नीलिमा अपने दफ़्तर में बैठी ,लोगों से बातें कर रही थी और अपने सहयोगियों से वार्तालाप में व्यस्त थी तभी एक महिला रोते हुए आती है और कहती है - मैडम देख लो !अब मैं क्या करूं ? मेरा पति ,मेरी बच्ची का विवाह करना चाहता है। नीलिमा ने पहले तो उस पर ध्यान नहीं दिया फिर उसने उसे देखा और बोली -तुम तो हमारी संस्था में ही कार्य करती हो, न....
जी मैडम !मैं आपकी संस्था में ही हूँ ,आपकी बातें सुनकर, मैंने अपनी बेटी को पढ़ाना चाहा ,उसने आठवीं के बाद मेरी बेटी की पढ़ाई छुड़वा दी। और अब उसका ब्याह करने पर तुला है। कहता है -अच्छा लड़का मिल रहा है ,हमारी बिरादरी में तो ,लड़के भी ज्यादा नहीं पढ़ पाते ,लड़की ज्यादा पढ़ गयी तो कोई लड़का भी नहीं मिलेगा।
हाँ....... ये तो समस्या है ,नीलिमा गहरी निःस्वास छोड़ते हुए बोली -वो लड़का क्या करता है ?
वो तो मुझे नहीं पता ,तब पता करो वो लड़का क्या करता है ?तुम्हारी लड़की को क्या खिलायेगा ?तब आकर मुझसे बातें करना। वो तो चली गयी किन्तु नीलिमा को ,अपने पापा का स्मरण हो आया। आज तो बड़े ही चहक रहे थे। बड़े खुले दिल से बधाई दी....... वे भी तो आज से ,बीस वर्ष पहले खुश होते हुए आये थे। अपनी नीलिमा के लिए रिश्ता आया है। लड़का अभियंता है ,उसकी बड़ी सी कोठी है ,बहुत पैसेवाले हैं।
पापा मेरी तो अभी पढ़ाई है ,अभी तो मैंने बाहरवीं ही तो की है ,स्नातक तो करने दीजिये , दीदी ने तो परा स्नातक कर लिया।
तभी तो कर पाई ,जब कोई लड़का नहीं मिला ,लड़का मिलते ही उसका विवाह किया कि नहीं !!!
नीलिमा ने' हाँ 'में गर्दन हिलाई इससे ज्यादा तो वो और कुछ कह ही नहीं सकी ,वो पापा का क्रोध भी जानती थी।
माँ ने भी समझाया ,ऐसे रिश्ते हर बार नहीं मिलते ,तूने आगे पढ़ाई की और तब लड़का नहीं मिला तब क्या करेगी ?तू तो अपने पापा -चाचा का क्रोध जानती ही है। लड़के वाले तुझे आगे पढ़ने से भी नहीं रोकेंगे। यही सोचकर वो प्रसन्न हो गयी।
कई दिनों पश्चात ,आज उसकी सहेली आई ,उसे देखते ही नीलिमा प्रसन्न हो गयी और उसे बताया -मेरा रिश्ता तय हो गया ,वो भी प्रसन्न हुई। इस उम्र में ,किसी को इतनी अक़्ल ही कहाँ होती है ?जब उसने सुना लड़का अभियंता है। वो भी प्रसन्न हो गयी। अब तो जो भी सुनता उसकी किस्मत की सराहना करता उसी के रिश्तेदारों की लड़कियों के लिए तो नीलिमा ईर्ष्या का कारण बन गयी। पापा से जब अपने दाखिले की बात कही ,तब उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया ,अब दूसरे शहर चली जाएगी। वहीं के किसी कॉलिज में अपना दाखिला भी करवा लेना। जब भी कभी ,उसकी किस्मत की कोई सराहना करता ,वो खिल उठती।
दूसरे शहर में जाकर ,विवाह किया वहीँ सभी रस्में हो गयीं। जो संग गये ,सिर्फ़ वे लोग ही उसके विवाह का आनन्द ले सके। लड़के को पहली बार देखकर ,वो शर्म से लाल हो उठी। बड़े लोग थे ,बड़े से होटल में विवाह हुआ। इतने लोगों की जलन और बधाई सुनकर ,अब उसे लगने लगा ,वो बहुत अलग है ,जब उस लड़के के दोस्तों ने उसे पहली बार 'भाभीजी 'कहकर पुकारा -ये उसके जीवन का बहुत ही सुंदर पल था अब उसे अपने होने का एहसास होने लगा। अब तक तो नहीं था ,किन्तु अब उसे अपनी क़िस्मत पर भरोसा भी होने लगा। उसे लगा ,पापा ने मेरे लिए ,जो भी सोचा अच्छा ही सोचा। माँ -बाप अपने बच्चे का बुरा कब सोचते हैं ?
इस जीवन में ,मैं नए -नए अनुभवों से गुजर रही थी ,जो कि मेरे लिए बहुत ही सुखमय थे। मेरे जीवन की घटित घटनाएँ ,जो मेरे लिए अविस्मरणीय हो गयी थीं ,कुछ भी तो गलत नहीं घट रहा था ,रही -सही कसर सहेली और रिश्तेदारों ने पूरी कर दी -देखो ! इसकी कितनी अच्छी किस्मत है ?न ही मैं ,न ही वे लोग जानते थे, कि मेरी किस्मत आगे क्या रंग दिखाने वाली है ?जिसका सूत्रधार मेरा बाप था। सोचते -सोचते वो वर्तमान में आ गयी और अपने पिता का स्मरण होते ही ,उसका मुँह कड़वाहट से भर गया। उसने घंटी बजाई ,तब एक औरत अंदर आई ,नीलिमा उससे बोली -क्या कान्ता !!!तुम यहाँ जग में पानी भी भरकर नहीं रखती हो। ये तुम्हारी सुविधा के लिए ही तो है ,बार -बार पानी लेकर देना नहीं पड़ेगा ,संस्था के अन्य कार्यों के लिए भी तुम्हें समय मिल जायेगा।
जी..... कहकर कान्ता बाहर चली गयी।
तब तक ,नीलिमा घर पर फोन लगाकर पूछती है -हैलो.....
हैलो !!!!!
क्या मेरे बच्चों ने खाना खा लिया ?
हाँजी मम्मा ! अथर्व ने आज कढ़ी खाई और बड़े मन से ,उसकी पकौड़ी उसे बेहद पसंद आई ,ये बात कहकर ,कल्पना ने फोन अथर्व के कानों से लगा दिया।
आज मेरे बेटे को कढ़ी अच्छी लगी ,वो अपनी माँ की आवाज सुनकर मुस्कुराया ,तभी कल्पना मुँह आगे करके बोली -मम्मा मुस्कुरा रहा है।
तब नीलिमा बोली - रात के खाने में ,क्या खायेगा ?मटन या चिकन ,वो फिर से मुस्कुरा दिया। नीलिमा जानती थी -इसे मटन बहुत पसंद है फिर भी बोली -आज चिकन ले आती हूँ।
कल्पना उसके चेहरे को पढ़ रही थी ,उसका चेहरा देखकर ,फोन के समीप मुँह ले जाकर बोली -आपने जरूर चिकन कहा होगा।
नीलिमा हँस दी और बोली -मटन ही लाऊंगी ,कहकर उसने फोन काट दिया। कान्ता भी पानी रखकर ,चली गयी ,वो पानी पीते हुए सोचने लगी ,अपने बच्चों से बात करके वो ,अपने सभी ग़म भूल जाती है ,अब ये ही बच्चे तो उसके जीने का सहारा हैं ,इन्हीं के लिए तो जी रहे है वरना लोगों ने तो उसे मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
शाम को जब वो घर के लिए निकली ,पापा का फिर से फोन आ गया ,उसे समझ नहीं आ रहा जब से शिवांगी विदेश गयी है ,इन्हें बड़ी हमदर्दी हो रही है ,या चिंता ,सोचकर उसने फोन नहीं उठाया और गाड़ी से उतरकर मटन की दुकान पर आ गयी। मटन की दुकान पर बहुत भीड़ थी ,उसे देखकर लोग, उसी को देखने लगे ,मटन की दुकान पर उसे ऐसे देख रहे थे,जैसे वो कोई इंसान न हो वरन कोई अजीब प्राणी हो ,जो सबकी नजरों में चुभ रहा था ,ऐसा उसका अपना सोचना था। वे उसे अजीब प्राणी की तरह नहीं ,उसे भूखी नजरों से ताक रहे थे किन्तु अब उस पर उन नजरों का कोई असर नहीं पड़ता ,अब तो वो उन निगाहों को ललकारती सी अपना कार्य कर आगे बढ़ जाती।
आखिर निलिमा को अपने पिता का स्मरण होते ही, क्यों उसे परेशानी होती है उसके बेटे को आखिर क्या परेशानी है ? आइये जानते हैं, अगले भाग में -ऐसी भी ज़िंदगी