नीलिमा के मधुर व्यवहार के कारण ,उसके ससुर प्रसन्न होते हैं किन्तु उसकी सास पल्ल्वी को बात कुछ जंचती नहीं ,उसका स्वभाव ही ऐसा है। कुछ घमंडी भी है ,नीलिमा के व्यवहार के कारण वो सोचते हैं -शायद इस घर में फिर से ख़ुशहाली आ जाये। वो सोचते हैं -बड़ी वाली बहु भी ,उन्हीं की पत्नी की तरह ही घमंडी ,अभिमानी थी। पैसा तो जैसे ,उसके हाथ में टिकता ही नहीं था। बेटे की इतनी कमाई नहीं थी ,मेरे द्वारा बनाई गयी कोठी और मेरे पैसे को देखकर ,उसके घरवालों ने भी बहुत सारे दहेज़ के साथ ,अपनी बिगड़ी और खर्चीली बेटी को विदा किया। वो पैसे को पैसा ही नहीं समझती थी और बेटे की इतनी आमदनी भी नहीं थी। घर में दो विरोधी व्यक्तित्व एक ही छत के नीचे थे। विरोधी भी नहीं ,कह सकते ,दोनों ही स्वभाव से लगभग एक जैसी ही थीं। मेरी पत्नी को मेरी कमाई का अहंकार था और बेटे की पत्नी को अपने घरवालों की।
बेटे से आये दिन ,नई -नई मांग करती और पैसे मांगती ,आवश्यकताएँ पूर्ण न हो पाने के कारण ,घर में झिक -झिक होती। कोई भी झुकने के लिए तैयार नहीं ,ये सब तो देखा जाता किन्तु प्रलय तो तब आई -जब वो गर्भवती हो गयी और सहेलियों के कहने पर ,उसने गर्भपात करा लिया। आज भी वो रात उन्हें स्मरण है ,वो तमाचा जैसे उनके ही गाल पर पड़ा हो। जब तेज आवाज उसके कमरे से आई ,हम दोनों पति -पत्नी उस ओर दौड़े। माता -पिता बच्चों को पढ़ाते हैं, किसी योग्य बनाने का प्रयत्न करते हैं ,ताकि उनका बच्चा अपने पैरों पर खड़ा होकर सम्मान से जी सके। उसका घर बसाता है ताकि वो अपने जीवन में आगे बढ़े और हमारे वंश को लाभान्वित करे। बस यही तो जीवन है ,किन्तु इस जीवन की इन्हीं प्रक्रियाओं में मानव अपनी सोच और अपने कर्मों द्वारा उस जीवन को कठिन से कठिन बना लेता है।
यही हाल मेरे बेटे और बहु का भी हुआ। बहु किसी की भी बातों को सुनना नहीं चाहती थी। उस पर किसी का असर पड़ता था ,तो वो थीं ,उसकी सहेलियाँ ,जो उसे उल्टी -सीधी सीख़ देती रहती थीं। नारी स्वतंत्रता की बातें करती थीं किन्तु उस स्वतंत्रता की सही जानकारी नहीं थी ,उन्हें। उनके लिए तो स्वतंत्रता बाहर घूमना ,पार्टियों में जाना और पति पर अपनी इच्छाएं थोपना ही नारी स्वतंत्रता थी , इससे ज्यादा उनकी समझ भी नहीं थी। ''पैसे से ही घर नहीं बसते ,वरना हर ग़रीब बेघर होता, ईंट की दीवारों से ही घर नहीं होते ,उसमें बसने वाले लोगों से घर बनते हैं। ''
मेरे बेटे न जाने कौन से कर्म किये थे ?जो ऐसी परिस्थितियों से जूझना पड़ा ,हम दोनो दौड़कर उसके कमरे में गए तो देखा बेटा क्रोध के कारण ,काँप रहा था ,बहु अपना गाल सहलाते हुए ,उसे घूरकर देख रही थी। पल्ल्वी ने पूछा भी -क्या हुआ ? किन्तु क्रोध के कारण ,दोनों की ही जुबाँ बंद थी ,शब्द जैसे उन्हीं के मुँह में घुलकर रह गए थे। पल्ल्वी ने ,मुझे धीरे से बाहर चलने के लिए इशारा किया। बाहर आकर बोली -आपकी ही लाड़ली इस बहु ने ,अवश्य ही ऐसा कोई कार्य किया होगा जिसके कारण मेरा बेटा उस पर हाथ उठाने के लिए मज़बूर हो गया।
मैं बहु की हरकतों को देखते हुए समझ सकता था किन्तु फिर भी ,बेटे को उस पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था।
उसकी हरकतें ही ऐसी हैं ,कोई कब तक अपने पर जब्र करेगा ?पल्ल्वी अपने बेटे का पक्ष लेते हुए बोली।
क्यों ??क्या तुमने कभी कोई ऐसा कार्य नहीं किया ?जिसके कारण घर में नाराजगी का वातावरण न हुआ हो ,फिर भी मैंने तुम पर कभी भी हाथ नहीं उठाया। इसके विपरीत तुम ही, मुझ पर चिल्ला जाती थीं।
मैंने कभी ऐसा कोई कार्य भी नहीं किया पल्ल्वी पूरे विश्वास के साथ बोली। देखना ! यदि मेरे बेटे ने उस पर हाथ उठाया है ,तो अवश्य ही ,इसकी कोई ठोस वजह रही होगी। हम दोनों इसी तरह तर्क -वितर्क कर रहे थे। तभी बिजेंद्र अपने कमरे से तमतमाते हुए बाहर आया ,उसकी माँ उसके पीछे दौड़ी। बिजेंद्र..... बिजेंद्र !कुछ बताएगा भी क्या हुआ ?
माँ अभी मुझसे कुछ मत पूछो !अभी मेरा दिमाग़ एकदम से भनाया हुआ है।
तू शांत हो जा ,ऐसे क्रोध में बाहर भी नहीं जाते ,तू आ !और अपने पापा के पास बैठ ! मैं तेरे लिए पानी ला ती हूँ ,अपनी माँ के प्यार से थोड़ा शांत हुआ। बाहर न जाकर ,अपने पापा के समीप ही बैठ गया ,तब तक पल्ल्वी उसके लिए पानी भी ले आई और उससे पूछा -बता तेरे ओर बहु के बीच क्या हुआ था ?
उसका बताने का मन तो नहीं था ,उसके अंदर की घुटन उसकी जुबान को अवरुद्ध कर रही थी जिस कारण शब्द लड़खड़ा रहे थे। पल्ल्वी ने पुनः कहा -बता ,बताता क्यों नहीं ?
बताने से पहले वो रोने लगा और बोला -उसने सब बर्बाद कर दिया।
क्या बर्बाद कर दिया ,अबकि बार पल्ल्वी की आवाज घबराहट के कारण कांपने लगी।
उसने अपना गर्भपात करवा दिया।
क्यों ?? क्या वो गर्भवती थी ?कब से , ये बात तुम लोगों ने हमें बताना भी सही नहीं समझा ,पल्ल्वी झल्लाते हुए बोली।
उसने तो ऐसा करने का मौका ही नहीं दिया इससे पहले कि मैं आप लोगों से कुछ कहता या बता पाता उससे पहले ही उसने....... कहकर वो फिर से फ़फ़क -फ़फ़ककर रोने लगा।
पल्ल्वी से अपने बेटे का रोना देखा नहीं गया ,और उसने उसे अपने सीने से चिपटा लिया ,कुछ देर इसी तरह रोने के बाद बोला -इसने मुझे हर तरह से तंग किया हुआ है किन्तु मैंने हर बात सहन की। परसों ही तो पता चला ,कि वो गर्भवती है। हम दोनों खुश थे ,मैं सोच रहा था -शायद बच्चे के आने पर ही ये सुधर जाये , ज़िम्मेदारियों को समझे। आज मैं इसे लेकर ,आप लोगों की ये सूचना देने वाला था। मैंने उससे कहा -चलो !ये खुशख़बरी आप लोगों को भी सुना देते हैं ,तब इसने मुझे बताया कि वो तो कल डॉक्टर के जाकर अपना गर्भपात करा आई ,आप लोग ही देखिये !यदि मैं उससे आप लोगों को बताने के लिए नहीं कहता ,तो मुझे इस बात का पता भी नहीं चल पाता ।
पल्लवी दहेज के लालच में, बड़े घर की बड़ी बहु तो ले आई किंतु उसने न ही कभी सास ससुर का सम्मान किया न ही अपने पति का कहना माना जिसका परिणाम वे सभी भुगत रहे हैं । आगे क्या होगा? उस थप्पड़ की गूंज कहाँ तक जायेगी ? जानने के लिए पढ़ते रहिये -ऐसी भी ज़िंदगी