कोठी के एक तरफ ,एक गाड़ी पहले से ही खड़ी थी। नीलिमा ने एक नजर उस पूरी कोठी पर डाली और मोहित हो गयी। नीलिमा धीरेन्द्र से बोली -घर तो तुम्हारा बहुत अच्छा है और इस बगीचे में ये झूला........ इसके तो क्या कहने ?और अपने हाथ की एक अँगुली और अंगूठे को जोड़कर एक घेरा बनाते हुए बोली -मस्त......
ये घर नहीं कोठी है ,तुमने तो इसकी बेइज़्जती कर दी ,धीरेन्द्र थोड़ा अहंकार में बोला।
हाँ -हाँ कोठी ही सही ,इंसान ही तो रहते हैं ,इसमें ,किन्तु मुझे अभी तक कोई नहीं दिखा। तब तक धीरेन्द्र घण्टी बजा चुका था। कुछ समय पश्चात एक महिला ने दरवाजा खोला ,और उन्हें देखकर अंदर की ओर लपकी ,उसकी आवाज आ रही थी ,वो कह रही थी -छोटे बाबा ,और बहूजी आये हैं।
जैसे ही वो अंदर जाने लगे ,तब वो एक थाली लेकर आती दिखी ,रुको !रुको ! पहले हम तुम लोगों की आरती तो उतार लें।
नीलिमा ने ,धीरेन्द्र की तरफ देखा ,जैसे उससे पूछ रही हो कि ये कौन है ?
धीरेन्द्र ने उसके भावों समझकर ,उससे कहा -ये कांता है ,घर की साफ -सफ़ाई और खाना बनाना इत्यादि कार्य यही करती हैं। नीलिमा मन ही मन सोच रही थी ,इतना बड़ा मकान...... और हमारे स्वागत के लिए एक घर की महिला भी नहीं। कामवाली ये कार्य कर रही है ,जेठ का भी ,तलाक़ हो चुका है। सास इतनी बूढी भी नहीं कि अपने बहु -बेटे का स्वागत न कर सके। उसके ज़ेहन में इस तरह के अनेक प्रश्न उठने लगे। कांता ने सभी कार्य किये और ये लोग घर के अंदर प्रवेश कर गए। घर की हर चीज क़ीमती और सुंदर थी। कांता से धीरेन्द्र ने पूछा - मम्मी कहाँ हैं ?
अपने कमरे में उसने जबाब दिया।
क्यों....... उनकी तबियत तो ठीक है ,नीलिमा ने पूछा।
तभी बाहर से आते एक व्यक्ति ने कहा -हाँ -हाँ उसे क्या हुआ है ?ठीक है।
नीलिमा ने ध्यान से देखा ,वे तो धीरेन्द्र के पापा थे ,नीलिमा उठी और उनके पाँव छुए ,''जीती रहो बेटी '' उन्होंने आशीर्वाद दिया।
नीलिमा खड़ी रही और धीरेन्द्र से बोली -चलो.... !
धीरेन्द्र बोला -कहाँ... ?
मम्मी जी के कमरे में !धीरेन्द्र ने अपने पापा की तरफ देखा ,उन्होंने भी इशारा किया ,ले जाओ !
नीलिमा अपनी सास के कमरे में गयी ,वहां भी एक सोफा था ,उसी पर उसकी सास बैठी थी। नीलिमा आगे बढ़ी और मुस्कुराते हुए बोली -मम्मी जी ! हम आये आपको पता नहीं चला ,हमने सोचा -हम ही मम्मी जी से मिल आते हैं। जीती रहो !कहकर वो उठीं और बोलीं -तुम लोगों ने चाय नाश्ता किया या नहीं।
बस हम लोग अभी -अभी आये हैं ,नीलिमा ने जबाब दिया। धीरेन्द्र देख रहा था -कि नीलिमा किस तरह ? उस वातावरण को ख़ुशनुमा बनाने का प्रयत्न कर रही है। मन ही मन प्रसन्न भी हो रहा था -कि धीरे -धीरे सब संभाल लेगी। वो जानता है ,उसकी मम्मी उससे नाराज है ,क्या मालूम ?बिगड़े संबंध सुधर जाएँ।
तब तक कांता ,चाय बना चुकी थी और बोली -मैडम आ जाइये ! चाय बन चुकी है।
धीरेंद्र की सास ने ,कहा -तुम लोग चलो ! मैं अभी आती हूँ।
वे लोग बाहर निकले ,और उनके पापा कमरे के अंदर गए। तुम अब यहाँ क्या कर रही हो ?नई -नई बहु घर में आई है ,उसकी भावनाओं का तो ख़्याल करो।
क्या ख़्याल करूं ? मैंने उससे कुछ कहा भी तो नहीं ,कह तो दिया -अभी आ रही हूँ।
हाँ वो ही तो मैं कहना चाह रहा था ,तुम्हारी नाराजगी अपनी तरफ ,तुम्हारे बेटे की गलती है तो अपना गुस्सा उसे ही दिखाना। उस बेचारी लड़की की क्या गलती ?
बड़ा तरस आ रहा है ,अभी की आई बहु पर ,कहकर वो बाहर निकल आईं।
नीलिमा जैसा ख़ुशनुमा वातावरण चाह रही थी ,ऐसा यहाँ कुछ भी नहीं था। इतना बड़ा घर.... नहीं कोठी है ,किन्तु कोई भी किसी के साथ नहीं। नौकरानी घर संभाल रही है ,पता नहीं ,इन लोगों ने ये घर किसलिए बनाया ? बस बाहर से शान ही शान और पैसा दीखता है बाक़ी ........ एक मेरा घर ,सब एक दूसरे से घुले -मिले से रहते हैं ,झगड़ते हैं किन्तु एक साथ खड़े हो जाते हैं। आज उसे अपने घर की क़ीमत समझ आ रही थी। बुराई हो या अच्छाई सबमें साथ खड़े दिखाई देते हैं। हमारा घर छोटा है किन्तु जज़्बातों और भावनाओं से परिपूर्ण है। यहाँ घर बड़ा है ,किन्तु लोगों के न मन में ख़ुशी है ,न ही चेहरों पर ,न जाने किसी अवसाद को लिए जी रहे हैं। दो भाई हैं ,एक का घर टूट चुका है दूसरे का अभी बसा है किन्तु उसकी भी प्रसन्नता इन लोगों के चेहरों पर दिखाई नहीं देती।
चाय पीते हुए ,उसके ससुर बोले - क्या सोच रही हो ? बहु !
कुछ नहीं अंकल !
अंकल...... अब मैं तुम्हारा अंकल नहीं ,मुझे भी अपने पापा जैसे समझो ,मुझे पापा कहकर ही बुलाना ,धीरेन्द्र का पापा ,तुम्हारा भी पापा हुआ ,समझी !
जी ,पापा जी !कहकर नीलिमा ने अपनी सास की तरफ देखा ,जो अभी भी चुपचाप बैठी चाय के घूँट भर रही थी।
आखिर इन लोगों की नाराज़गी किससे है ,और क्यों ? घर का माहौल इतना सा बोझिल क्यों हैं? आइये! जानने के लिए पढ़ते हैं आगे की कहानी - ऐसी भी ज़िंदगी