धीरेन्द्र ,नीलिमा को लेकर अपने घर आता है ,किन्तु उसकी मम्मी शायद उससे नाराज है ,ऐसा नीलिमा को उनके व्यवहार से लगता है। उसे लगता ही नहीं ,ये ही सच्चाई है। वो नही चाहतीं थीं कि उनका लाड़ला धीरेन्द्र किसी भी ऐसी -वैसी लड़की से विवाह करे ,वो तो अपनी पसंद की हुई अपनी रिश्तेदार की लड़की को अपने घर की बहु बनाना चाहती थीं ,किन्तु उनके सभी अरमानों पर उसी लाड़ले ने पानी फेर दिया। धीरेन्द्र के पापा यानि कि मोहनलाल सक्सैना जी, अपनी पत्नी पल्ल्वी को ,उनके रूखे व्यवहार के लिए ,उन्हें समझाते हैं और वो भी उनसे वायदा करती हैं कि घर की नई बहु से कभी भी रुखा व्यवहार नहीं करेगी।
नीलिमा खाना खाने के लिए ,साड़ी को संभालते हुए आती है ,उसकी हालत देखकर पल्ल्वी को हंसी आ जाती है ,उसके पैर छूने पर उससे कहती है -ये चोंचले करने की आवश्यकता नहीं।
उसके ससुर ,उसे बड़ा सा आशीर्वाद देते हैं ,और उससे पूछते हैं -बेटे !धीरेन्द्र नहीं आया।
जी..... वो तो वहाँ थे ही नहीं ,मैंने सोचा -शायद नीचे आ गए हों।
उन्होंने अपनी पत्नी की तरफ देखा ,उसने मुँह फेर लिया।तब तक कांता ने खाना लगा दिया , दोनों पति -पत्नी खाना खाने लगे। बेटे तुम भी खाना आरम्भ करो !
जी.... अभी तक वो नहीं आये।
आ जायेगा ,तुम खाना खाओ ! मोहन जी ने उस पर दबाब बनाते हुए कहा।
जी...... अभी भूख भी नहीं ,उनके आने पर ही खाऊँगी कहकर नीलिमा बाहर की तरफ देखने लगी ,जैसे उसके देखने से धीरेन्द्र तुरंत आ जायेगा।
मोहनलाल जी ने अपनी पत्नी की तरफ देखा और खाना खाने लगे। पल्ल्वी ने कहा -उसका पता नहीं ,न जाने ,कितना समय लग जाये ?जब वो अपने दोस्तों के साथ होता है ,तो सब कुछ भूल जाता है ,कहकर वो लोग खाने की मेज से उठकर अपने कमरे की तरफ चल दिए। नीलिमा अकेली बैठी ,धीरेन्द्र की प्रतीक्षा करने लगी।
मोहनलाल जी अपने कमरे में जाकर ,अपनी पत्नी से बोले -लड़की अच्छी और संस्कारी है ,देखा नहीं कैसे पैर छू रही थी ? और अब देखो !कैसे तुम्हारे उस बिगड़े हुए की प्रतीक्षा कर रही है। तुमने भी कभी मेरे लिए प्रतीक्षा की है।
ये 'मध्यवर्गीय परिवार ''की लड़कियाँ ,इसी तरह के चोंचले करके लड़कों को अपने वश में करती हैं।
जी नहीं ,वो किसी लड़के की नहीं अपने पति की प्रतीक्षा कर रही है ,यही उसका कर्म भी है और धर्म भी।
ऐसा उस लड़की ने क्या कर दिया ? मेरा पति ही, उसकी भाषा में बोल रहा है।
उसने कुछ नहीं किया ,उसकी सादगी ,उसके संस्कार ही ,मुझे ऐसा सोचने पर मजबूर कर रहे हैं ,जो तुम्हारी उस रिश्तेदार की बेटी में , देखने को नहीं मिलते ,कहकर वो बाहर निकलते हैं और अपने बेटे को फोन करते हैं।
हैलो.... !
हैलो के बच्चे ,तुझे पता है ,कल तेरा विवाह हुआ था और बहु ने अभी तक खाना नहीं खाया ,वो तेरी प्रतीक्षा कर रही है। अब एक और ज़िंदगी तेरे साथ जुड़ गयी है।
क्या जुड़ गयी ? बस ज़बरदस्ती जोड़ दी गयी धीरेन्द्र बोला।
उसकी बात सुनकर ,उसके पापा कुछ देर तक शांत रहे और बोले -जो हो गया ,सो हो गया इसे न ही तुम दुबारा ला सकते हो किन्तु जो हो रहा है ,उससे ,अपनी और अपने से जुडी उस बच्ची की ज़िंदगी संवार सकते हो। जो भी तुम्हारी ज़िंदगी में हुआ या घटा ,इसमें उस बच्ची का क्या दोष ? मुझे तो लगता है -वो तो उम्र में भी तुमसे बहुत छोटी है , उसकी मासूमियत देखकर मुझे ,ऐसा लगता है।
पापा जी आप कुछ भी मत कहना ,मैं आ रहा हूँ ,कहकर वो फोन काट देता है और अपने दोस्त प्रतीक से कहता है -अच्छा भई ,अब चलता हूँ।
अरे ! इतनी जल्दी कहाँ चल दिए ?अभी तो महफिल जमी है ,एक पैग में ही बस हो गया ,तपन बोला।
यार..... आज तो जाना ही होगा ,पापा जी का फोन आया है ,उसने भी अभी तक खाना नहीं खाया ,मेरी प्रतीक्षा कर रही है।
जाने दो भई !आज हमारा पीना -पिलाना यहीं खत्म करते हैं ,आज तो अपने यार की सुहागरात भी तो है सुरेंद्र ने भी अपनी बातों का तड़का लगाया।
नहीं ,मैं ही तो जा रहा हूँ , तुम लोग अपनी महफ़िल सजाओ ,एक दोस्त ही तो जा रहा है ,बाकि के दो अभी हैं।
यार..... तू ये कैसी बीवी ले आया ?ये तो टिपिकल बीवी की तरह व्यवहार कर रही है ,कल को पूछेगी ,कल कहाँ गए थे ? कब आओगे ?कहाँ जा रहे हो ?कहकर तीनों हंसने लगे किन्तु तब तक धीरेन्द्र बाहर निकल चु का था।
मन ही मन वो प्रसन्न भी हो रहा था ,कि आज खाने पर कोई उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। आज तक तो ,ठंडा खाना ही खाया ,वो भी अकेले।
उधर उसके दोस्त अपनी ही मस्ती में थे ,वो पैग पर पैग लगाए जा रहे थे। चलो भई !अपने यार का भी घर बस ही गया। इतनी उम्र हो गयी ,जैसी उसकी हरकतें हैं उस हिसाब से तो कोई भी उससे विवाह न करता,इसी कारण इसकी ''गर्ल फ्रेंड ''छोड़कर चली गयी और उसकी माँ का अभिमान...... ,वो तो अपने को कहीं की महारानी मानती है। बेटा पैंतीस वर्ष का हो गया किन्तु उसका अभिमान कम नहीं हुआ।
नीलिमा कुर्सी पर बैठे ही ऊंघ रही थी ,बाहर किसी की आवाज सुनकर ,नीलिमा बाहर की तरफ झाँकी। उसने धीरेन्द्र को आते देखा तो अंदर आई और कांता को उठाकर बोली -वे आ गए ,चलो खाना लगा दो। कांता अब तक तो काम करके जा चुकी होती किन्तु नीलिमा ने उसे रोक लिया। नई बहु के साथ के लिए ,वो भी रुक गयी। जब तक धीरेन्द्र घर के अंदर आया तब तक गर्मागर्म खाना मेज पर लग गया ,उसे देखकर ,नीलिमा मुस्कुराई। उसकी मुस्कुराहट देखकर धीरेन्द्र स्वतः ही उसकी ओर खिंचा आया और बोला -तुमने अभी तक खाना नहीं खाया।
कैसे खाती ?जिसके साथ नए जीवन की शुरूआत करने जा रही हूँ ,वो तो साथ में ही नहीं।
ओहो !इतनी बड़ी -बड़ी बातें ,ये बड़ी बातें नहीं ,यही सब मैंने अपने घर में देखा और सीखा। तब दोनों मिलकर खाना खाते हैं और अपने कमरे में चले जाते हैं।
आज अपने बेटे को प्रसन्न देखकर ,मोहनलाल जी की आँखों में ,आंसू आ जाते हैं ,उन्हें लगता है -अब मेरा बिखरा घर ,शायद सम्भल जाये और चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो जाते हैं।
कमरे में पहुंचकर धीरेन्द्र नीलिमा की तरफ प्यार भरी नजरों से देखता है ,नीलिमा भी शर्मा जाती है। दोनों अपने कपड़े बदलते हैं ,नीलिमा ने वही लाल गाउन फिर से पहनी। धीरेन्द्र अपने कपड़े बदल ही रहा था ,तभी नीलिमा को देखकर रुक गया और बोला -कपड़े तो फिर भी पहने जा सकते हैं ,कहकर वो नीलिमा की तरफ झपटा ,इससे पहले की नीलिमा कुछ समझ पाती ,वो उसे लेकर पलंग पर गिर पड़ा और अपने आगोश में समेट लिया।