धीरेन्द्र का , रात्रि के खाने पर ,नीलिमा प्रतीक्षा करती है ,उसके माता -पिता नीलिमा से कहते भी हैं -यदि वो दोस्तों के संग गया है ,तो शीघ्र नहीं आने वाला है किन्तु नीलिमा उसकी प्रतीक्षा करती है। नीलिमा के ससुर मोहनलाल जी ,बहु के इस व्यवहार से प्रसन्न हैं। वो अपने बेटे धीरेन्द्र को ,फोन करते हैं और उसे समझाते हुए बतलाते भी हैं कि बहु तुम्हारी प्रतीक्षा में है। तब धीरेन्द्र भी ,अपने दोस्तों का साथ छोड़कर ,घर के लिए प्रस्थान करता है। धीरेन्द्र भी नीलिमा के इस व्यवहार से प्रसन्न होता है ,दोनों साथ ही खाना खाते हैं। शयनकक्ष में भी दोनों संग -संग ही जाते हैं। नीलिमा को लाल गाउन में देखकर ,धीरेन्द्र नीलिमा को अपने समीप पलंग पर खींच लेता है। अब तो नीलिमा भी उसका विरोध नहीं करती है ,वो भी शर्माकर उसके सीने से लग जाती है। देर तक दोनों इसी तरह ,एक -दूसरे को महसूस करते रहे।
तब अचानक से ,धीरेन्द्र नीलिमा से पूछता है -तुम कहाँ -कहाँ घूमी हो ?
नीलिमा बोली -अपने घर से कॉलिज और कॉलिज से घर या फिर मौहल्ले -पड़ोस में.......
क्या......??तुम आजतक कहीं बाहर घूमने गयीं ही ,नहीं। तब नीलिमा ने सोचा -धीरेन्द्र उसे किसी भी तरह से नीचा न महसूस करा दे ,बोली -पढ़ने में रहते थे ,पापा का भी वहीं ऑफिस था। घूमने भी किसके पास जाते ?उस समय यो घूमने का अर्थ -किसी रिश्तेदारी में जाना ही होता था। तब नीलिमा जाती भी कहाँ ?मामा के घर तो बसरों से माँ ही नहीं गयी ,तब बच्चे कैसे जा पाते ? बुआ से पापा की बनती नहीं थी। यही सब सोचकर ,वो शांत रही। तभी धीरेन्द्र बोला -कश्मीर ,शिमला ,या फिर विदेश !!!
ये सब तो नीलिमा सोच भी नहीं सकती थी ,ऐसे स्थलों पर तो विवाह के पश्चात ,दीदी को जीजाजी ले गए थे। तब बोली -ऐसी जगहों पर तो ,शादी के बाद ही तो जाते हैं ,हनीमून के लिए......
उसकी बात सुनकर धीरेन्द्र हँसा और उसकी सादगी पर मर मिटा ,उसने हँसकर नीलिमा को अपनी बाजुओं में भींच लिया। नीलिमा थोड़ा कसमसाई और उसने भी अपने को ढीला छोड़ दिया।
जब धीरेन्द्र ने उसके नजदीक अपने होंठ लाने चाहे ,नीलिमा को अब उसके मुँह से गंध आई और बोली - क्या तुम पीते हो ?
नहीं तो.... आज हमारी सुहागरात हैं न.... दोस्तों ने ज़िद करके एक पैग पिला दिया। कहते हुए उसने नीलिमा का गाउन उसके तन से जुदा कर दिया और उसे घुर-घुरकर देखने लगा। नीलिमा बुरी तरह शर्मा कर बैठ गयी ,जब उसे कुछ सुझा नहीं ,तब उसने एकदम से लाइट बंद कर दी। पहले तो तनिक धीरेन्द्र झुंझलाया किन्तु नीलिमा की सोचकर चुप रहा और वो उसके बदन को अँधेरे में ही छूकर महसूस करने लगा। नीलिमा भी उसके स्पर्श से मदहोश सी होने लगी थी। दूर....... कहीं ,उस एकांत में किसी के रेडियो के गाने की आवाज आ रही थी -''दो सितारों का जमीं पर है ,मिलन आज की रात ,आज की रात। ''
आज नीलिमा एक अलग ही दुनिया का अनुभव कर रही थी ,जैसे किसी दूसरे ही लोक में विचरण कर रही थी। सुबह नीलिमा की जब आँख खुली तो उसने अपने को ,धीरेन्द्र की बांहों में ,पाया। अपनी उस अवस्था को दिन के उजाले में देखकर ,स्वयं पर ही शर्मा गयी और फुर्ती से उठी और अपना गाउन पहनकर स्नानागार में चली गयी। वहाँ से नहा धोकर वो बाहर आई ,धीरेन्द्र अभी भी सो रहा था। उसे देखकर मुस्कुराई और नीचे चल दी। वहाँ उसके ससुर ही उसे दिखे ,उसने उनके पैर छुए और पूछा -अभी मम्मी जी नहीं उठीं।
वो उठेगी ,जब मैं उसे चाय बनाकर दूंगा ,बिना चाय के वो नहीं उठती है मोहनलाल जी ने उसकी सास के विषय में उसे जानकारी दी।
क्यों ,कांता नहीं है ?
नहीं बेटा ,वो तो नौ बजे आएगी और नाश्ता बनाएगी ,घर की सफाई करेगी।
कोई बात नहीं ,आज चाय! मैं बना देती हूँ ,आज ही क्या ?अब से आपके और मम्मी जी के लिए ,मैं ही चाय बना दिया करूंगी ,मुस्कुराकर बोली -आज से आपकी छुट्टी !
उसकी मुस्कान और उसकी बातें सुनकर ,वे भाव -विभोर हो उठे और बोले -जुग -जुग जियो बेटा !!!
नीलिमा ने चाय बनाई और मोहनलाल जी से पूछा -पापा जी ,ये क्या लेते हैं ?
अभी तो चाय ही पियेगा ,उसके बाद जूस पीता है तब तक तो कांता भी आ जाएगी ,उसी से पूछ लेना।
आज मोहनलालजी ,मुस्कुराते हुए अपनी पत्नी के लिए चाय लेकर जाते हैं।
उन्हें देखकर पल्ल्वी पूछती है -क्यों ,क्या हुआ आज बड़ा मुस्कुरा रहे हो ?
अब क्या मैं मुस्कुरा भी नहीं सकता ? मेरे मुस्कुराने पर भी बंदिश लगाओगी वे तुनकते हुए बोले।
पल्ल्वी ने चाय का एक घूंट ही भरा था और बोली -ये चाय क्या तुमने बनाई है ?
मोहनलाल जी घबराते से बोले -क्यों ,क्या हुआ ?चाय अच्छी नहीं बनी।
नहीं ,चाय तो अच्छी है ,किन्तु थोड़ा स्वाद में फ़र्क है।
मोहनलाल जी ने सोचा ,अब तो सच्चाई बताने में कोई बुराई भी नहीं है और बोले -आज चाय बहु ने बनाई है।
ह्म्मम्म्म्म ,तभी सोचूं, आपके चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर ही ,मुझे एहसास हो गया था कि कुछ तो गड़बड़ है। मन ही मन सोचने लगी ,इसे बड़ा चाव चढ़ा है ,घर के कामों का ,इसका ये शौक भी पूर्ण कर दूंगी। प्रत्यक्ष बोली -बहु को अभी क्यों रसोईघर में घुसने दिया ,अभी तो उसकी ''मुँह दिखाई '' रसोई की रस्म भी पूर्ण नहीं हुई। उससे कहो -अभी ,ये कार्य न करे ,बस धीरेन्द्र पर ध्यान दे।
पल्ल्वी की बातों से ,मोहनलाल जी समझ नहीं पाए कि वो प्रसन्न है या नहीं।
नीलिमा फ़िल्मी तरीक़े से ,धीरेन्द्र के लिए चाय लेकर गयी और बोली -उठिये ! चाय लीजिये।
एक -दो आवाज में तो वो उठा नहीं ,शायद वो गहरी नींद में था और झल्लाकर बोला -अभी मुझे ,और सोना है।
नीलिमा बोली -मैं भी तुम्हारे संग ही सोइ थी और तुमसे एक घंटा पहले उठ गयी। नीलिमा की आवाज सुनकर अब वो जैसे गहरी नींद से जागा और फुर्ती के साथ उठ बैठा। रात्रि की सभी बातें उसे स्मरण हो आईं ,तब तक नीलिमा भी पलंग के पास ही रखे स्टूल पर चाय रख चुकी थी। नीलिमा आज उसे और भी प्यारी लग रही थी ,झट से उसे अपने करीब खींच लिया। नीलिमा कहती रह गयी -चाय पी लीजिये ,ठंडी हो जाएगी।
हो जाने दो ! कहकर उसके चेहरे पर अपने प्यार की मुहर लगाने लगा और बोला -कल की तरह ,एक पारी फिर से हो जाये।
नीलिमा उसके इरादों को भांपकर ,बोली -चलो ,उठो !मैं नहा चुकी हूँ और तुम अभी भी....... कहकर उसने मुँह बना दिया।
अच्छा जी !अब हमारा साथ अच्छा नहीं लग रहा ,रात को तो कैसे लिपट गयी थी ? मेरे चेहरे पर ये देखो ! किसने ये निशान लगा दिए ?और ये नाखूनों के निशान उफ..... अभी मम्मी को दिखाकर आता हूँ और मम्मी से पूछता हूँ ,पता नहीं ,रात्रि में किसी चुड़ैल ने मेरे शरीर पर ये निशान बना दिए।
उसकी बातें सुनते हुए नीलिमा शर्मा रही थी ,किन्तु जब धीरेन्द्र ने'' किसी चुड़ैल'' शब्द कहे तो उसे मारने दौड़ी ,और बोली - मैं चुड़ैल हूँ।
मैंने तो तुम्हारे विषय में कुछ कहा ही नहीं ,मैं तो उसकी बात कर रहा हूँ , जिसने ये निशान बनाये जो मुझसे रात्रि को लिपट रही थी ,मुझे प्रेम कर रही थी उसने ठंडी और गहरी श्वांस लेते हुए कहा -उफ़.... क्या नशा था ?तुम कौन हो ?तुम वो रात्रि वाली लड़की नहीं ,तुम तो मुझे देखकर मुँह बना रही हो और वो...... हाय कहकर धीरेन्द्र ने तकिये को गले लगा लिया।
नीलिमा को ,धीरेन्द्र का इस तरह ,तकिये से लिपटना अच्छा नहीं लगा और बोली -जब मैं यहाँ हूँ ,तब इस तकिये का क्या काम ?
अब यही तो मेरा साथी है ,वो तो परी...... रात वाली परी कहीं चली गयी।
मैं यहीं हूँ ,कहकर नीलिमा उसके क़रीब आ खड़ी हुई ,धीरेन्द्र जो इतनी देरी से भूमिका बना रहा था ,नीलिमा के करीब आते ही उसे फिर से अपने क़रीब खींच लिया और अब तो वो सीधे उसके ऊपर जाकर गिरी। तब तक धीरेन्द्र के हाथों ने तेजी से कार्य किया और नीलिमा की साड़ी उसके तन से अलग कर दी।नीलिमा कहती ही रह गयी ,मम्मी -पापा जाग गए हैं ,धीरेन्द्र ने उसकी एक भी नहीं सुनी और उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया ,अब दोनों साथ ही नहाये और तैयार होकर बाहर निकले ,अब तक कांता भी आ चुकी थी और नाश्ते की तैयारी में जुटी थी। मोहनलाल जी बेटे की चेहरे की चमक और बहु की शर्म से झुकी जा रहीं पलकों को देखकर ,प्रसन्न थे और मन ही मन सोच रहे थे। इस घर में इतने दिनों से जो ग्रहण लगा था ,शायद छंट जाये।
बड़ी बहु जब आई थी ,तब भी कुछ दिनों तक तो घर में खुशहाली रही किन्तु बड़ा तो अपनी माँ का ही कहा मानता था।बहु अच्छे बड़े घर की ली थी ,दहेज भी बहुत लाई थी किन्तु सास झुकने के लिए तैयार नहीं तो बहु भी अपने को किसी से कम नहीं मानती थी। दोनों की ही ,बात -बात में नाक कट जाती थी बेइज़्जती हो जाती थी। बड़ा बेटा अभी इतना नहीं कमाता था कि अपनी पत्नी की जायज़ और नाज़ायज मांग पूर्ण कर सके।बहु थी कि खर्चे ही बताती रहती थी ,किट्टी में जाना ,होटल में पार्टियों में जाना ,नए -नए गहने खरीदना ,बस यही उसका जीवन था। कम तो मेरी श्रीमती जी भी नहीं थीं ,तब दोनों में तकरार बढ़ने लगी।
क्या निलिमा इस घर में और घर के लोगों के दिलों में अपनी जगह बना पायेगी ? क्या ये उदास घर फिर से खुशियों से भर पायेगा क्या धीरेंद्र की मम्मी कभी निलिमा से खुश होगी या नही ?जानना है तो पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी