नीलिमा ,धीरेन्द्र के संग अपनी ससुराल आती है ,किन्तु जैसा उसने सोचा था ,वैसा उसको कुछ भी देखने को नहीं मिला। वहाँ पता नहीं ,कैसा ?अज़ीब सूनापन नजर आ रहा था। देखकर कोई कह नहीं सकता, इस घर के लड़के का अभी- अभी विवाह हुआ है या इस घर में नई बहु आई है, कोई रिश्तेदार भी नजर नही आ रहा , यह सब देखकर निलिमा को बड़ा अजीब लग रहा है । वो तो अपने घर की तरह ही, ऐसा भरा- पूरा सोच रही थी किंतु यहाँ तो इंसान ही नजर नही आ रहे, जो हैं, उनका व्यवहार ही विचित्र है।वो घर के वातावरण को अपने घर की तरह ही बनाना चाह रही थी किन्तु कुछ भी ज्यादा नहीं कर सकती थी ,अभी तो इस घर में आई है। इस घर के लोगों का स्वभाव ,व्यवहार कुछ भी तो नहीं जानती। बस ससुर हैं ,जो उससे बातचीत कर रहे हैं। चाय पीकर धीरेन्द्र भी अंदर चला गया। सास न ही कुछ बोली ,न ही कुछ समझाया। अब तो नीलिमा की हिम्मत भी नहीं पड़ रही थी कि वो अपनी सास से कुछ कहे। चाय- नाश्ता करके वो भी उस स्थान से अलग जाना चाहती थी। इस तरह बैठे -बैठे तो उसे घुटन महसूस होने लगी।
न ही शादी, विवाह की कोई रौनक ,न ही इन लोगों के चेहरों पर कोई ख़ुशी ! क्या धीरेन्द्र की मम्मी हमारे विवाह से प्रसन्न नहीं है ,इनकी उदासी का या बेरुखी का ,क्या कारण हो सकता है ?ये तो उससे पूछना ही होगा। यही सब सोचते हुए ,वो धीरेन्द्र को ढूंढने के उद्देश्य से ,पहले तो चारों तरफ से ,उस घर को देखती है किन्तु कुछ भी न समझ पाने के कारण ,वो रसोईघर में ,कांता के पास जाती है और उससे पूछती है -वो धीरेन्द्र का कमरा.....
जी अभी बताती हूँ ,कहकर उसने अपना काम छोड़ा और उसे अपने संग लेकर चल दी। धीरेन्द्र के कमरे के समीप जाकर रुक गयी और नीलिमा से बोली - भाभी ! ये आपका कमरा है ,और चली गयी।
नीलिमा ने एक गहरी श्वांस ली और अंदर गयी। कमरा एकदम चकाचक साफ -सुथरा था। सभी चीजें साफ -सुथरी और कीमती थीं। नीलिमा ने अपने को आईने में देखा और नीचे जो भी वातावरण था ,अब वो उसे भूल चुकी थी। धीरेन्द्र उसे कमरे में कहीं नहीं दिखा। उसने सोचा,इस घर में कोई बंधन तो है नहीं , क्यों न अपने कपड़े ही बदल लूँ। उसने अपने को आईने में निहारा और अपनी साड़ी निकाली। हाँ ,ये बहुत ही सुंदर है ,दीदी ने दिलवाई है, मुझे भी इसका रंग बहुत पसंद है। पूरे हजार रूपये की है ,देखने में भी अच्छी लग रही है , सम्पूर्ण विश्वास के साथ नीलिमा ने अपनी साड़ी पहनी और अपने बाल ठीक किये। उसके पास कोई ननद या साथ की सहेली भी तो नहीं जिससे अपनी ख़ुशी और अपनी जिज्ञासाएँ ,अपनी बातें बाँट सकूँ।
ऐसा कोई भी नहीं ,जो उसे बता सके ,कि वो कितनी अच्छी लग रही है ?या फिर सुझाव दे कि मुझे इस समय पर क्या पहनना चाहिए ? धीरेन्द्र भी न जाने ,कहाँ चला गया ?
उधर धीरेन्द्र के पापा अपनी पत्नी को समझा रहे थे ,जो हो गया सो हो गया। देखो ! बच्ची सीधी और अच्छी लग रही है। वो तुम्हारी रिश्तेदार तो मुझे पहले से ही बहुत चालाक लग रही थी और उसकी लड़की भी ,उसी की तरह ही तेज है।
तुम जानते नहीं ,उनका रहन -सहन ,उनका एक स्तर है और इस लड़की को देखो ! कहीं से भी ,ऊँचे ख़ानदान या परिवार की लग रही है। मुझे तो कांता की ही रिश्तेदार नजर आ रही है।
ऐसा मत बोलो ! कहीं उसने सुन लिया तो उसके मन पर, इस बात का क्या प्रभाव होगा ?
सुनती है ,तो सुन लेने दो ! मैं क्या किसी से डरती हूँ ?मेरी सहेली तो बहुत बड़ी गाड़ी भी दे रही थी और भी दहेज़ बहुत सारा देती ,और इसके बाप को देखा ,कैसे हमारे घर को घूर रहा था ? जैसे इससे पहले ऐसा घर कभी न देखा हो ,और लालची भी लग रहा था । ख़ैर !छोडो मुझे क्या ? जब इसने अपनी ज़िंदगी नर्क बनाने की सोच ही ली है ,तब मैं क्या कर सकती हूँ ?
तुम इतना तो कर ही सकती हो ,किसी ने कुछ भी किया हो किन्तु उस बेचारी बच्ची के साथ अच्छा व्यवहार तो कर ही सकती हो।
मैंने तो कुछ कहा ही नहीं ,ये क्या बात कर रहें हैं ?आप !
मैं क्या कहना चाह रहा हूँ ? कुछ समझो !अब वो इस घर की बहु है ,उससे किसी भी तरह का गलत व्यवहार ठीक नहीं।
ठीक है ,कल अपनी सहेलियों और पड़ोसनों को बुलाकर इसकी कुछ रस्में और मुँह दिखाई की रस्में कर देंगे। अब तो खुश......
मैडम !खाना तैयार है ,खाना मेज़ पर लगा दूँ ,कांता ने पूछा।
हाँ ,लगा दो !और उस लड़की..... पति की तरफ देखते हुए बोली -बहु को भी बुला लाओ !
जी..... कहकर वो नीलिमा के कमरे की तरफ बढ़ चली ,उसके कमरे के बाहर ही खड़े होकर बोली -भाभी ,खाना खाने आ जाइये ,नीचे मैडम बुला रही हैं।
ठीक है ,आती हूँ ,नीलिमा ने भी अंदर से ही कहा ,तभी उसने वापस जाती कांता को रोका और बाहर आकर बोली -देखो !मुझे साड़ी बांधनी तो नहीं आती किन्तु जैसे भी बाँधी है ,जरा बताओ !ठीक बंधी है कि नहीं।
कांता ने नजरभर कर नीलिमा को देखा और बोली -साड़ी तो प्यारी है।
हाँ ,वो तो मुझे मालूम है ,किन्तु बंधी तो ठीक है ,या नहीं।
हाँ ,ठीक तो है ,बस थोड़ी ऊँची बंधी है और पल्लू भी थोड़ा ऊँचा -नीचा है।
आओ !और इसे ठीक करा दो !
कांता जानती थी - मैडम ,धीरेन्द्र भाई के विवाह से नाराज़ हैं ,उनसे नाराज होने का अर्थ है ,उनकी पत्नी से भी नाराज हैं ,यदि मैं इनकी साड़ी ठीक करने लग गयी तो खाना ठंडा हो जायेगा और मुझे भी उनके कोप का भाजन बनना होगा ,यही सब सोचकर बोली -अब तो ,आप ऐसे ही आ जाइये ,वरना मैडम नाराज़ होंगी ,खाना भी ठंडा हो जायेगा। कल आपको ठीक से साड़ी बांधना सिखा दूंगी ,कहकर तीव्रता से चली गयी।
उसके जाने के पश्चात ,नीलिमा ने आईने में देखकर स्वयं ही साड़ी ठीक करने का प्रयत्न किया और बाहर आ गयी। उसे साड़ी पहनकर चलने में उलझन हो रही थी फिर भी वो खाने की मेज तक पहुंची और अपने सास -ससुर के पांव छुए।
पल्ल्वी ने पूछा -अब ये किसलिए ?तुम तो पहले ही , पैर छू चुकी हो।
जी..... हमारे यहाँ जब कोई नया वस्त्र पहनते हैं तो बड़ों का आशीष लेते हैं।
ठीक है ,ठीक है इन चोंचलों की यहाँ कोई आवश्यकता नहीं ,पल्ल्वी ने बेरुखी से कहा।
पल्लवी आखिर अपने बेटे से क्यो नाराज है ? आगे क्या होने वाला है ? निलिमा को छोड़कर आखिर धीरेंद्र कहाँ गया? जानना है, तो पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी